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आत्मा के सत्य को अनुभव करना आवश्यक : अमन
संवाद न्यूज एजेंसी, यमुना नगर
Updated Mon, 22 Dec 2025 12:23 AM IST
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वरिष्ठ नागरिक क्लब में विचार रखती ब्रह्मकुमारी। स्वयं
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संवाद न्यूज एजेंसी
यमुनानगर। विश्व ध्यान दिवस के अवसर पर रविवार को वरिष्ठ नागरिक क्लब सेक्टर-17 में एक दिवसीय ध्यान शिविर का आयोजन किया गया। इस अवसर पर ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय जगाधरी से मानसी ने बताया कि आत्म सशक्तिकरण की आज बहुत आवश्यकता है। अमन ने कहा कि परमात्मा के साथ जो आत्मा का सत्य जाता है उसको अनुभव करने को विशेष आवश्यक है।
संस्था सचिव ब्रजपाल सिंह ने कहा कि 21वीं सदी के वैज्ञानिक एवं प्रगतिवादी युग में मनुष्य के पास भौतिक सुख-सुविधाएं तो हैं परंतु मानसिक शांति के अभाव होने के कारण वह अशांत एवं अवसाद से ग्रस्त है। ध्यान शाश्वत प्रक्रिया हैं। जिसे ध्याता अपने भीतर सह चित आनंद को प्राप्त करता है। ध्यान से मानसिक शांति, ताजगी मिलेगी और आध्यात्मिक उन्नति होगी। नकारात्मक विचारों से मुक्ति मिलेगी।
उन्होंने कहा कि ध्यान हमें अपने भीतर को गहराइयों में ले जाता है। यहां विचारों को शांति, अनंत सुख और निरंतर आनंद का अनुभव होता है, जो मानसिक शांति शारीरिक स्वास्थ्य को भी बढ़ाता है। मौन से हमारा चित शुद्ध तथा शांत रहता है। मौन हमें सहिष्णुता, क्षमा एवं अनुशासन सिखाता है। डाॅ. गीता बैनीवाल ने कहा कि मौन को कमजोरी नहीं बल्कि आंतरिक शाक्ति मानना चाहिए। मन को स्थिर रखना आत्म स्थिति में मग्न रहना मौन सिखाता है। इस मौके पर डाॅ. पवन धीमान, सतपाल पंवार, रामपाल, रोशन लाल कैंसे, अरुण गुप्ता, विक्रम सिंह, निर्मल मेहत्ता, विनोद भारद्वाज उपस्थित रहे।
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यमुनानगर। विश्व ध्यान दिवस के अवसर पर रविवार को वरिष्ठ नागरिक क्लब सेक्टर-17 में एक दिवसीय ध्यान शिविर का आयोजन किया गया। इस अवसर पर ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय जगाधरी से मानसी ने बताया कि आत्म सशक्तिकरण की आज बहुत आवश्यकता है। अमन ने कहा कि परमात्मा के साथ जो आत्मा का सत्य जाता है उसको अनुभव करने को विशेष आवश्यक है।
संस्था सचिव ब्रजपाल सिंह ने कहा कि 21वीं सदी के वैज्ञानिक एवं प्रगतिवादी युग में मनुष्य के पास भौतिक सुख-सुविधाएं तो हैं परंतु मानसिक शांति के अभाव होने के कारण वह अशांत एवं अवसाद से ग्रस्त है। ध्यान शाश्वत प्रक्रिया हैं। जिसे ध्याता अपने भीतर सह चित आनंद को प्राप्त करता है। ध्यान से मानसिक शांति, ताजगी मिलेगी और आध्यात्मिक उन्नति होगी। नकारात्मक विचारों से मुक्ति मिलेगी।
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उन्होंने कहा कि ध्यान हमें अपने भीतर को गहराइयों में ले जाता है। यहां विचारों को शांति, अनंत सुख और निरंतर आनंद का अनुभव होता है, जो मानसिक शांति शारीरिक स्वास्थ्य को भी बढ़ाता है। मौन से हमारा चित शुद्ध तथा शांत रहता है। मौन हमें सहिष्णुता, क्षमा एवं अनुशासन सिखाता है। डाॅ. गीता बैनीवाल ने कहा कि मौन को कमजोरी नहीं बल्कि आंतरिक शाक्ति मानना चाहिए। मन को स्थिर रखना आत्म स्थिति में मग्न रहना मौन सिखाता है। इस मौके पर डाॅ. पवन धीमान, सतपाल पंवार, रामपाल, रोशन लाल कैंसे, अरुण गुप्ता, विक्रम सिंह, निर्मल मेहत्ता, विनोद भारद्वाज उपस्थित रहे।