बड़ा झटका: सोनीपत में एटलस के बाद मिल्टन साइकिल कंपनी बंद, 250 कर्मचारियों को बिना वेतन के निकाला
दो साल पहले ही परिवार में कानूनी तौर पर बंटवारे को लेकर खींचतान शुरू हो गई। उसका असर पूरे एटलस ग्रुप पर पड़ गया। जहां एटलस को दो साल पहले ही ताला लगा दिया गया था, वहीं गाजियाबाद के साहिबाबाद की कंपनी भी करीब डेढ़ साल पहले बंद कर दी गई थी। उसी समय से मिल्टन भी बंदी की राह पर चली गई थी।

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हरियाणा में 69 साल पहले उद्योग की बड़ी नींव रखने वाली एटलस कंपनी के बंद होने के दो साल बाद दूसरी कंपनी मिल्टन साइकिल पर भी ताला लग गया है। एक दशक पहले तक देश व दुनिया तक साइकिल सप्लाई करने वाली मिल्टन कंपनी को अब प्रबंधन ने समेटना शुरू कर दिया है। इसका कारण परिवार में कानूनी तौर पर बंटवारे के लिए खींचतान बढ़ना बताया जा रहा है। मिल्टन कंपनी पर ताला लगाने के साथ ही करीब 250 कर्मियों को वेतन दिए बिना ही निकाल दिया गया है। अब उनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं है।

सोनीपत में वर्ष 1951 में एटलस साइकिल लिमिटेड की सबसे पहली यूनिट की नींव एटलस रोड पर रखी गई थी तो उसकी ही दूसरी यूनिट मिल्टन साइकिल इंडस्ट्रीज लिमिटेड की नींव भी उसी समय औद्योगिक क्षेत्र में रखी गई थी। मिल्टन में वर्ष 2003 तक साइकिल के पार्ट बनते थे और एटलस में पार्ट लाकर साइकिल तैयार की जाती थी। क्योंकि उस समय एटलस का नाम ज्यादा चलता था।
वर्ष 2003 में परिवार के बीच खींचतान हुई तो परिवार ने कंपनी चलाने के लिए अलग-अलग जिम्मेदारी तय कर दी। उस समय जयदेव कपूर के पास मिल्टन कंपनी चली गई थी तो एटलस साइकिल को अरुण, विक्रम व राजीव कपूर चलाने लगे। मिल्टन में तभी वर्ष 2003 में साइकिल बननी शुरू हो गई और उस समय वहां करीब 700 कर्मचारी थे। वहां एक महीने में 70 हजार साइकिल बन रही थीं और जब साइकिल की मांग बढ़ी तो वर्ष 2008 तक डेढ़ लाख साइकिल हर महीने बनने लगी थीं।
मिल्टन में साइकिल बनते ही एशिया के अधिकतर देशों में निर्यात शुरू हो गया था तो करीब वर्ष 2005 के पास वहां से यूरोप के देशों में साइकिल सप्लाई होने लगी। उस समय करीब 1200 कर्मचारी हो गए थे। वर्ष 2003 में एटलस ग्रुप के मैनेजमेंट में कंपनियों का केवल संचालन के लिए बंटवारा हुआ था लेकिन अब दो साल पहले ही परिवार में कानूनी तौर पर बंटवारे को लेकर खींचतान शुरू हो गई। उसका असर पूरे एटलस ग्रुप पर पड़ गया। जहां एटलस को दो साल पहले ही ताला लगा दिया गया था, वहीं गाजियाबाद के साहिबाबाद की कंपनी भी करीब डेढ़ साल पहले बंद कर दी गई थी। उसी समय से मिल्टन भी बंदी की राह पर चली गई थी।
दो साल से लगातार कर्मियों को निकाला जा रहा था। इससे करीब 250 कर्मचारी कंपनी में रह गए थे। कंपनी के कर्मियों के अनुसार मार्च 20 से मार्च 21 तक कर्मियों को आधा वेतन दिया गया। उसके बाद से वेतन देना बंद कर दिया गया। वहीं अब मिल्टन कंपनी पर ताला लगा दिया गया और सभी कर्मियों को नौकरी से निकाल दिया गया है। इस तरह से उद्योग की सबसे बड़ी नींव कही जाने वाली एटलस ग्रुप की एक और कंपनी पर ताला लग गया।
मिल्टन में दो साल पहले तक हजारों साइकिल बनती थीं और कंपनी को ऑर्डर भी खूब मिल रहे थे। परिवार की खींचतान का असर कंपनी का पड़ता रहा और कर्मचारियों के बारे में कुछ नहीं सोचा गया। अब अचानक कंपनी पर ताला लगा दिया गया और कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दिया गया। - सुरेंद्र सिंह, प्रधान मिल्टन साइकिल वर्कर्स यूनियन।
प्रबंधन के बीच चल रही खींचतान का खामियाजा कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है। एक साल से आधा वेतन दिया जा रहा था तो पिछले कई महीने से वेतन ही नहीं दिया गया। कंपनी को सही तरीके से चलाया जाए तो प्रबंधन व कर्मचारियों सभी के लिए बेहतर होगा। - सुरेंद्र मलिक, उप प्रधान।
कंपनी को बंद करने का मामला मेरे पास आया हुआ है, जिसमें प्रबंधन को बुलाया गया था तो उनकी ओर से सभी कागजात पेश किए गए। इसमें बताया गया कि उनके बीच कानूनी रूप से बंटवारे की प्रक्रिया चल रही है। उसके लिए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल चंडीगढ़ में मामला चल रहा है। इसलिए ही एटलस सोनीपत व एटलस गाजियाबाद को पहले बंद कर दिया गया था और अब मिल्टन भी बंद कर दी गई। - सुनील नांदल, असिस्टेंट लेबर कमिश्नर।