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अमर उजाला संवाद: बोर्ड परीक्षा...नंबर बढ़ाने की दौड़ में न जाएं, प्रतिभा निखारने को करें पढ़ाई; NEP पर चर्चा

अमर उजाला नेटवर्क, वाराणसी। Published by: अमन विश्वकर्मा Updated Sun, 23 Nov 2025 10:10 AM IST
सार

Amar Ujala Samvad: अमर उजाला के वाराणसी के ऑफिस में शिक्षक-शिक्षिकाओं ने बोर्ड परीक्षा के साथ नई एजुकेशन पाॅलिसी पर विशेष चर्चा की। छात्रों को परीक्षा का तनाव न लेकर कुछ बेहतर करने के टिप्स दिए गए।

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Amar Ujala samvad Board exams do not rush to increase marks study to hone your talent discuss NEP
अमर उजाला वाराणसी ऑफिस में संवाद कार्यक्रम के दाैरान शिक्षक और शिक्षिकाएं। - फोटो : संवाद
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विस्तार
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Varanasi News: नई शिक्षा नीति के तहत हुए 10वीं और 12वीं के सिलेबस में जो बदलाव किए गए हैं, उससे छात्रों पर पढ़ाई का दबाव अब भी बरकरार है। सिलेबस में विस्तार कर दिया गया है। कोचिंग की संस्कृति बढ़ गई है, इससे बच्चों पर पढ़ाई का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। 

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बच्चे सिर्फ नंबर की दौड़ में हैं। इससे तनाव बढ़ रहा है। जबकि हमें चाहिए कि हम अपने बच्चों को ऐसा वातावरण दें कि वो अपनी प्रतिभा निखारने के लिए पढ़ाई करें। तनाव अगर सकारात्मक है तो इसका लाभ होगा लेकिन अधिकतर बच्चे नकारात्मक तनाव ले लेते हैं। ये गलत है। ये विचार शनिवार को चांदपुर स्थित अमर उजाला कार्यालय में आयोजित संवाद में शिक्षकों ने रखे। 

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जानें क्या बोलें शिक्षक

बच्चों पर पढ़ाई का दबाव इतना है कि बच्चे छोटे टेस्ट और परीक्षाएं देने से बच रहे हैं। बच्चों के लिए आज के युग में डिजिटल साक्षरता बहुत आवश्यक है। हालांकि, शिक्षक और अभिभावक दोनों को ध्यान देना होगा कि बच्चे मोबाइल पर क्या देख रहे हैं। क्या कंटेंट पढ़ रहे हैं। - प्रियंका पाठक, शिक्षिका, डीपीएस

वर्तमान समय में पढ़ाई का तनाव सिर्फ बच्चों पर नहीं, शिक्षकों और अभिभावकों पर भी है। ये तनाव जरूरी भी है लेकिन ये सकारात्मक होना चाहिए। अभिभावकों को भी इसका ध्यान देना चाहिए। तनाव न हो इसके लिए बच्चों की समय समय पर काउंसिलिंग जरूरी है। - सुधा सिंह, शिक्षिका,  जयपुरिया स्कूल

विद्यालय में शिक्षकों और घर पर अभिभावकों को खास ध्यान देना होगा। बच्चों पर पढ़ाई का इतना दबाव है कि वे दिन भर सिर्फ अलग-अलग चीजें पढ़ने में परेशान हैं। बच्चे खुद से पढ़ें तो उनकी प्रतिभा निखरेगी। उन्हें प्यार भरे वातावरण के साथ मानसिक तौर पर फ्री छोड़िए तब वो तनाव मुक्त होंगे। - डाॅ. आनंद प्रभा, प्रधानाचार्य, निवेदिता शिक्षा सदन बालिका इंटर कॉलेज

तनाव प्रबंधन के लिए बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों को भी संतुलन बनाना पड़ेगा। हाल ही में सीबीएसई ने बोर्ड की दो परीक्षाओं का प्रावधान किया है। इससे फायदा भी है नुकसान भी। संतुलित होकर बच्चे पढ़ाई करें और पुरानी चीजों का रिवीजन करें, यह ज्यादा जरूरी है। - सोनी स्वरूप, शिक्षक, सेंट्रल हिंदू बॉयज स्कूल

मोबाइल का उपयोग सबसे खतरनाक हैं। पढ़ाई मोबाइल पर निर्भर नहीं होनी चाहिए। आज के समय में 50 फीसदी अभिभावक मोबाइल के पक्ष में हैं। मोबाइल बच्चों को बिगाड़ रहा है। इसके सकारात्मक उपयोग ही बच्चे करें, इसके लिए अभिभावकों और शिक्षकों को सजग होना पड़ेगा। - वंदना चतुर्वेदी, प्रधानाचार्य, सिल्वर ग्रोव स्कूल

तानव कम करने के लिए आवश्यक है कि शिक्षकों को उनका मूल काम करने दिया जाए। विद्यार्थियों और शिक्षकों दोनों पर दबाव है। तनाव बच्चों के लिए अच्छा है। तनाव लेंगे तो निखरेंगे और पढ़ाई में अच्छा करेंगे। आज कल विद्यालयों में पढ़ाई कम और कार्यक्रम अधिक हो रहे हैं। बच्चे इसमें ही परेशान हैं। - सुमीत श्रीवास्तव, प्रधानाचार्य, क्वींस इंटर कॉलेज

परीक्षा का मतलब ही है दूसरे की इच्छा। सफल परीक्षा के लिए अभी सिर्फ 10 फीसदी विद्यालय ही तैयार हैं। इसके माध्यम से आने वाले समय में सीबीएसई परीक्षा को प्रतियोगी परीक्षा बनाने की योजना है। नई शिक्षा नीति के तहत कई विषयों की एनसीईआरटी की किताबें उपलब्ध नहीं हैं। - डॉ. प्रशांत, सेंट्रल  हिंदू बॉयज स्कूल

आज कल डमी विद्यालयों का चलन बढ़ा है। इसके अलावा बच्चे कोचिंग भी पढ़ रहे हैं। बच्चों को खुद से पढ़ाई करने का समय ही नहीं मिल रहा है। इससे तनाव बढ़ रहा है। नई शिक्षा नीति में स्वरूप बदला लेकिन संसाधन नहीं हैं। ऐसे में बड़े कोर्स का बोझ बच्चों पर हावी है। - अनुराग पांडेय, शिक्षक, डीपीएस

बच्चे खुद से नहीं पढ़ना चाह रहे। अभिभावक उन्हें फोर्स करते हैं। अभिभावकों ने उन पर पहले से ही बोझ डाल दिया है कि उन्हें डॉक्टर, इजीनियर या फिर आईएएस बनना है। जबकि बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार पढ़ने देना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो बच्चे पढ़ाई पर ध्यान भी देंगे और अपने सर्वोत्तम परिणाम देंगे। - अखिलेश कुमार, शिक्षक, डब्ल्यूएच स्मिथ मेमोरियल स्कूल

बच्चे किताब से दूर हो गए हैं। इस कारण उनकी स्मरण शक्ति कम हो गई है। सब कुछ के लिए बच्चे गूगल करते हैं। यह गलत है। बच्चों का मोबाइल से इतना जुड़ाव है कि सामाजिक दायरे वो भूल गए हैं। अभिभावकों को इस पर ध्यान देने की जरूरत है। - उमेश सिंह, प्रधानाचार्य, यूपी कॉलेज

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