बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक प्रकार के भेदभाव का सामना किया। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उच्च शिक्षा प्राप्त की और इन सबके पश्चात भारत के दरिद्र नारायण की सेवा के लिए कार्य किया। अंबेडकर अस्पृश्यता को मिटाना चाहते थे। वे समस्त हिंदू समाज की बंधुता और समता के समर्थक थे। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रयासों से हम उस लक्ष्य के काफी निकट पहुंच चुके हैं और समता से आगे बढ़कर समरस समाज का निर्माण हुआ है। ये विचार संस्कृत भारती के विचारक केसर सिंह सूर्यवंशी ने रविवार को स्थानीय भगवान महावीर टाउन हॉल में मधुकर जन चेतना न्यास की ओर से डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती से एक दिन पूर्व आयोजित "सशक्त एवं समरस राष्ट्र के निर्माण में डॉ. अंबेडकर जी का योगदान" विषयक संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए।
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कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि डॉ. राहुल बामणिया, अध्यक्षता कर रहे जोधपुर डिस्कॉम के सेवानिवृत्त एमडी बीडी मालू और न्यास के अध्यक्ष मनोहर लाल बंसल ने भारत माता व डॉ. भीमराव अंबेडकर के चित्रों के समक्ष दीप प्रज्वलन कर की। मुख्य वक्ता सूर्यवंशी ने अपने उद्बोधन में ऐतिहासिक तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत में स्वतंत्रता के लिए पहली बार 1857 में बड़ा प्रयास हुआ, लेकिन उसकी असफलता के कारण भारतीयों में निराशा छा गई। इस निराशा से उबारने के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी विवेकानंद ने कार्य किया। विवेकानंद ने अपने चिंतन में तीन विचार प्रस्तुत किए, जिनमें से पहला विचार भारत के दरिद्र नारायण के कल्याण का था, जिसे डॉ. अंबेडकर ने साकार करने का प्रयास किया। दूसरा विचार व्यक्ति निर्माण आधारित व्यवस्था का था, जिसे डॉ. हेडगेवार ने संघ के माध्यम से मूर्त रूप देने का प्रयास किया, और तीसरा विचार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास का था, जिसे महात्मा गांधी ने आगे बढ़ाया।
संविधान ही अंबेडकर स्मृति
संविधान ही अंबेडकर स्मृति सूर्यवंशी ने कहा कि महाभारत, रामायण आदि ग्रंथ तत्समय के संविधान के रूप में थे, जिन्हें स्मृतियां कहा गया है। उसी प्रकार अंबेडकर जी के नेतृत्व में बना भारत का संविधान ही अंबेडकर स्मृति है। अंबेडकर जी ने धारा 370 का विरोध किया था और वे समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे।
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बाबा साहब कुशाग्र बुद्धि के थे
मुख्य अतिथि डॉ. राहुल बामणिया ने कहा कि बाबा साहब कुशाग्र बुद्धि के थे। उन्होंने अत्यंत विकट परिस्थितियों में अध्ययन किया और विदेशों में जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त की। वे कई विषयों के विशेषज्ञ थे और उन्हें विभिन्न देशों में सेवा का अवसर मिल सकता था, लेकिन उन्होंने बचपन में झेली गई समस्याओं के समाधान के लिए भारत में ही रहकर कार्य किया। कार्यक्रम के अंत में अध्यक्षता कर रहे बी. डी. मालू ने आभार ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन न्यास सदस्य दशरथ शारदा ने किया।