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UP: 'अल फलाह' से निकलते ही कई बम कांड से चर्चा में आया मिर्जा, 2007 से ही है वांटेड शादाब बेग
रोहित सिंह, अमर उजाला, गोरखपुर
Published by: शाहरुख खान
Updated Mon, 24 Nov 2025 03:34 PM IST
सार
सूत्रों ने बताया कि मिर्जा शादाब बेग वर्ष 2003 में अल फलाह यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने गया था। 2007 में डिग्री पूरी होने के पहले ही उसने दो निजी कंपनियों में नौकरी की। इसी बीच गोरखपुर के गोलघर में तीन जगहों पर बम धमाके हुए और इसमें छह लोग घायल हो गए। जहां धमाका हुआ, वहां क्षतिग्रस्त साइकिल और उसकी खरीद की पर्ची मिली।
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मिर्जा शादाब बेग की फाइल फोटो और उसके आईकार्ड की प्रति
- फोटो : स्त्रोत- जांच एजेंसी
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विस्तार
अल फलाह यूनिवर्सिटी के आतंकी कनेक्शन की बात कोई नई नहीं है। दिल्ली में आतंकी हमले के मामले में जिस मिर्जा शादाब बेग की एजेंसियां तलाश कर रही हैं, उसका नाम इसी यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करके निकलते ही एक के बाद एक कई बम धमाकों में सामने आया था।
वर्ष 2007 में गोरखपुर के गोलघर बम ब्लास्ट से उसका नाम जुड़ा था। गोरखपुर के अलावा वाराणसी, फैजाबाद और लखनऊ कचहरी कांड में भी उसका नाम था। गोलघर ब्लास्ट में मिर्जा के नाम को लेकर लंबी जांच तो हुई, मगर साक्ष्यों के अभाव में एजेंसियां उसे केस से जोड़ न सकीं। हालांकि तब आजमगढ़ में उसकी कुछ संपत्तियां सीज की गई थीं।
दिल्ली आतंकी हमले के मामले में जांच एजेंसियों के रडार पर हरियाणा की अल फलाह यूनिवर्सिटी है। यहीं से मिर्जा ने वर्ष 2007 में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं इंस्ट्रूमेंटेशन में बीटेक की डिग्री ली थी। कुछ महीने बाद ही गोलघर में हुए ब्लास्ट में उसका नाम सामने आया।
एजेंसी के सूत्रों ने बताया कि मिर्जा दुबई की एक कंपनी में नौकरी की बात कहकर 19 सितंबर 2008 को घर से निकला था। पांच अक्तूबर को उसकी दुबई जाने की फ्लाइट थी और इसी के बाद से वह लापता है।
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वर्ष 2007 में गोरखपुर के गोलघर बम ब्लास्ट से उसका नाम जुड़ा था। गोरखपुर के अलावा वाराणसी, फैजाबाद और लखनऊ कचहरी कांड में भी उसका नाम था। गोलघर ब्लास्ट में मिर्जा के नाम को लेकर लंबी जांच तो हुई, मगर साक्ष्यों के अभाव में एजेंसियां उसे केस से जोड़ न सकीं। हालांकि तब आजमगढ़ में उसकी कुछ संपत्तियां सीज की गई थीं।
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दिल्ली आतंकी हमले के मामले में जांच एजेंसियों के रडार पर हरियाणा की अल फलाह यूनिवर्सिटी है। यहीं से मिर्जा ने वर्ष 2007 में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं इंस्ट्रूमेंटेशन में बीटेक की डिग्री ली थी। कुछ महीने बाद ही गोलघर में हुए ब्लास्ट में उसका नाम सामने आया।
एजेंसी के सूत्रों ने बताया कि मिर्जा दुबई की एक कंपनी में नौकरी की बात कहकर 19 सितंबर 2008 को घर से निकला था। पांच अक्तूबर को उसकी दुबई जाने की फ्लाइट थी और इसी के बाद से वह लापता है।
बेग को 2019 में अफगानिस्तान में देखा गया था। भारत सरकार की तरफ से उसपर एक लाख रुपये का इनाम भी घोषित है। एजेंसी के सूत्रों ने बताया कि जिस वक्त मिर्जा शादाब बेग अल फलाह यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहा था, उस समय फाउंडर वाइस चांसलर जवाद अहमद सिद्दीकी ही था। एजेंसियां दिल्ली बम धमाके में जवाद अहमद सिद्दीकी की भूमिका की जांच कर रही हैं।
केंद्रीय एजेंसी के सूत्रों के मुताबिक, आजमगढ़ निवासी मिर्जा शादाब बेग अपने परिवार में सात भाई-बहनों में सबसे बड़ा है। दो भाई जुड़वा हैं। मिर्जा शारिफ और आतिफ। इन दोनों की आजमगढ़ में ही दुकान है। अन्य भाई हैं मिर्जा शाहबाज बेग और मिर्जा आदिल बेग।
सूत्रों ने बताया कि मिर्जा शादाब बेग वर्ष 2003 में अल फलाह यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने गया था। 2007 में डिग्री पूरी होने के पहले ही उसने दो निजी कंपनियों में नौकरी की। इसी बीच गोरखपुर के गोलघर में तीन जगहों पर बम धमाके हुए और इसमें छह लोग घायल हो गए। जहां धमाका हुआ, वहां क्षतिग्रस्त साइकिल और उसकी खरीद की पर्ची मिली।
मोहद्दीपुर निवासी राजेश राठौर ने इस मामले में कैंट थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। पुलिस ने जांच शुरू की तो पता चला कि आतंकियों ने समीर के नाम से साइकिलों को खरीदा था। पुलिस रेती चौक स्थित साइकिल विक्रेता के पास पहुंची तो फिर मामला परत दर परत खुलता चला गया। जांच में पता चला कि शहर की ही एक मस्जिद में आतंकी अपनी पहचान छिपा कर रुके थे।
इस बात की तस्दीक उस मस्जिद के तत्कालीन मौलवी ने की थी। तत्कालीन जिला शासकीय अधिवक्ता यशपाल सिंह बताते हैं-जांच में शामिल एसआई ने दौरान विवेचना लिखा-पढ़ी में मौलवी का बयान दर्ज किया था। हालांकि कोर्ट में गवाही के पहले ही मौलवी का इंतकाल हो गया था।
एजेंसी के सूत्रों ने बताया कि मामले में आजमगढ़ के मिर्जा शादाब बेग का नाम भी सामने आया। तब साइकिल के दुकानदार, मौलवी और प्रत्यक्षदर्शी की ओर से आतंकियों के फोटो की तस्दीक करने पर आजमगढ़ निवासी आतिफ मुख्तार उर्फ राजू, सैफ और तारिक कासमी को कैंट थाने में अज्ञात में दर्ज केस में नामजद आरोपी बनाया गया था। मिर्जा शादाब वेग को ठोस साक्ष्य नहीं होने की वजह से नामजद नहीं किया जा सका।
आईएम से कनेक्शन मिलने पर सीज की गई यी संपत्ति
मिर्जा दिलशाद बेग आजमगढ़ जिले के देवगांव के बारीदीह गांव के राजा का किला मोहल्ले का रहने वाला है। केंद्रीय एजेंसी के सूत्रों की मानें तो 2007 के पहले ही वह इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) के संपर्क में आ गया था। इसी दौरान उसने अल फलाह विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रॉनिक्स एवं इंस्ट्रूमेंटेशन में डिग्री हासिल की। एजेंसी का मानना है कि पढ़ाई के दौरान ही विस्फोटक-तैयारी एवं लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में उसे तकनीकी विशेषज्ञ के रूप में देखा जाने लगा। गोरखपुर धमाके में अपरोक्ष तौर पर भूमिका और आईएम से नाम जुड़ने के बाद आजमगढ़ में उसकी संपत्ति भी सीज की गई थी।
मिर्जा दिलशाद बेग आजमगढ़ जिले के देवगांव के बारीदीह गांव के राजा का किला मोहल्ले का रहने वाला है। केंद्रीय एजेंसी के सूत्रों की मानें तो 2007 के पहले ही वह इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) के संपर्क में आ गया था। इसी दौरान उसने अल फलाह विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रॉनिक्स एवं इंस्ट्रूमेंटेशन में डिग्री हासिल की। एजेंसी का मानना है कि पढ़ाई के दौरान ही विस्फोटक-तैयारी एवं लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में उसे तकनीकी विशेषज्ञ के रूप में देखा जाने लगा। गोरखपुर धमाके में अपरोक्ष तौर पर भूमिका और आईएम से नाम जुड़ने के बाद आजमगढ़ में उसकी संपत्ति भी सीज की गई थी।
गोरखपुर ब्लास्ट में आरोपियों को मिली थी सजा
गोरखपुर बम ब्लास्ट में कुल 33 गवाह थे। इनमें सबसे महत्वपूर्ण गवाह मस्जिद के मौलवी थे, जिन्होंने अपना बयान पुलिस की जांच में दर्ज कराया। फोटो से आतंकियों की पहचान की थी। हालांकि कोर्ट की गवाही के पहले ही उनका निधन हो गया है। ऐसे में उनकी गवाही को कोर्ट में 'अबेट' कर दिया गया। इसी दौरान साल 2007 में नवंबर माह में वाराणसी, फैजाबाद और लखनऊ कचहरी में एक साथ बम धमाके हुए।
गोरखपुर बम ब्लास्ट में कुल 33 गवाह थे। इनमें सबसे महत्वपूर्ण गवाह मस्जिद के मौलवी थे, जिन्होंने अपना बयान पुलिस की जांच में दर्ज कराया। फोटो से आतंकियों की पहचान की थी। हालांकि कोर्ट की गवाही के पहले ही उनका निधन हो गया है। ऐसे में उनकी गवाही को कोर्ट में 'अबेट' कर दिया गया। इसी दौरान साल 2007 में नवंबर माह में वाराणसी, फैजाबाद और लखनऊ कचहरी में एक साथ बम धमाके हुए।
गोरखपुर में हुए धमाके भी वहां जैसे ही थे, इसलिए मिर्जा का नाम इस मामले में भी जुड़ा। मामले में तारिक आजमी की गिरफ्तारी और ट्रायल के बाद फैजाबाद कोर्ट से उसे 2019 में सजा मिली। तत्कालीन जिला शासकीय अधिवक्ता यशपाल सिंह ने बताया कि कोर्ट में उनकी अर्जी पर फैजाबाद से दी गई सजा की प्रति मंगवाई गई। गवाहों और अन्य प्रभावी दलीलों के आधार पर तारिक को सजा मिली।