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इंश्योरेंस ठगी : एक साल में 15 करोड़ का लेन-देन, खाते में मिले महज 9000
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साइबर सेल की टीम ने डिसेंट हॉस्पिटल के खाते की शुरू की जांच
खाते में हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम का रुपया आते ही 24 घंटे के भीतर ही हो जाता था बंदरबांट
जांच की जद में आए चारों नर्सिंग होमों के दस्तावेज खंगाल रही पुलिस, संचालकों से पूछताछ
गोरखपुर। हेल्थ इंश्योरेंस के नाम पर किए गए बड़े घोटाले की परतें अब धीरे-धीरे खुलने लगी हैं। डिसेंट हॉस्पिटल और उससे जुड़े चार नर्सिंग होमों के खिलाफ चल रही जांच में पुलिस ने चौंकाने वाले आंकड़े उजागर किए हैं। साइबर सेल की टीम ने जब डिसेंट अस्पताल के बैंक खाते की जांच की तो पता चला कि महज एक साल के भीतर करीब 15 करोड़ रुपये का लेन-देन किया गया। हैरानी की बात यह रही कि खाते में फिलहाल सिर्फ 9 हजार रुपये ही मिले।
बीमा कंपनियों से मरीजों के इलाज के नाम पर जो करोड़ों रुपये आए, उसकी अगले 24 घंटे के भीतर ही निकासी कर ली जाती थी। रकम अलग-अलग खातों में ट्रांसफर कर दी जाती थी या फिर कैश निकालकर सीधे संचालकों व दलालों तक पहुंचाई जाती थी। इस तरह पूरे नेटवर्क ने योजनाबद्ध तरीके से बीमा कंपनियों को करोड़ों रुपये का चूना लगाया। पुलिस सूत्रों के अनुसार जल्द ही मामले में कुछ और लोगों की गिरफ्तारी हो सकती है।
पूरे मामले का पर्दाफाश तब हुआ जब बजाज आलियांस फाइनेंस कंपनी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। कंपनी ने बताया कि दिल्ली निवासी सत्यदीप के नाम पर 1.80 लाख रुपये का फर्जी हेल्थ इंश्योरेंस भुगतान हुआ है। जबकि जांच में यह पाया गया कि सत्यदीप कभी अस्पताल आए ही नहीं थे। खुद सत्यदीप ने भी इस बात की पुष्टि की। फर्जीवाड़े का मामला सामने आने पर पुलिस ने पहले ही डिसेंट हॉस्पिटल के संचालक शमशुल और उसके पार्टनर प्रवीण उर्फ विकास त्रिपाठी को गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया था।
पूछताछ में पता चला कि इन दोनों ने गोरखपुर और बस्ती स्थित डिसेंट हॉस्पिटल में 15 फर्जी मरीजों के नाम पर 1.20 करोड़ रुपये का बीमा क्लेम कराया था। पुलिस की तफ्तीश आगे बढ़ी तो इस घोटाले में कथित डॉक्टर गगहा निवासी अफजल और हॉस्पिटल मैनेजर का नाम भी सामने आया। दोनों को गिरफ्तार कर पूछताछ की गई तो यह पर्दाफाश हुआ कि जिस एपेक्स नामक अस्पताल में मरीजों का फॉलोअप दिखाया गया था, वह वास्तव में अस्तित्व में ही नहीं है। वहीं पुलिस ने डिसेंट अस्पताल की एक्सिस बैंक (चालू खाता) के खाते से लेनदेन से भी जांच को तेज कर दी है। पता चला है कि संचालक ने अस्पताल के नाम से खुले खाते में एक साल के भीतर करीब 15 करोड़ रुपये आए और फिर उसे आपस में बांटा गया है। कैश वालों की जानकारी तो सीसीटीवी कैमरों की मदद से जुटाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन ऑनलाइन वालों का डाटा पुलिस को मिल गया है, जिसके आधार पर जांच को आगे बढ़ाया जा रहा है।
एसपी सिटी अभिनव त्यागी का कहना है कि इस पूरे खेल में न सिर्फ डिसेंट हॉस्पिटल बल्कि शहर और आसपास के चार नर्सिंग होम भी शामिल हैं। इन्हीं के नाम पर मरीजों की फर्जी भर्ती और इलाज का रिकॉर्ड तैयार कर बीमा कंपनियों को क्लेम भेजा जाता था। टीम ने डिसेंट हॉस्पिटल के मैनेजर की गिरफ्तारी के बाद जब्त किए गए कंप्यूटर और हार्ड डिस्क से कई अहम फाइलें निकाली हैं। इनमें बीमा कंपनियों से किए गए लेन-देन, मरीजों की फर्जी भर्ती और भुगतान के रिकॉर्ड शामिल हैं। साइबर सेल की टीम अब उन सभी डिजिटल दस्तावेजों की बारीकी से जांच कर रही है। प्राथमिक जांच में यह भी सामने आया है कि कई मरीजों के नाम और आधार विवरण का बार-बार इस्तेमाल कर फर्जी क्लेम दाखिल किया गया।
चार अस्पताल संचालकों से हो रही पूछताछ
एसओ रामगढ़ताल नितिन रघुनाथ श्रीवास्तव के अगुवाई में पुलिस की विशेष टीम ने चारों नर्सिंग होमों के संचालकों को पूछताछ के लिए तलब किया है। उनसे यह जानने की कोशिश की जा रही है कि उनके खातों में कितनी रकम ट्रांसफर हुई और उन्होंने उसका इस्तेमाल कहां किया। जांच टीम इस बात की भी तहकीकात कर रही हैं कि आखिर इतनी बड़ी रकम के लेन-देन के बावजूद बैंकिंग सिस्टम और बीमा कंपनियों के ऑडिट में यह गड़बड़ी कैसे नहीं पकड़ में आई। जांच अधिकारियों का मानना है कि यह सिर्फ कुछ अस्पतालों और नर्सिंग होमों तक सीमित मामला नहीं है। इसके पीछे दलालों, बीमा कंपनी के एजेंटों और अस्पताल प्रबंधन से जुड़े बड़े नेटवर्क की संलिप्तता हो सकती है। फिलहाल पुलिस ने धनशोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) के पहलू को भी खंगालना शुरू कर दिया है। संभावना जताई जा रही है कि रकम का बड़ा हिस्सा अचल संपत्ति और दूसरे कारोबार में लगाया गया होगा।
चारों नर्सिंग संचालकों पर भी दर्ज हो सकता है केस
पुलिस सूत्रों के अनुसार, जैसे-जैसे सबूत जुट रहे हैं, जल्द ही चारों नर्सिंग होम संचालकों पर भी केस दर्ज कर उनकी गिरफ्तारी की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। अधिकारियों का कहना है कि यह अब तक का पूर्वांचल का सबसे बड़ा हेल्थ इंश्योरेंस घोटाला साबित हो सकता है।

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खाते में हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम का रुपया आते ही 24 घंटे के भीतर ही हो जाता था बंदरबांट
जांच की जद में आए चारों नर्सिंग होमों के दस्तावेज खंगाल रही पुलिस, संचालकों से पूछताछ
गोरखपुर। हेल्थ इंश्योरेंस के नाम पर किए गए बड़े घोटाले की परतें अब धीरे-धीरे खुलने लगी हैं। डिसेंट हॉस्पिटल और उससे जुड़े चार नर्सिंग होमों के खिलाफ चल रही जांच में पुलिस ने चौंकाने वाले आंकड़े उजागर किए हैं। साइबर सेल की टीम ने जब डिसेंट अस्पताल के बैंक खाते की जांच की तो पता चला कि महज एक साल के भीतर करीब 15 करोड़ रुपये का लेन-देन किया गया। हैरानी की बात यह रही कि खाते में फिलहाल सिर्फ 9 हजार रुपये ही मिले।
बीमा कंपनियों से मरीजों के इलाज के नाम पर जो करोड़ों रुपये आए, उसकी अगले 24 घंटे के भीतर ही निकासी कर ली जाती थी। रकम अलग-अलग खातों में ट्रांसफर कर दी जाती थी या फिर कैश निकालकर सीधे संचालकों व दलालों तक पहुंचाई जाती थी। इस तरह पूरे नेटवर्क ने योजनाबद्ध तरीके से बीमा कंपनियों को करोड़ों रुपये का चूना लगाया। पुलिस सूत्रों के अनुसार जल्द ही मामले में कुछ और लोगों की गिरफ्तारी हो सकती है।
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पूरे मामले का पर्दाफाश तब हुआ जब बजाज आलियांस फाइनेंस कंपनी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। कंपनी ने बताया कि दिल्ली निवासी सत्यदीप के नाम पर 1.80 लाख रुपये का फर्जी हेल्थ इंश्योरेंस भुगतान हुआ है। जबकि जांच में यह पाया गया कि सत्यदीप कभी अस्पताल आए ही नहीं थे। खुद सत्यदीप ने भी इस बात की पुष्टि की। फर्जीवाड़े का मामला सामने आने पर पुलिस ने पहले ही डिसेंट हॉस्पिटल के संचालक शमशुल और उसके पार्टनर प्रवीण उर्फ विकास त्रिपाठी को गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया था।
पूछताछ में पता चला कि इन दोनों ने गोरखपुर और बस्ती स्थित डिसेंट हॉस्पिटल में 15 फर्जी मरीजों के नाम पर 1.20 करोड़ रुपये का बीमा क्लेम कराया था। पुलिस की तफ्तीश आगे बढ़ी तो इस घोटाले में कथित डॉक्टर गगहा निवासी अफजल और हॉस्पिटल मैनेजर का नाम भी सामने आया। दोनों को गिरफ्तार कर पूछताछ की गई तो यह पर्दाफाश हुआ कि जिस एपेक्स नामक अस्पताल में मरीजों का फॉलोअप दिखाया गया था, वह वास्तव में अस्तित्व में ही नहीं है। वहीं पुलिस ने डिसेंट अस्पताल की एक्सिस बैंक (चालू खाता) के खाते से लेनदेन से भी जांच को तेज कर दी है। पता चला है कि संचालक ने अस्पताल के नाम से खुले खाते में एक साल के भीतर करीब 15 करोड़ रुपये आए और फिर उसे आपस में बांटा गया है। कैश वालों की जानकारी तो सीसीटीवी कैमरों की मदद से जुटाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन ऑनलाइन वालों का डाटा पुलिस को मिल गया है, जिसके आधार पर जांच को आगे बढ़ाया जा रहा है।
एसपी सिटी अभिनव त्यागी का कहना है कि इस पूरे खेल में न सिर्फ डिसेंट हॉस्पिटल बल्कि शहर और आसपास के चार नर्सिंग होम भी शामिल हैं। इन्हीं के नाम पर मरीजों की फर्जी भर्ती और इलाज का रिकॉर्ड तैयार कर बीमा कंपनियों को क्लेम भेजा जाता था। टीम ने डिसेंट हॉस्पिटल के मैनेजर की गिरफ्तारी के बाद जब्त किए गए कंप्यूटर और हार्ड डिस्क से कई अहम फाइलें निकाली हैं। इनमें बीमा कंपनियों से किए गए लेन-देन, मरीजों की फर्जी भर्ती और भुगतान के रिकॉर्ड शामिल हैं। साइबर सेल की टीम अब उन सभी डिजिटल दस्तावेजों की बारीकी से जांच कर रही है। प्राथमिक जांच में यह भी सामने आया है कि कई मरीजों के नाम और आधार विवरण का बार-बार इस्तेमाल कर फर्जी क्लेम दाखिल किया गया।
चार अस्पताल संचालकों से हो रही पूछताछ
एसओ रामगढ़ताल नितिन रघुनाथ श्रीवास्तव के अगुवाई में पुलिस की विशेष टीम ने चारों नर्सिंग होमों के संचालकों को पूछताछ के लिए तलब किया है। उनसे यह जानने की कोशिश की जा रही है कि उनके खातों में कितनी रकम ट्रांसफर हुई और उन्होंने उसका इस्तेमाल कहां किया। जांच टीम इस बात की भी तहकीकात कर रही हैं कि आखिर इतनी बड़ी रकम के लेन-देन के बावजूद बैंकिंग सिस्टम और बीमा कंपनियों के ऑडिट में यह गड़बड़ी कैसे नहीं पकड़ में आई। जांच अधिकारियों का मानना है कि यह सिर्फ कुछ अस्पतालों और नर्सिंग होमों तक सीमित मामला नहीं है। इसके पीछे दलालों, बीमा कंपनी के एजेंटों और अस्पताल प्रबंधन से जुड़े बड़े नेटवर्क की संलिप्तता हो सकती है। फिलहाल पुलिस ने धनशोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) के पहलू को भी खंगालना शुरू कर दिया है। संभावना जताई जा रही है कि रकम का बड़ा हिस्सा अचल संपत्ति और दूसरे कारोबार में लगाया गया होगा।
चारों नर्सिंग संचालकों पर भी दर्ज हो सकता है केस
पुलिस सूत्रों के अनुसार, जैसे-जैसे सबूत जुट रहे हैं, जल्द ही चारों नर्सिंग होम संचालकों पर भी केस दर्ज कर उनकी गिरफ्तारी की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। अधिकारियों का कहना है कि यह अब तक का पूर्वांचल का सबसे बड़ा हेल्थ इंश्योरेंस घोटाला साबित हो सकता है।