{"_id":"61e0c73311e13f4095203731","slug":"patriarchy-womens-difficulties-in-pakistani-society","type":"story","status":"publish","title_hn":"पितृसत्तात्मक : पाकिस्तानी समाज में महिला की मुश्किलें","category":{"title":"Opinion","title_hn":"विचार","slug":"opinion"}}
पितृसत्तात्मक : पाकिस्तानी समाज में महिला की मुश्किलें
विज्ञापन
निरंतर एक्सेस के लिए सब्सक्राइब करें
सार
आगे पढ़ने के लिए लॉगिन या रजिस्टर करें
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ रजिस्टर्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ सब्सक्राइब्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
फ्री ई-पेपर
सभी विशेष आलेख
सीमित विज्ञापन
सब्सक्राइब करें


पाकिस्तान का झंडा
- फोटो :
Pixabay
विस्तार
कम से कम दो भाइयों के लिए 2022 का नया साल बहुत खुशी और भावुकता के साथ शुरू हुआ, क्योंकि जब उन्होंने एक-दूसरे को गले लगाया, तो वे फूट-फूटकर रोने लगे। फैसलाबाद के एक पाकिस्तानी सिद्दीकी 74 साल बाद अपने बड़े भाई हबीब से मिले, जो भारतीय पंजाब के फूलनवाल इलाके में रहते हैं। इस महाद्वीप के विभाजन के दौरान अलग हुए दोनों भाई शांति के गलियारे करतारपुर में मिले।
पाकिस्तान में 74 साल बाद दो अन्य घटनाएं भी हुईं, जो व्यापक रूप से एक पितृसत्तात्मक समाज है। ऐसे बदलाव के लिए किसी दूसरे अधिक लोकतांत्रिक एवं प्रगतिशील समाज में सात दशक से ज्यादा का वक्त नहीं लगा होगा। लेकिन इसमें इतना समय इसलिए लगा, क्योंकि पाकिस्तान के पुरुष अन्य क्षेत्रों के अलावा राजनीति, सैन्य एवं न्यायिक क्षेत्र में भी प्रमुख भूमिका में रहते हैं।
यह पद्मश्री से सम्मानित एक कश्मीरी लेखक और पूर्व कुलपति अमिताभ मट्टू थे, जिन्होंने ट्वीट करके मुझे बताया कि उन्हें पाकिस्तानी फिल्म एक ही निगार देखकर काफी मजा आया। उन्होंने मुझे बताया, 'बेशक आलोचकों द्वारा इसकी निंदा की गई, लेकिन मैंने इसे बेहद गतिशील और देखने योग्य पाया।' एक ही निगार पाकिस्तानी सेना की पहली महिला जनरल, लेफ्टिनेंट जनरल निगार जौहर के जीवन पर आधारित है, जो प्रतिष्ठित थ्री-स्टार रैंक तक पहुंचने वाली पाकिस्तानी सेना के इतिहास में पहली महिला अधिकारी बनीं।
वह खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के स्वाबी जिले की रहने वाली हैं। वर्ष 2017 में वह पाकिस्तान में मेजर जनरल के पद तक पहुंचने वाली तीसरी महिला अधिकारी बनीं और पिछले साल थ्री-स्टार जनरल बनीं। कोई पूछ सकता है कि आर्मी मेडिकल कॉलेज की एक महिला स्नातक को इस रैंक तक पहुंचने में इतना समय क्यों लगा, जो सेना मेडिकल कोर में अस्पताल का कमान संभालने वाली पहली महिला अधिकारी थीं, जबकि सत्तर वर्षों में सैकड़ों पुरुष सेना जनरल बने?
यह फिल्म असामान्य है, क्योंकि आम तौर पर किसी जीवित व्यक्ति के जीवन पर फिल्में बनाना दुर्लभ घटना है। सामान्यतः प्रसिद्ध लोगों की मृत्यु के बाद उनके जीवन पर फिल्में बनती हैं। माहिरा खान ने एक ही निगार फिल्म में लेफ्टिनेंट जनरल निगार जौहर की भूमिका निभाई है। इसमें दुखद और सुखद, दोनों तरह के तथ्य हैं, जो भावनात्मक एवं मानसिक उतार-चढ़ाव को दर्शाते हैं, जैसा कि निगार का जीवन है।
कहानी निगार के मुश्किल समय से लेकर सफलता के क्षणों के जरिये निगार के जीवन को पेश करती है, और उसके वास्तविक जीवन की सफलता के प्रति सच्ची बनी रहती है। जिस तरह नायक फिल्म के अंत में जीत जाता है, उसी तरह वास्तविक जीवन की महिला, जिसे नायिका के रूप में चित्रित किया गया है, तमाम बाधाओं के बावजूद जीत गई है।
वह पाकिस्तानी सेना की पहली महिला सर्जन जनरल भी हैं और आर्मी मेडिकल कोर के कर्नल कमांडेंट के रूप में उनकी सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने प्रशंसा भी की है। मैंने सोशल मीडिया पर एक छोटा-सा वीडियो देखा था, जिसमें वास्तविक जीवन में निगार जौहर अपनी पदोन्नति के अगले दिन मुस्कराते हुए अपने कार्यालय आती हैं।
सेना में कड़े अनुशासन के माहौल में यह बहुत ही असामान्य है कि उनके कनिष्ठ सहयोगियों ने उस पर गुलाब की पंखुड़ियां फेंकीं और कार्यालय में उनका स्वागत करने के लिए भांगड़ा नृत्य किया। मुझे जिस बात से सबसे ज्यादा खुशी हुई, वह यह कि ये सभी निगार के कनिष्ठ पुरुष सहयोगी थे, जो अपनी महिला बॉस को थ्री-स्टार जनरल के रूप में पदोन्नत देखकर खुश थे।
इसी तरह 74 वर्षों बाद पाकिस्तान ने पहली बार न्यायमूर्ति आयशा मलिक को सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश बनते देखा। उनकी पदोन्नति काफी मुश्किल काम था, क्योंकि उनके साथियों ने सर्वोच्च न्यायालय तक उनके पहुंचने की राह में कई बाधाएं खड़ी कीं। हार्वर्ड लॉ स्कूल से मास्टर इन लॉ की डिग्री पाने वाली जस्टिस आयशा को सुप्रीम कोर्ट स्लॉट में पदोन्नति के फैसले को कानूनी बिरादरी के लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा।
कानूनी बिरादरी के कई लोगों ने बताया कि कानूनी पेशे में महिलाओं का गंभीर रूप से कम प्रतिनिधित्व है और पदोन्नति के मामले में उन्हें प्रणालीगत चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि उत्पीड़न, भेदभावपूर्ण व्यवहार, अंतर्निहित पूर्वाग्रह और अन्य गैर-अनुकूल कार्य व्यवस्था। 74 वर्षों के इतिहास में पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय में कोई महिला न्यायाधीश नहीं थी और पाकिस्तान बार काउंसिल में महिलाओं का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था।
बार काउंसिल एवं बार एसोसिएशन में महिला वकीलों का प्रतिनिधित्व फिलहाल नगण्य है। इसलिए शुरू में ही मैंने पाकिस्तान के पितृसत्तात्मक समाज की ओर इशारा किया, जिसमें एक महिला के लिए शीर्ष पर पहुंचना आसान नहीं है, चाहे वह कितनी भी प्रतिभाशाली क्यों न हो। कानून और न्याय पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष बैरिस्टर अली जफर ने कहा कि भविष्य में और अधिक महिला न्यायाधीशों को पदोन्नत करना आसान बनाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्तियों के लिए मानदंड और मानक तय करने के मुद्दे को हमेशा के लिए हल किया जाना चाहिए, क्योंकि बेलगाम विवेक से न्यायिक आयोग में बहुमत के आधार पर चयन नहीं होना चाहिए। इसके लिए संसद को तत्काल एक कानून पारित करना होगा।
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि, 'मुझे लगता है कि महिलाएं किसी भी पक्षपात की मांग नहीं कर रही हैं। वे समानता चाहती हैं और रास्ते के बनावटी अवरोधों को हटाना चाहती हैं। ऐसी बाधाओं को दूर करने के लिए सकारात्मक कार्रवाई की आवश्यकता हो सकती है, ताकि समानता सुनिश्चित की जा सके। यह भी पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत एक सांविधानिक दायित्व है।