टमाटर की महत्ता हर घर और रेस्टोरेंट में अनिवार्य रूप से है। ग्रेवी, सब्जियों और अन्य व्यंजनों में टमाटर का रोजाना उपयोग किया जाता है। इसी आवश्यकता को देखते हुए मोड़ी के किसान कालू सिंह राठौड़ ने जैविक टमाटर की खेती शुरू की है। उनका उद्देश्य न केवल अपने परिवार को स्वास्थ्यवर्धक टमाटर उपलब्ध कराना है, बल्कि बाजार में जैविक टमाटर उपलब्ध कर कमाई करना भी है। उन्होंने बताया कि सब्जियों में अधिक कीटनाशक के उपयोग से मानव स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है, इसलिए वे पूरी तरह जैविक तरीके से खेती कर रहे हैं।
झालावाड़ मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर असनावर उपखण्ड इलाके के मोड़ी गांव में कालू सिंह अपने खेत में जैविक टमाटर की खेती करके सालाना लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं। उनका कहना है कि घर के खाने के लिए भी यही टमाटर उपयोग किए जाते हैं। एक सीजन में छह माह में नाम मात्र के खर्च पर करीब 2 लाख रुपए की आमदनी हो जाती है।
कालू सिंह टमाटर के साथ-साथ खीरे की खेती भी कर रहे हैं। फिलहाल उनके दो बीघा खेत में टमाटर की खेती की जा रही है। पूरी तरह जैविक होने के कारण टमाटर की गुणवत्ता और स्वाद बेहतरीन है, जिससे आमजन इसे पसंद करते हैं। सिंचाई के लिए उन्होंने सोलर प्लांट भी लगाया है, ताकि बिजली की कोई समस्या न आए। टमाटर की बुवाई सितंबर माह में की गई थी।
उन्होंने बताया कि दो बीघा टमाटर से हर पांच दिन में 50 से 60 कैरेट (एक कैरेट में 24 किलो) टमाटर निकलते हैं। टमाटर का वजन लगभग 100 ग्राम है और प्रतिदिन ब्लॉक के हिसाब से तुड़ाई की जाती है। कालू सिंह ने बताया कि उनका जैविक टमाटर बाजार के सामान्य टमाटरों की तुलना में बेहतर स्वाद और मोटे गूदे के कारण ग्रेवी और अन्य व्यंजनों के लिए आदर्श है। यह टमाटर बिना फ्रिज के एक सप्ताह तक ताजा रहता है, जबकि सामान्य टमाटर जल्दी सड़ जाते हैं। टमाटर की गुणवत्ता और सुंदरता बनाए रखने के लिए किसान मचान बनाकर उत्पादन करते हैं। टमाटर के पौधों को सपोर्ट वायर के माध्यम से ऊपर बांध दिया जाता है। इससे पौधा नीचे नहीं झुकता, जमीनी बीमारियों से बचता है और उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ती है।
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जैविक खेती बनाए रखने के लिए कालू सिंह जीवामृत और छाछ का स्प्रे करते हैं। जीवामृत का घोल गोमूत्र, बेसन, पिपल या बड़े पेड़ के नीचे की मिट्टी से 8 दिन में तैयार किया जाता है और जड़ों में स्प्रे किया जाता है। छाछ में तांबे की धातु डालकर 2 महीने तक रखा जाता है, फिर इसका स्प्रे करने से टमाटरों में बीमारियां नहीं लगती। यह प्रक्रिया स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है और खर्च भी न्यूनतम है।
कालू सिंह ने बताया कि अक्टूबर से लाभ मिलना शुरू हुआ। एक सप्ताह में लगभग 40-50 हजार रुपए की कमाई हुई और अब तक 2 माह में पोने 2 लाख रुपए का लाभ हो चुका है। वे पिछले 7 साल से पॉली हाउस और लोटनल तरीके से खीरा, ककड़ी, तरबूज और खरबूजा की खेती कर रहे हैं, जिससे भी लाखों रुपए की सालाना आमदनी होती है। खेती के साथ किसान पशुपालन भी कर रहे हैं। वे अच्छी नस्ल की भैंस पालते हैं, जिससे चारा और गोबर का उपयोग खेत और खाद में किया जा सके। इस तरह उनका खेती और पशुपालन का मॉडल पूरी तरह से आत्मनिर्भर और जैविक है।