देशभर के लगभग सभी आदिवासी समाजों में विवाह के समय सदियों से चली आ रही दहेज प्रथा पर अब निमाड़ के आदिवासी समाज ने सख्ती का रुख अपनाते हुए इसे पूरी तरह से बंद करने का निर्णय लिया है। यही नहीं, इसके साथ ही, बाजार की बनी हुई दारू यानी शराब और डीजे साउंड सिस्टम को भी समाज के विवाह कार्यक्रमों में प्रतिबंधित किया गया है। इस प्रतिबंध को लेकर निमाड़ की आदिवासी जातियों जिनमें बारेला, भिलाला, भील और कोटवार समाज ने मिशन डी3 शुरू किया है।
आदिवासी समाज के इस मिशन डी3 में पहला डी दहेज प्रथा के लिए है, तो वहीं दूसरा डी दारू के लिए है। इसके साथ ही तीसरा डी डीजे साउंड सिस्टम के लिए है। इसको लेकर निमाड़ के खंडवा जिले के सुदूर ग्रामीण अचंल में एक बैठक का आयोजन भी किया गया। इसमें आदिवासी समाज के सभी प्रमुख लोगों ने हिस्सा लेकर इसे अपनाने की पहल की।
बता दें, खंडवा जिले के वन अंचल में बसे ग्राम भीलखेड़ी में आदिवासी समाज के कई लोगों के साथ ही समाज के प्रमुख लोग एकत्रित हुए। यहां समाज उत्थान को लेकर लंबी चर्चा की गई। इस दौरान समाज ने मिशन डी3 पर फोकस करने की बात रखते हुए सभी से इस पर सख्ती से अमल करने को कहा।
बता दें, दहेज प्रथा सदियों से इन समुदायों में प्रचलित है। दहेज में वर पक्ष से लड़की की शादी के बाद, रुपये लेने का प्रावधान है, लेकिन वर्तमान स्थिति में इस प्रथा का दुरुपयोग होते देख समाज ने इस पर रोकथाम का निर्णय लिया है। इसके साथ ही बाजार की शराब पूरी तरह से बंद कर के घर पर बनी देशी शराब और वह भी केवल उतनी ही मात्रा में, जितनी सरकार से आदिवासी समाज को छूट मिली हुई है, उससे अधिक का उपयोग भी नहीं किया जाएगा। आदिवासी संस्कृति में डीजे का दूर दूर तक कोई नाता नहीं है और आदिवासी समाज ढोल मंजरे, मांदल की थाप के साथ ही मधुर बांसुरी वादन के लिए विख्यात है। इसलिए समाज के अनुसार अब वे लोग अपनी पुरानी संस्कृति को फिर से अपने विवाह सहित अन्य कार्यक्रमों में वापस लेकर आएंगे और डीजे का भी इस्तेमाल नहीं करेंगे।
प्रदेश स्तर पर समाज जनों को करेंगे प्रोत्साहित
इधर इस कार्यक्रम के अध्यक्ष वरसिंह सोलंकी ने बताया कि सभी समुदाय के पटेल और सरपंच लोगों ने एकत्रित होकर निर्णय लिया है कि समाज को आगे बढ़ाने के लिए डी3 के नियमों का पालन किया जाएगा।