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Bihar : घर में इतनी मुसीबतें झेल रहे राजद अध्यक्ष? तेजस्वी यादव ने लालू परिवार को कहां फंसा दिया, देखिए

सार

Lalu Yadav : राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ऐसे तो नहीं थे! बिहार की राजनीति में उनकी ना-मौजूदगी पहली बार दिख रही है। जब वह विदेश में किडनी प्रत्यारोपण करा रहे थे, तब भी गायब नहीं होते थे। वजह तलाश रही यह स्टोरी।

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लालू यादव बिहार की राजनीति से गुम होते जा रहे, वजह समझिए यहां। - फोटो : अमर उजाला डिजिटल
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राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष, बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और देश के भूतपूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव परेशान हैं। दुखी हैं। चौतरफा परेशानी में हैं। हमेशा 'फैमिली मैन' रहे लालू प्रसाद यादव परिवार के कारण ही परेशान हैं। एक तो बेटे को मुख्यमंत्री बनाने की हसरत पूरी नहीं हुई और दूसरी तरफ पार्टी की करारी हार के साथ परिवार में उपद्रव मच गया। खुद बड़े बेटे को दूर किया था, अब छोटा बेटा दूर-दूर कर विदेश यात्रा पर निकल गया। रही-सही कसर किडनी दान कर जीवन बचाने वाली बेटी रोहिणी आचार्य की बातें टीस दे रहीं। करें तो क्या? राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष की परेशानी सिर्फ दूर से दिखने वाली ही नहीं, अंदर से समझने वाली भी है। हर एंगल को समझा रही है यह स्टोरी।

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छोटे को तवज्जो देते रहने का अंत... बड़े बेटे तेज प्रताप को दूर किया

लालू प्रसाद यादव की असल छाप किसपर है, दोनों बेटों को लेकर आप किसी भी आम आदमी से पूछेंगे तो एक ही जवाब आएगा- तेज प्रताप यादव। आज अकेले पड़े तेज प्रताप, तभी नहीं। पहले भी यही जवाब मिलता था। कोई पुत्र पिता की नकल करे या नहीं, उसके पिता की छाप उसमें दिख ही जाती है और तेज प्रताप को लेकर यह कहा जाता रहा है। लेकिन, 2015 में महागठबंधन सरकार बनी तो तेज प्रताप को मंत्री और तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लेते ही लालू प्रसाद यादव ने परिवार में एक नए विवाद की शुरुआत कर दी थी।


दुनियादारी के मामले में तेजस्वी को बेहतर मानते हुए उस समय लिया गया लालू प्रसाद का वह फैसला तेज प्रताप यादव दु:ख के साथ स्वीकार भी करते रहे। लेकिन, तलाक की कानूनी लड़ाई लड़ रहे तेज प्रताप यादव की एक युवती के साथ तस्वीर देख लालू ने छह साल के लिए राजद और आजीवन परिवार से उन्हें निकाल बाहर किया। अब, लालू यादव को अफसोस है कि उन्होंने जल्दबाजी में बड़ा फैसला ले लिया। यह दु:ख वह अपने लोगों के बीच जाहिर कर रहे हैं।
 

तेजस्वी ने बिहार चुनाव में मुख्य धारा से किया दूर, बड़ी हार के साथ गायब

लालू प्रसाद यादव ने पहले खुद तेजस्वी यादव को आगे बढ़ाया, लेकिन अब पिछले दिनों हुए बिहार विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो पता चलता है कि पुत्र ने पिता को मुख्य धारा से दूर करने में कसर नहीं छोड़ी। लोकसभा चुनाव के पहले लालू प्रसाद किडनी प्रत्यारोपण करा बिहार लौटे थे। तब उन्हें भीड़ से दूर रहना था। इसके बावजूद वह सक्रिय रहे। टिकट बंटवारे से पहले सिम्बल बांटते रहे। उसके पहले, 2024 में महागठबंधन सरकार गिरने के बाद 12 फरवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बहुमत से दूर रखने की कोशिश में बड़ा योगदान देते हुए भी दिखे थे लालू। लोकसभा चुनाव के बाद मौका-बेमौका बाहर निकल वह शारीरिक रूप से स्वस्थ होने का सबूत भी समर्थकों को देते रहे। लेकिन, जैसे ही तेज प्रताप प्रकरण सामने आया; लालू उसके बाद से किनारे होते गए।

तेज प्रताप को हटाने का फैसला भी सामने आकर नहीं दिया। उसके बाद बिहार चुनाव आया तो तेजस्वी ने उन्हें सिम्बल बांटने से रोके रखा। जब कुछ सिम्बल बांटे तो तेजस्वी ने इसका खंडन भी कर दिया। कभी अपने दम पर बिहार में सरकार बनाते रहे और फिर किंग मेकर के रूप में पत्नी को गद्दी सौंपने वाले लालू प्रसाद यादव को राष्ट्रीय जनता दल के कार्यालय से भी गायब ही कर दिया गया। बिहार चुनाव में महागठबंधन की हार के कई कारणों में से यह भी रहा। और, जब करारी हार के रूप में परिणाम सामने आया तो लगातार चुप्पी साधते हुए तेजस्वी यादव चुपके-चुपके विदेश निकल गए। अब, लालू प्रसाद भी समझ रहे हैं कि उन्हें या तो बड़ा स्टैंड लेना पड़ेगा या फिर बेबसी में चुप रहना होगा।
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जान बचाने वाली बेटी रोहिणी को कुछ नहीं दे सके, वह लिख-बोल रहीं लगातार

कहीं किडनी दान करने वाला कोई नहीं मिल रहा था तो बेटी रोहिणी आचार्य ने सिंगापुर बुलाकर पिता लालू प्रसाद यादव की जान बचाई। अपनी किडनी दी। पिता जब पूरी तरह ठीक हुए तो भारत वापस भेजते समय रोहिणी ने देखभाल के लिए संदेश भेजा था। किडनी दान करने के बाद से रोहिणी आचार्य का राजद में कद अचानक बढ़ गया। बिहार के लोगों में उनके प्रति अलग ही तरह का भाव जगा। यह देखते हुए लालू प्रसाद यादव ने बेटी को लोकसभा चुनाव का टिकट दिया। बस, गलती यह हो गई कि जिद में कई गुना बड़े कद वाले राजीव प्रताप रूडी के सामने उतर गईं। हार गईं। इसके बाद, विदेश लौटीं। फिर आती-जाती दिखती रहीं। माना जा रहा था कि रोहिणी बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेंगी। लेकिन, राजद नेता भी दबी जुबान में कहते हैं कि लालू इस बार बेटी को सिम्बल नहीं दे सके।

रोहिणी को आकर कहना पड़ा कि वह टिकट चाह भी नहीं रहीं। लेकिन, जैसे ही बिहार चुनाव परिणाम में राजद 25 सीटों पर सिमटी तो घर की बात बाहर आ गई। कहा जा रहा है कि हार के बाद तेजस्वी यादव ने रोहिणी की आह लगने की बात कही तो जवाब में हार के कई कारण खड़े-खड़े गिना दिए गए। इसी प्रकरण पर बात चप्पल तक पहुंची। इसके बाद तेजस्वी यादव ने रोहिणी से संबंधित किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। रोहिणी ने तेजस्वी यादव और उनके करीबी राज्यसभा सांसद संजय यादव के साथ रमीज नाम के शख्स पर कई आरोप लगाए, लेकिन तेजस्वी लगातार चुप्पी साधे रहे। फिर राजद की बैठक के बाद भी मुंह नहीं खोला। इसके बाद अचानक विदेश निकल गए पत्नी-बच्चों के साथ। वह भी ठीक ऐसे समय, जब विहार विधान परिषद् में विपक्ष की नेता राबड़ी देवी का आवास खाली कराने का नोटिस मिला। अब, लालू प्रसाद भी समझ रहे हैं कि बेटी के लिए कुछ करने का उनका समय समाप्त हो चुका है या फिर बड़ा फैसला लेने का वक्त आ गया है।

... तो क्या लालू के पास विकल्प है? या, समय समाप्त?

बिहार विधानसभा चुनाव में महज 25 सीटों पर सिमटने के बाद राजद चर्चा में कुछ दिन रहा। फिर गायब। तेजस्वी यादव के गायब होने के बाद से राजद खबरों से गायब ज्यादा ही हो गया। चर्चा हुई भी तो रोहिणी आचार्य के दर्द के कारण। इन परस्थितियों में राजद के अंदर भी यह सवाल कौंध रहा है कि लालू की राजनीति क्या समाप्त हो गई? बिहार की राजनीति में यह पहली मर्तबा नहीं लग रहा। कई बार लगा कि लालू प्रसाद यादव की राजनीति समाप्त हो गई, लेकिन हर बार वह उभर जाते थे। 2015 में तो नीतीश कुमार का साथ मिलने के कारण एक तरह से उनकी राजनीति मृतप्राय होते-होते पुनर्जीवन हासिल करने में कामयाब रही थी। लेकिन, इस बार कहानी थोड़ी पारिवारिक है। इसलिए, राजद के नेता कुछ भी नहीं बोल रहे। लालू को जमीन से आसमान तक मानने वाले तेजस्वी को 'अनुकंपा' तक कह रहे हैं, लेकिन राजद अध्यक्ष की चुप्पी को 'धृतराष्ट्र' वाली स्थिति भी कह रहे हैं। करीब 40 साल से लालू के आसपास रहे दो दिग्गज नेताओं ने 'अमर उजाला' के सवाल पर कहा कि "यह मसला पारिवारिक है, इसलिए निर्णय परिवार के मुखिया को लेना है। वह जो भी फैसला लेंगे, पार्टी बगैर किसी टूट के उसके साथ रहेगी। वह हथियार डालने वाले नहीं।" तो, 'समय समाप्त नहीं' का मतलब यह निकाला जा सकता है कि लालू बड़ा फैसला ले सकते हैं। बस, देखना है कि वह वक्त कब आता है? 


 

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