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Birsa Munda: बिरसा मुंडा की जयंती संघर्षों का सम्मान, भारत की जनजातीय विरासत व वीरों का उत्सव है गौरव दिवस

सीपी राधाकृष्णन, उपराष्ट्रपति Published by: लव गौर Updated Sat, 15 Nov 2025 05:59 AM IST
सार
2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया था, जिसके तहत भगवान बिरसा मुंडा की जन्मजयंती 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई, ताकि इन जनजातीय नेताओं और उनके संघर्षों को सम्मान दिया जा सके।
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Birsa Mundas birth anniversary is tribute to struggles
भगवान बिरसा मुंडा की जयंती-जनजातीय गौरव दिवस - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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भारत की सामाजिक और राजनीतिक संरचना को आकार देने में जनजातीय समुदायों ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इतिहास साक्षी है कि जनजातीय नेताओं ने अपने भूमि, संस्कृति और गरिमा की रक्षा के लिए, औपनिवेशिक शोषण और अन्याय के विरुद्ध शक्तिशाली आंदोलनों का नेतृत्व किया। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ तक, भारत में विभिन्न जनजातीय समुदायों ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन, स्थानीय जमींदारों और महाजनों के खिलाफ विद्रोह किया, जिन्होंने उनके पारंपरिक जीवन-प्रणाली को बाधित किया था।


भगवान बिरसा मुंडा द्वारा संचालित उलगुलान आंदोलन से लेकर अल्लूरी सीताराम राजू, टंट्या भील, वीर गुंडाधुर, रानी गाइदिनल्यू, रामजी गोंड, शहीद वीर नारायण सिंह, सिद्धू-कान्हू जैसे वीरों के प्रखर प्रतिरोध तक-यह सिद्ध करता है कि जनजातीय आंदोलन केवल अलग-अलग संग्राम नहीं थे, बल्कि ये औपनिवेशिक अत्याचार के विरुद्ध सशक्त, निरंतर और संगठित प्रतिप्रवाह थे।  2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया गया था, जिसके तहत भगवान बिरसा मुंडा की जन्मजयंती 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई, ताकि इन जनजातीय नेताओं और उनके संघर्षों को सम्मान दिया जा सके।


यह निर्णय एक युगांतरकारी कदम था, जिससे आने वाली पीढ़ियों में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों की गौरवशाली विरासत और उनके संघर्षों के प्रति गर्व और जागरूकता को स्थापित किया जा सकें। इस वर्ष का उत्सव विशेष महत्व रखता है, क्योंकि आज हम बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती (जनजातीय गौरव वर्ष) के समापन का समारोह मना रहे हैं, जिसकी शुरुआत 2024 में हुई थी।

पीएम मोदी उलिहातु जाने वाले पहले प्रधानमंत्री
मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ कि मैं बारहवीं और तेरहवीं लोकसभा का सदस्य रहा, जब अटल बिहारी वाजपेयीजी देश के प्रधानमंत्री थे। अटलजी के कार्यकाल के दौरान ही जनजातीय कार्य मंत्रालय की स्थापना की गई थी। बाद में मुझे झारखंड का  राज्यपाल बनने का सौभाग्य मिला। राज्यपाल के पद की शपथ लेने के बाद उसी दिन मैं भगवान बिरसा मुंडा की जन्मभूमि उलिहातु गया, जहां मैंने इस महान स्वतंत्रता सेनानी को श्रद्धांजलि अर्पित की। मुझे याद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उलिहातु जाने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं।

63,000 से अधिक जनजातीय बहुल गांवों का हो रहा कायाकल्प
धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान सरकार का एक अन्य उल्लेखनीय प्रयास है, जो भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर स्थापित एक परिवर्तनकारी मिशन है। इसका लक्ष्य 63,000 से अधिक जनजातीय बहुल गांवों में बुनियादी सेवाओं की 100 फीसदी उपलब्धता और समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित करना है। जनजातीय समुदायों के सशक्तीकरण की इस नीति-परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए, मैंने झारखंड, तेलंगाना और बाद में महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में कार्य करते समय एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (ईएमआर) के विस्तार पर जोर दिया था, ताकि अधिक से अधिक जनजातीय छात्र इसका लाभ ले सकें। मुझे यह जानकर प्रसन्नता है कि सरकार ने 728 एकलव्य विद्यालयों की स्थापना का लक्ष्य रखा है, जिनमें से 479 विद्यालय पहले से ही क्रियाशील हैं और लगभग 3.5 लाख जनजातीय विद्यार्थी लाभान्वित हो रहे हैं।

शिक्षा और सांस्कृतिक संरक्षण की दिशा में प्रयास
जनजातीय समुदायों के सशक्तीकरण की इस नीति-परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए, मैंने झारखंड, तेलंगाना और बाद में महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में कार्य करते समय एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (ईएमआर) के विस्तार पर जोर दिया था, ताकि अधिक से अधिक जनजातीय छात्र इसका लाभ ले सकें। मुझे यह जानकर प्रसन्नता है कि सरकार ने 728 एकलव्य विद्यालयों की स्थापना का लक्ष्य रखा है, जिनमें से 479 विद्यालय पहले से ही क्रियाशील हैं और लगभग 3.5 लाख जनजातीय विद्यार्थी इनसे लाभान्वित हो रहे हैं। अब तक 10 राज्यों में 11 अत्याधुनिक जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों को स्थापित करने की स्वीकृति दी जा चुकी है, जिनमें से 4 संग्रहालयों का उद्घाटन किया जा चुका है।

जनजातीय अंचलों में गहराई से बसी थी आजादी की लड़ाई
जनजातीय नेता और उनके आंदोलन हमें निरंतर यह स्मरण कराते हैं कि स्वतंत्रता और गरिमा की लड़ाई, भारत के जनजातीय अंचलों के जंगलों और पहाड़ियों में गहराई से बसी हुई थी। उनका साहस, त्याग और अटूट जज्बा आज भी सामाजिक न्याय, पर्यावरण संतुलन और मानवाधिकारों के आंदोलनों को प्रेरित करता है। धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा ने भले ही केवल 25 वर्षों का जीवन जिया, परंतु उन्होंने देशभक्ति की जो ज्वाला प्रज्वलित की है, वह आने वाले 2,500 वर्षों तक भी प्रज्वलित रहेगी। यह कहना उचित होगा कि मनुष्य आएंगे और चले जाएंगे, पर धरती आबा और अन्य जनजातीय वीरों की विरासत सदैव अमर रहेगी।
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