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रिश्तों से अंजान: पालना रख अपील, फेंके मत हमें दें; 'अज्ञान' शिशुओं को मम्मी-पापा नजर आता है हर इंसान
अमर उजाला ब्यूरो, गोरखपुर
Published by: गोरखपुर ब्यूरो
Updated Sun, 18 Aug 2024 05:37 PM IST
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सार
जेल रोड स्थित एशियन सहयोगी संस्था के गेट के बाहर एक पालना लगाया गया है। जहां पर कोई भी नवजात बच्चों को रख सकता है। उषा दास ने बताया कि तीन साल के अंदर इसमें तीन नवजात बच्चे रखे गए हैं। जिनको सीडब्ल्यूसी के माध्यम से संस्था में ही रखा गया है। अब ये नवजात बच्चे आखिर मां-बाप के बारे में क्या जान पाएंगे। इसलिए सभी बच्चों को परिवार के महत्व और अन्य बातों के बारे में बताया जाता है, जिससे वे सामाजिक बनें।

पालना
- फोटो : अमर उजाला
विस्तार
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि शहर की एक संस्था में ऐसे भी बच्चे पल रहे हैं, जो मम्मी-पापा के रिश्ते से ही अंजान हैं। उन्होंने न तो कभी मां-बाप को देखा और न ही कभी उनका प्यार मिला। ये वो बच्चे हैं जो ट्रेन, सड़क और रेलवे स्टेशन पर लावारिस हाल में मिले हैं। थोड़े बड़े होने पर इन बच्चों ने अन्य लोगों से माता-पिता की परिभाषा का अर्थ जाना, तब से वे किसी भी अंजान पुरुष व महिला को देखकर पापा और मम्मी बुलाते हैं।
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शाहपुर के जेल रोड स्थित एशियन सहयोगी संस्था इंडिया में शून्य से 10 वर्ष तक के अनाथ बच्चों को रखा जाता है। चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) ट्रेन, सड़क या रेलवे स्टेशन पर लावारिस हालत मिलने वाले 10 वर्ष तक के बच्चों को एशियन सहयोगी संस्था में भेजती है। जहां पर बच्चों की पढ़ाई से लगायत रहने खाने-पीने का इंतजाम रहता है। 10 वर्ष की उम्र पार करने पर इन बच्चों को सरकार द्वारा अन्य स्थान पर भेजा जाता है।
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वर्तमान में इस संस्था में 66 बच्चे रह रहे हैं। इसमे करीब 25 बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें शून्य से ढाई वर्ष की उम्र में ही परिजनों ने छोड़ दिया या फिर उनसे बिछड़ गए। इसमें (नाम काल्पनिक) महक, जोया, अभय, लाडली, मानषी, अंश, अमन, शिवांगी, रमन समेत 25 ऐसे बच्चे हैं, जो न तो कभी मां-बाप को देखे और न ही उनके बारे में उन्हें कुछ याद है।
स्कूल में जाना माता-पिता का अर्थ
संस्था के बच्चे शहर के विभिन्न अंग्रेजी और हिंदी मीडियम स्कूलों में पढ़ रहे हैं। संस्था की एडमिन डायरेक्टर उषा दास ने बताया कि बच्चे जब स्कूल जाना शुरू किए तो वहां और बच्चे हर बात में मां-बाप के बारे में बात करते थे। उन्होंने फिर मुझसे पूछा तो उन्हें मां, बाप का मतलब बताया। उन्हें ऐसी पारिवारिक फिल्में भी दिखाई जाती हैं, जिसमें रिश्तों की कहानी हो।
बच्चे अभी मासूम हैं, जब भी कोई संस्था या अन्य कोई संगठन के लोग उनसे मिलने आते हैं, तो ये बच्चे पुरुष को पापा और महिलाओं को मम्मी बुलाने लगते हैं। वहीं अन्य बच्चे सर या मैम कहकर बुलाते हैं। यहां काम करने वाली आया को भी मम्मी बुलाते हैं।
पालने में मिले तीन बच्चे
जेल रोड स्थित एशियन सहयोगी संस्था के गेट के बाहर एक पालना लगाया गया है। जहां पर कोई भी नवजात बच्चों को रख सकता है। उषा दास ने बताया कि तीन साल के अंदर इसमें तीन नवजात बच्चे रखे गए हैं। जिनको सीडब्ल्यूसी के माध्यम से संस्था में ही रखा गया है। अब ये नवजात बच्चे आखिर मां-बाप के बारे में क्या जान पाएंगे। इसलिए सभी बच्चों को परिवार के महत्व और अन्य बातों के बारे में बताया जाता है, जिससे वे सामाजिक बनें।