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Mandi News: मेडिकल कॉलेज नेरचौक में गेस्ट्रोलॉजिस्ट की तैनाती की मांग

Shimla Bureau शिमला ब्यूरो
Updated Mon, 24 Nov 2025 01:15 AM IST
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Demand for posting of gastroenterologist in Medical College Nerchowk
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नेरचौक (मंडी)। श्री लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल नेरचौक में गेस्ट्रोलॉजिस्ट की मांग जोर पकड़ने लगी है। अस्पताल के प्रदेश के मध्य क्षेत्र में होने के चलते यहां रोजाना कुल्लू, लाहौल स्पीति, कांगड़ा और हमीरपुर जिलों से मरीज उपचार के लिए पहुंचते हैं। रोजाना 1500 के करीब ओपीडी रहती है।
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अस्पताल में गेस्ट्रोलॉजिस्ट की तैनाती को लेकर लोग प्रदेश सरकार और अस्पताल प्रबंधन से मांग उठा रहे हैं। लोगों का कहना है कि आधुनिक दौर में रहन सहन, खान पान व दैनिक क्रिया कलापों में बदलाव के चलते हर आयु वर्ग के लोगों को पेट संबंधी समस्या से जूझना पड़ता है। मंडी जिले के किसी भी सरकारी अस्पताल में गेस्ट्रोलॉजिस्ट की सुविधा नहीं है। इससे मरीजों को आईजीएमसी शिमला, पीजीआई चंड़ीगढ़ या एम्स बिलासपुर जाना पड़ता है।गेस्ट्रोलॉजिस्ट एक विशेषज्ञ चिकित्सक है, जो पाचन तंत्र संबंधी बीमारियों का उपचार करते हैं।
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अभी तक लोगों की ओर से इसके बारे में किसी तरह की लिखित में मांग नहीं की गई है। यदि मरीज गेस्ट्रोलॉजिस्ट की मांग करते हैं तो इस बारे में विभागीय उच्चाधिकारियों को अवगत करवाया जाएगा।
-डीके वर्मा, मेडिकल कॉलेज कम अस्पताल नेरचौक

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लंबे समय से पेट के रोग से परेशान हूं, मेडिकल कॉलेज एवं अन्य अस्पतालों में दिखाने पर चिकित्सकों ने यहां गेस्ट्रोलॉजिस्ट का पद न होने पर आईजीएमसी शिमला व एम्स जाने का सुझाव दिया है। प्रदेश सरकार को चाहिए इतने बड़े अस्पताल में मरीजों की सुविधा के लिए यहां गेस्ट्रोलॉजिस्ट की तैनाती करवाई जाए।
-निशा देवी निवासी पंडोह

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खान पान की वजह से आज हर किसी को गेस्टिक की समस्या झेलनी पड़ रही है। अस्पतालों में विशेषज्ञ न होने से लोगों को बेहतर उपचार नहीं मिल पा रहा। निजी अस्पतालों में टेस्ट, पर्ची फीस और दवाइयों पर भारी भरकम राशि वसूली जा रही है। ऐसे में हर कोई अपना उपचार निजी अस्पतालों में नहीं करवा सकता।
-शिवम गुलेरिया, निवासी चक्कर

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पेट में गैस बनने से सबसे ज्यादा परेशानी वरिष्ठ लोगों को होती है। जरा सा कुछ खाने पर पेट में गैस बन जाती है। शादी समारोह, त्योहारों या रिश्तेदारी में कुछ भी खाने पर पेट की समस्या से जूझना पड़ता है। उस पर जिला के अस्पतालों में इस रोग का स्थायी उपचार के लिए विशेषज्ञ ही नहीं है। कई बार तो बहुत ही बेचैनी हो जाती है।
-सत्या ठाकुर, निवासी नेरचौक
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