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‘कर्ण गाथा’की गूंज दिखी: गोरखपुर महोत्सव के दिखा कर्ण के सूतपुत्र होने का सामाजिक दंश, कवच कुंडल की कहानी भी
अमर उजाला नेटवर्क, गोरखपुर
Published by: रोहित सिंह
Updated Wed, 15 Oct 2025 11:57 AM IST
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सार
नाटक में कर्ण के जन्म से लेकर जीवन के अंत तक की कथा को बेहद मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया। कुंती द्वारा त्यागे जाने से लेकर राधा-अधिरथ के स्नेह, गुरु द्रोणाचार्य और परशुराम द्वारा तिरस्कार, सूतपुत्र होने का सामाजिक दंश, इंद्र द्वारा कवच-कुंडल का छल से हरण और अंततः महाभारत युद्ध में अपने आदर्शों पर अडिग रहने तक के हर प्रसंग को जीवंतता के साथ मंचित किया गया।

‘कर्ण गाथा’ का मंचन करते हुए
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
गोरखपुर महोत्सव के चौथे दिन मंगलवार को योगिराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में महाभारत के महानायक कर्ण के जीवन पर आधारित नाटक ‘कर्ण गाथा’ का भावपूर्ण मंचन हुआ।

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भारतेंदु नाट्य अकादमी, लखनऊ के रंगमंडल की ओर से प्रस्तुत इस नाटक ने दर्शकों को एक ऐसा अनुभव दिया जिसमें भाग्य, कर्म, कर्तव्य और वीरता का समागम देखने को मिला। नाटक के दौरान दर्शक पूरी तरह से भावनाओं में डूबे नजर आए और हर दृश्य पर तालियों की गूंज सुनाई दी।
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नाटक में कर्ण के जन्म से लेकर जीवन के अंत तक की कथा को बेहद मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया। कुंती द्वारा त्यागे जाने से लेकर राधा-अधिरथ के स्नेह, गुरु द्रोणाचार्य और परशुराम द्वारा तिरस्कार, सूतपुत्र होने का सामाजिक दंश, इंद्र द्वारा कवच-कुंडल का छल से हरण और अंततः महाभारत युद्ध में अपने आदर्शों पर अडिग रहने तक के हर प्रसंग को जीवंतता के साथ मंचित किया गया।
नाटक की परिकल्पना एवं निर्देशन ओएसिस सउगाइजम ने किया। लेखक आसिफ अली की यह कृति रवीन्द्रनाथ टैगोर के कर्ण-कुंती संवाद से प्रेरित रही, जिसमें रामधारी सिंह दिनकर की रश्मिरथी, शिवाजी सावंत की मृत्युंजय और अज्ञेय की कविताओं के भावों को भी पिरोया गया था। पारंपरिक मंच सज्जा से हटकर विशेष रूप सज्जा, वस्त्र विन्यास, प्रकाश संयोजन और आधुनिक तकनीकों के प्रयोग ने प्रस्तुति को और भी प्रभावशाली बना दिया।
नाटक की परिकल्पना एवं निर्देशन ओएसिस सउगाइजम ने किया। लेखक आसिफ अली की यह कृति रवीन्द्रनाथ टैगोर के कर्ण-कुंती संवाद से प्रेरित रही, जिसमें रामधारी सिंह दिनकर की रश्मिरथी, शिवाजी सावंत की मृत्युंजय और अज्ञेय की कविताओं के भावों को भी पिरोया गया था। पारंपरिक मंच सज्जा से हटकर विशेष रूप सज्जा, वस्त्र विन्यास, प्रकाश संयोजन और आधुनिक तकनीकों के प्रयोग ने प्रस्तुति को और भी प्रभावशाली बना दिया।
कर्ण की भूमिका में आशुतोष जायसवाल ने दर्शकों का मन जीत लिया। राजश्री रॉय चौधरी कृष्ण के रूप में प्रभाव छोड़ने में सफल रहे। कुंती बनीं श्रुतिकीर्ति सिंह, राधा की भूमिका में अमृता सिंह, वृषाली बनीं वैष्णवी सेठ, अधिरथ के रूप में प्रखर पांडेय, और धात्री के रूप में श्वेता सोंधिया ने अपने-अपने पात्रों को विश्वसनीय रूप से निभाया।
नाटक की शुरुआत से पूर्व महोत्सव के दौरान आयोजित नुक्कड़ नाटक व पेंटिंग प्रतियोगिता के विजेताओं को सम्मानित किया गया। प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कार प्रदान किए गए।
नाटक की शुरुआत से पूर्व महोत्सव के दौरान आयोजित नुक्कड़ नाटक व पेंटिंग प्रतियोगिता के विजेताओं को सम्मानित किया गया। प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कार प्रदान किए गए।
पिंटू प्रीतम के लोकगीतों ने बांधा समां
नाटक के पूर्व बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह परिसर में पिंटू प्रीतम व साक्षी श्रीवास्तव की लोकगायन जोड़ी ने पारंपरिक भोजपुरी लोकगीतों की प्रस्तुति देकर समां बांधा। सेरवा चढ़ल देवी माई गर्जत आवें हो, कवन रंग मुंगवा, ननदी रे तोर भईया जैसे गीतों पर दर्शक झूमते नजर आए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आर. डी. सिंह व विशिष्ट अतिथि अतुल सराफ, राजू जायसवाल, कुमार आनंद, रंजना बागची और डॉ. एसके लाठ रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. ब्रजेंद्र नारायण ने किया एवं स्वागत अभियान थिएटर ग्रुप के अध्यक्ष श्रीनारायण पांडेय ने किया।
नाटक के पूर्व बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह परिसर में पिंटू प्रीतम व साक्षी श्रीवास्तव की लोकगायन जोड़ी ने पारंपरिक भोजपुरी लोकगीतों की प्रस्तुति देकर समां बांधा। सेरवा चढ़ल देवी माई गर्जत आवें हो, कवन रंग मुंगवा, ननदी रे तोर भईया जैसे गीतों पर दर्शक झूमते नजर आए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आर. डी. सिंह व विशिष्ट अतिथि अतुल सराफ, राजू जायसवाल, कुमार आनंद, रंजना बागची और डॉ. एसके लाठ रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. ब्रजेंद्र नारायण ने किया एवं स्वागत अभियान थिएटर ग्रुप के अध्यक्ष श्रीनारायण पांडेय ने किया।