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Gorakhpur News: सीतापुर से आए बाघिन और शावक तनाव में...नहीं ले रहे पूरी खुराक
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अलग-अलग नाइटसेल में रखा गया, कीपर को देखकर दोनों हो जा रहे आक्रामक, खुद को कर रहे चोटिल
गोरखपुर। चिड़ियाघर में सीतापुर से आए बाघिन और शावक तनाव में हैं। वह अपनी पूरी खुराक नहीं ले रहे। साथ ही कीपर के जाने पर आक्रामक हो जा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जंगल से लाकर नाइटसेल में रखने की वजह से उनके अंदर आक्रामकता बढ़ी है। चिड़ियाघर के चिकित्सक उनकी लगातार निगरानी कर रहे हैं।
शहीद अशफाक उल्ला खां प्राणि उद्यान में सीतापुर से एक बाघ और एक बाघिन को रेस्क्यू कर लाया गया है। बाघिन की उम्र करीब आठ वर्ष और बाघ इसी का शावक है। सीतापुर के महोली तहसील के नरनी गांव के जंगल में बाघों की संख्या क्षमता से अधिक हो गई थी। इसी कारण वन विभाग की टीम ने बाघिन को ट्रैंक्युलाइज कर पकड़ लिया था और उसे गोरखपुर चिड़ियाघर भेजा गया था। उसी इलाके के पास उस बाघिन का शावक दिखाई देने पर वन विभाग ने उसे भी सुरक्षित रेस्क्यू कर लिया।
चिड़ियाघर के उप निदेशक एवं मुख्य वन्यजीव चिकित्सक डॉ. योगेश प्रताप सिंह ने बताया कि फिलहाल शावक को निगरानी में रखा गया है। बाघिन भी अभी यहां के माहौल में पूरी तरह ढली नहीं है। दोनों को अलग-अलग नाइटसेल में रखा गया है। शावक अपनी मां से बिछड़ गया था। अब बाघिन इसे नहीं अपनाएगी।
कीपर भी नहीं जाते पास
बाघिन और शावक को क्वारंटीन सेंटर रास नहीं आ रहा है। नाइटसेल में वह तनाव में रहते है और कीपर के पास जाते ही आक्रामक हो जाते हैं। बाघिन सामान्य से कम खुराक भी ले रही है। यही हाल शावक का भी है। कीपर को देखते ही दोनों आक्रामक हो जाते हैं। नाइटसेल में रहकर वह दहाड़ मारते हैं। इसी वजह से इनके पास कीपरों को भी कम भेजा जा रहा है। दोनों को खाने के लिए बकरा और पड़वे (भैंस का बच्चा) का मीट दिया जा रहा है। कीपर किनारे से सेल में मीट डालकर निकल जाते हैं। बाघिन यदि कीपर या चिकित्सक को पास में देखती है तो आक्रामक हो जाती है। कई बार वह हमला करने के चक्कर में खुद को चोटिल कर ले रही है।

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गोरखपुर। चिड़ियाघर में सीतापुर से आए बाघिन और शावक तनाव में हैं। वह अपनी पूरी खुराक नहीं ले रहे। साथ ही कीपर के जाने पर आक्रामक हो जा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जंगल से लाकर नाइटसेल में रखने की वजह से उनके अंदर आक्रामकता बढ़ी है। चिड़ियाघर के चिकित्सक उनकी लगातार निगरानी कर रहे हैं।
शहीद अशफाक उल्ला खां प्राणि उद्यान में सीतापुर से एक बाघ और एक बाघिन को रेस्क्यू कर लाया गया है। बाघिन की उम्र करीब आठ वर्ष और बाघ इसी का शावक है। सीतापुर के महोली तहसील के नरनी गांव के जंगल में बाघों की संख्या क्षमता से अधिक हो गई थी। इसी कारण वन विभाग की टीम ने बाघिन को ट्रैंक्युलाइज कर पकड़ लिया था और उसे गोरखपुर चिड़ियाघर भेजा गया था। उसी इलाके के पास उस बाघिन का शावक दिखाई देने पर वन विभाग ने उसे भी सुरक्षित रेस्क्यू कर लिया।
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चिड़ियाघर के उप निदेशक एवं मुख्य वन्यजीव चिकित्सक डॉ. योगेश प्रताप सिंह ने बताया कि फिलहाल शावक को निगरानी में रखा गया है। बाघिन भी अभी यहां के माहौल में पूरी तरह ढली नहीं है। दोनों को अलग-अलग नाइटसेल में रखा गया है। शावक अपनी मां से बिछड़ गया था। अब बाघिन इसे नहीं अपनाएगी।
कीपर भी नहीं जाते पास
बाघिन और शावक को क्वारंटीन सेंटर रास नहीं आ रहा है। नाइटसेल में वह तनाव में रहते है और कीपर के पास जाते ही आक्रामक हो जाते हैं। बाघिन सामान्य से कम खुराक भी ले रही है। यही हाल शावक का भी है। कीपर को देखते ही दोनों आक्रामक हो जाते हैं। नाइटसेल में रहकर वह दहाड़ मारते हैं। इसी वजह से इनके पास कीपरों को भी कम भेजा जा रहा है। दोनों को खाने के लिए बकरा और पड़वे (भैंस का बच्चा) का मीट दिया जा रहा है। कीपर किनारे से सेल में मीट डालकर निकल जाते हैं। बाघिन यदि कीपर या चिकित्सक को पास में देखती है तो आक्रामक हो जाती है। कई बार वह हमला करने के चक्कर में खुद को चोटिल कर ले रही है।