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हबीबगंज से रानी कमलापति: नाम का सियासी गणित और भाजपा

Satish Alia सतीश एलिया
Updated Mon, 15 Nov 2021 10:21 AM IST
सार

मप्र देश का सर्वाधिक जनजातीय आबादी वाला राज्य है। देश की आबादी में आदिवासी करीब पौने आठ फीसदी हैं, मप्र में 21 फीसदी आबादी आदिवासियों की है, जो 52 में से 21 जिलों में है, 6 जिले आदिवासी बहुल हैं। 

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Bhopal Habibganj station renamed after rani kamlapati railway station
पीएम मोदी इन दोनों आयोजनों में करीब तीन घंटे भोपाल में रहेंगे।  - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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भोपाल का हबीबगंज रेलवे स्टेशन अब रानी कमलापति रेलवे स्टेशन हो गया है। सौ करोड़ की लागत से वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन के रूप में कायाकल्प के बाद नए रूप और नाम से इसका लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सोमवार 15 नवंबर को करेंगे।

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मोदी आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा की जयंती पर भोपाल में जनजातीय दिवस पर आयोजित बड़े जलसे को संबोधित करने आ रहे हैं। इसमें प्रदेशभर से दो लाख आदिवासियों को भोपाल लाया जा रहा है। मोदी इन दोनों आयोजनों में करीब तीन घंटे भोपाल में रहेंगे। 
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रेल मंत्री वैष्णव रविवार को ही भोपाल आ रहे हैं। इस बीच केंद्र की मंजूरी का पत्र आते ही शिवराज सरकार ने हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलने का आदेश राजपत्र शनिवार को जारी कर दिया। स्टेशन पर हबीबगंज नाम के सभी बोर्ड आनन-फानन में रानी कमलापति रेलवे स्टेशन से बदल दिए गए।
 

रात नौ बजे स्टेशन से सिर्फ सौ मीटर दूर प्रदेश भाजपा मुख्यालय पंडित दीनदयाल उपाध्याय परिसर में खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद विष्णुदत्त शर्मा ने भाजपा पदाधिकारी और कार्यकर्ताओ के साथ आतिशबाजी कर जश्न मनाया।


उप्र में शहरों की नाम वापसी के अलावा रेलवे स्टेशनो के नाम बदलने का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अंदाज उनके समर्थकों के लिए जश्न और विरोधियों के लिए नाराजगी का कारण बन गया है। लेकिन मप्र में रेलवे स्टेशन का नाम की वजह बहुत भिन्न भी है।

नाम बदलनेे के फायदे और चुनावी गणित  

मप्र  में 2003 के विधानसभा चुनाव में तब योगी की तरह संन्यासी भगवाधारी उमाभारती के नेतृत्व में 230 में से 175 सीटे जीतने वाली भाजपा इसके बाद लगातार दो चुनाव 2008 और 2013 के चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में जीतींं, लेकिन सीटें घटती गईं। इसके बाद 2018 में शिवराज के नेतृत्व में ही हुए चुनाव भाजपा हार गई।

आठ सीटों से आगे रही कांग्रेस ने बसपा, सपा, निर्दलियों के सहयोग से कांग्रेस के कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बना ली, लेकिन ज्योतिरादिय सिंधिया की बगावत और भाजपा गमन से कमलनाथ की सरकार गिर गई और भाजपा के शिवराज चौथी दफा मुख्यमंत्री बने। 

हाल ही में हुए तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में भाजपा दो सीटो पर जीती। हारने वाली सीट रैगांव भाजपा की ज्यादा बार जीती सीट थी, लेकिन जीती दो में से एक जोबट भाजपा पहली बार जीती। हालांकि, उसने पूर्व कांग्रेस विधायक सुलोचना रावत को भाजपा में लाकर मैदान में उतारा था। इस चुनाव ने जनजातीय गौरव को भाजपा का मुद्दा बना दिया।
 

2003 में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की प्रभावी मौजूदगी से भाजपा को कांग्रेस की पारंपरिक मानी जानी वाली सीटों पर भारी जीत मिली थी। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को तीन ही सीट मिली,लेकिन कांग्रेस का आदिवासी जनाधार छिन्न-भिन्न होकर भाजपा को लोकसभा चुनाव में भी बंपर फायदा हुआ।

Bhopal Habibganj station renamed after rani kamlapati railway station
मप्र देश का सर्वाधिक जनजातीय आबादी वाला राज्य है। - फोटो : Amar Ujala

हालात ये भी हुए कि कांग्रेस प्रदेश की 29 में से एक सीट तक सिमट गई थी। कांग्रेस कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री तक रहने के बावजूद अपनी पारंपरिक छिंदवाड़ा सीट भर बचा पाए। भाजपा को न केवल मप्र बल्कि देशभर में चुनावी फ़तह बरकरार रखने के लिए वोट बैंक पकड़े रहने के लिए ओबीसी, आदिवासी और दलित वर्ग को साधे रखना है।

मप्र में 2022 की तैयारी 

मप्र में 2003 से अब तक भाजपा के तीनो मुख्यमंत्री ओबीसी वर्ग के रहे हैं। उमा भारती सात महीने, बाबूलाल गौर 15 महीने सीएम रह सके और शिवराजसिंह चौहान मुख्यमंत्री के रूप में 14 साल पूरे कर चुके हैं। 

वे 2023 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट चुके हैं। जाहिर है इसी तैयारी में भाजपा की 2022 के लोकसभा चुनाव की तैयारी भी शामिल है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तीसरी पारी की तैयारी में उप्र की तरह मप्र की लगभग सभी सीटें जीतने का बीते चुनाव का इतिहास दोहराना प्रमुख कारक होगा जो भाजपा के लिए परम आवश्यक होगा।
 

मप्र देश का सर्वाधिक जनजातीय आबादी वाला राज्य है। देश की आबादी में आदिवासी करीब पौने आठ फीसदी हैं, मप्र में 21 फीसदी आबादी आदिवासियों की है, जो 52 में से 21 जिलों में है, 6 जिले आदिवासी बहुल हैं। 


भाजपा मप्र की धरती पर जनजातीय गौरव दिवस और गोंड रानी कमलापति के नाम पर विश्व स्तरीय रेलवे स्टेशन का नामकरण प्रधानमंत्री की मौजूदगी में करके न केवल मप्र बल्कि छत्तीसगढ़, झारखंड से लेकर करीब उन दो दर्जन राज्यों के आदिवासियों को भी संदेश देना चाह रही है, जहां लोकसभा की इस वर्ग के लिए आरक्षित ज्यादातर सीटें आती हैं।

आदिवासी बहुल राज्यों झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, तेलंगाना आदि में भाजपा सत्ता में नहीं है।  दुनियाभर में मूल निवासियों के अधिकारों की अनदेखी बड़ा मुद्दा है, ऐसे में खुद को विश्व की सर्वाधिक सदस्यता वाली लोकतांत्रिक पार्टी होने का दावा करने वाली इसे विश्व स्तर पर भी शोकेस कर सकती है।


डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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