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Fatehabad News: लैक्रोस में भविष्य बना रही है प्रिया-कनिष्ठा
संवाद न्यूज एजेंसी, फतेहाबाद
Updated Sun, 30 Nov 2025 11:34 PM IST
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लैक्रोस प्रतियोगिता में भाग लेने वाली दो बहनें प्रिया और कनिष्ठा स्त्रोत स्कूल
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फतेहाबाद। गांव खाबड़ा कलां की सगी बहनें प्रिया और कनिष्ठा लैक्रोस खेल में नए मुकाम तक पहुँचने की तैयारी में हैं। भिवानी में आयोजित प्रदेश स्तरीय लैक्रोस प्रतियोगिता में दोनों बहनों ने उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए तीसरा स्थान हासिल किया।
प्रिया पीडीएम कॉवेंट स्कूल खाबड़ा कलां की कक्षा ग्यारहवीं और कनिष्ठा दसवीं कक्षा की छात्रा है। ग्रामीण पृष्ठभूमि के बावजूद माता-पिता ने बेटियों को खेल में पूरा समर्थन दिया, जिससे उनकी मेहनत और लगन फलित हो रही है।
परिवार ने बताया कि शुरू में उन्हें लैक्रोस के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन खेल के संभावनाओं को समझते ही दोनों को नियमित अभ्यास के लिए प्रेरित किया। स्कूल स्टाफ भी लगातार सहयोग कर खेल में मार्गदर्शन प्रदान कर रहा है। शिक्षक समय निकालकर तकनीक सुधारने और रणनीति समझाने में मदद कर रहे हैं।
माता-पिता भी हर कदम पर बेटियों के साथ खड़े हैं। परिवार और शिक्षकों के सहयोग से प्रिया और कनिष्ठा भविष्य में प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर और बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद जगाकर खेल में नाम कमाने की दिशा में अग्रसर हैं।
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छोटी उम्र में बड़ा लक्ष्य
लैक्रोस जैसे अपेक्षाकृत कम चर्चित खेल में प्रदेश स्तर पर पदक जीतना दोनों बहनों के लिए आत्मविश्वास लेकर आया है। प्रिया और कनिष्ठा अब राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का सपना देख रही हैं और इसके लिए रोजाना कई घंटे अभ्यास करती हैं। उनके अनुसार, खेल ने उन्हें अनुशासन, फिटनेस और टीम वर्क का महत्व सिखाया है।
अन्य लड़कियों के लिए बनी प्रेरणा
प्रिंसिपल अनीता गिजरोइया का कहना है कि दोनों बहनों में खेल के प्रति काफी समर्पण है। रोजाना कठिन अभ्यास और नए कौशल सीखने की उनकी इच्छाशक्ति उन्हें अन्य खिलाड़ियों से अलग बनाती है। लड़कियां अक्सर पारंपरिक खेलों की ओर झुकाव रखती हैं, वहीं प्रिया और कनिष्ठा लैक्रोस में भविष्य बनाकर दूसरी छात्राओं के लिए प्रेरणा बन रही हैं।
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क्या हो लैक्रोस खेल
लैक्रोस एक तेज-तर्रार टीम खेल है। इसमें खिलाड़ी जालीदार टोकरी वाली छड़ियों का उपयोग करके गेंद को विरोधी टीम के गोल में डालने की कोशिश करते हैं। यह उत्तरी अमेरिका में सबसे पुराने संगठित खेलों में से एक है। इसकी जड़ें 12वीं शताब्दी में स्वदेशी खेलों से जुड़ी हैं। यह शारीरिक कौशल और रणनीति पर आधारित होता है, जिसमें खिलाड़ी गेंद को पकड़ने, फेंकने और ले जाने के लिए अपनी छड़ियों का उपयोग करते हैं।
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परिवार ने बताया कि शुरू में उन्हें लैक्रोस के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन खेल के संभावनाओं को समझते ही दोनों को नियमित अभ्यास के लिए प्रेरित किया। स्कूल स्टाफ भी लगातार सहयोग कर खेल में मार्गदर्शन प्रदान कर रहा है। शिक्षक समय निकालकर तकनीक सुधारने और रणनीति समझाने में मदद कर रहे हैं।
माता-पिता भी हर कदम पर बेटियों के साथ खड़े हैं। परिवार और शिक्षकों के सहयोग से प्रिया और कनिष्ठा भविष्य में प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर और बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद जगाकर खेल में नाम कमाने की दिशा में अग्रसर हैं।
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छोटी उम्र में बड़ा लक्ष्य
लैक्रोस जैसे अपेक्षाकृत कम चर्चित खेल में प्रदेश स्तर पर पदक जीतना दोनों बहनों के लिए आत्मविश्वास लेकर आया है। प्रिया और कनिष्ठा अब राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का सपना देख रही हैं और इसके लिए रोजाना कई घंटे अभ्यास करती हैं। उनके अनुसार, खेल ने उन्हें अनुशासन, फिटनेस और टीम वर्क का महत्व सिखाया है।
अन्य लड़कियों के लिए बनी प्रेरणा
प्रिंसिपल अनीता गिजरोइया का कहना है कि दोनों बहनों में खेल के प्रति काफी समर्पण है। रोजाना कठिन अभ्यास और नए कौशल सीखने की उनकी इच्छाशक्ति उन्हें अन्य खिलाड़ियों से अलग बनाती है। लड़कियां अक्सर पारंपरिक खेलों की ओर झुकाव रखती हैं, वहीं प्रिया और कनिष्ठा लैक्रोस में भविष्य बनाकर दूसरी छात्राओं के लिए प्रेरणा बन रही हैं।
क्या हो लैक्रोस खेल
लैक्रोस एक तेज-तर्रार टीम खेल है। इसमें खिलाड़ी जालीदार टोकरी वाली छड़ियों का उपयोग करके गेंद को विरोधी टीम के गोल में डालने की कोशिश करते हैं। यह उत्तरी अमेरिका में सबसे पुराने संगठित खेलों में से एक है। इसकी जड़ें 12वीं शताब्दी में स्वदेशी खेलों से जुड़ी हैं। यह शारीरिक कौशल और रणनीति पर आधारित होता है, जिसमें खिलाड़ी गेंद को पकड़ने, फेंकने और ले जाने के लिए अपनी छड़ियों का उपयोग करते हैं।