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कपड़ों को लेकर चर्चा में कांग्रेस उम्मीदवार: हिलेरी क्लिंटन से जैसिंडा अर्डर्न तक महिला नेता रहीं हैं निशाने पर, अर्चना गौतम के समर्थन में उतरीं कई महिला सांसद
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प्रियंका गांधी के साथ अर्चना गौतम
- फोटो :
Twitter : @archanagautamm
विस्तार
मेरठ के हस्तिनापुर सुरक्षित सीट से कांग्रेस उम्मीदवार अर्चना गौतम अपने कपड़े को लेकर इन दिनों काफी चर्चा में है। उनके बिकनी पहने फोटो को लेकर उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जा रहा है। हालांकि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी उनके बचाव में उतरी हैं लेकिन अर्चना गौतम खुद भी ट्रोल करने वालों को मुंहतोड़ जवाब दे रही हैं। उनका कहना है कि हर लड़की को कुछ भी कपड़े पहनने का अधिकार है और किसी का चरित्र उसके कपड़ों से नहीं नापा जा सकता।कौन है अर्चना गौतम?
अर्चना गौतम मेरठ के मवाना के नगला हरैरु में जन्मी हैं और मेरठ के शांता स्मारक से ही अपनी 12वीं की पढ़ाई की है। वह मॉडल और अभिनेत्री रही हैं और अब राजनीति में उतरी हैं। वह मिस कॉस्मो वर्ल्ड 2018, मिस यूपी 2014 भी रही हैं और मलेशिया में देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। उन्होंने कई फिल्मों में काम भी किया है। अर्चना की 28 जनवरी को उनकी एक फिल्म गुंडाज रिलीज भी हो रही है और दूसरी फिल्म भी आने वाली है।

मिमि चक्रवर्ती और नुसरत जहां
- फोटो :
Social Media
यह पहली बार नहीं
ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी महिला नेता को उनके कपड़ों या निजी जिंदगी को लेकर निशाना बनाया जा रहा है। इससे पहले भी कई बार महिला नेताओं पर उनके कपड़े, रहने के तौर-तरीके और उनकी निजी जिंदगी को लेकर टिप्पणी की जाती रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद जब तृणमूल कांग्रेस की सांसद नुसरत जहां सिंदूर लगाकर संसद पहुंची, तो पहले उनके सिंदूर लगाने और बाद में उनकी निजी जिंदगी को लेकर वे काफी ट्रोल हुईं।
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता विनय कटियार ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि उनकी पार्टी में कांग्रेस की प्रियंका से ज्यादा 'खूबसूरत' स्टार प्रचारक हैं।
कई महिला नेताओं और महिला सांसदों का कहना है भारतीय राजनीति में जैसे ही एक महिला सत्ता के लिए संघर्ष करती है, लोग उसके रूप और उसके कपड़ों के बारे में बात करना शुरू कर देते हैं, जैसे कि वह अपनी क्षमता के आधार पर वोट नहीं माग रही हैं। महिलाओं के शरीर, कपड़ों और सोशल मीडिया पर ट्रोल करके उनके लड़ने और नेतृत्व की भावना को कमजोर करने की कोशिश होती है।
2014 के लोकसभा चुनावों से पहले मार्च 2014 में कथित तौर पर एक लेख में देश की पांच भारतीय महिला राजनेताओं मायावती, ममता बनर्जी, जयललिता, उमा भारती और राबड़ी देवी के बारे में लिखा गया कि उन्हें ‘मेकओवर’ की जरूरत है। इस लेख में जॉर्डन की हिना रब्बानी खार और रानी रानिया अल अब्दुल्ला का हवाला देते हुए उन्हें ‘शानदार और ग्लैमरस’ कहा गया था।
ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी महिला नेता को उनके कपड़ों या निजी जिंदगी को लेकर निशाना बनाया जा रहा है। इससे पहले भी कई बार महिला नेताओं पर उनके कपड़े, रहने के तौर-तरीके और उनकी निजी जिंदगी को लेकर टिप्पणी की जाती रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद जब तृणमूल कांग्रेस की सांसद नुसरत जहां सिंदूर लगाकर संसद पहुंची, तो पहले उनके सिंदूर लगाने और बाद में उनकी निजी जिंदगी को लेकर वे काफी ट्रोल हुईं।
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता विनय कटियार ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि उनकी पार्टी में कांग्रेस की प्रियंका से ज्यादा 'खूबसूरत' स्टार प्रचारक हैं।
कई महिला नेताओं और महिला सांसदों का कहना है भारतीय राजनीति में जैसे ही एक महिला सत्ता के लिए संघर्ष करती है, लोग उसके रूप और उसके कपड़ों के बारे में बात करना शुरू कर देते हैं, जैसे कि वह अपनी क्षमता के आधार पर वोट नहीं माग रही हैं। महिलाओं के शरीर, कपड़ों और सोशल मीडिया पर ट्रोल करके उनके लड़ने और नेतृत्व की भावना को कमजोर करने की कोशिश होती है।
2014 के लोकसभा चुनावों से पहले मार्च 2014 में कथित तौर पर एक लेख में देश की पांच भारतीय महिला राजनेताओं मायावती, ममता बनर्जी, जयललिता, उमा भारती और राबड़ी देवी के बारे में लिखा गया कि उन्हें ‘मेकओवर’ की जरूरत है। इस लेख में जॉर्डन की हिना रब्बानी खार और रानी रानिया अल अब्दुल्ला का हवाला देते हुए उन्हें ‘शानदार और ग्लैमरस’ कहा गया था।

हिलेरी क्लिंटन
सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया भर में महिला नेताओं को लेकर पूर्वाग्रह
महिला राजनेताओं के रूप-रंग और उनके कपडों को लेकर पूर्वाग्रह और भेदभाव सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में है। मोनाश विश्वविद्यालय और नॉटिंघम विश्वविद्यालय के 2020 के एक अध्ययन में कहा गया है कि महिला नेताओं को उनके कपड़ों के आधार पर आंका जाता है। अध्ययन के मताबिक इस लैंगिक भेदभाव के कारण योग्य और महिला नेताओं को उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में कमतर आंका जाता है।
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में हिलेरी क्लिंटन को आधुनिक और ग्लैमरस कहा गया। उनके पैंटशूट पर टिप्पणी की गई और यह कहा गया कि उन्हें कितना मुस्कुराना चाहिए या कितना गंभीर रहना चाहिए। 2014 में ब्राउन पॉलिटिकल रिव्यू के एक अंश के अनुसार, 1985 में एक टेलीविजन कार्यक्रम में, मार्गरेट थैचर से बार-बार पूछा गया कि क्या अपने कपड़ों के प्रति सचेत रहने से उन्हें ‘बोरियत’ हुई थी।
महिला राजनेताओं के रूप-रंग और उनके कपडों को लेकर पूर्वाग्रह और भेदभाव सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में है। मोनाश विश्वविद्यालय और नॉटिंघम विश्वविद्यालय के 2020 के एक अध्ययन में कहा गया है कि महिला नेताओं को उनके कपड़ों के आधार पर आंका जाता है। अध्ययन के मताबिक इस लैंगिक भेदभाव के कारण योग्य और महिला नेताओं को उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में कमतर आंका जाता है।
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में हिलेरी क्लिंटन को आधुनिक और ग्लैमरस कहा गया। उनके पैंटशूट पर टिप्पणी की गई और यह कहा गया कि उन्हें कितना मुस्कुराना चाहिए या कितना गंभीर रहना चाहिए। 2014 में ब्राउन पॉलिटिकल रिव्यू के एक अंश के अनुसार, 1985 में एक टेलीविजन कार्यक्रम में, मार्गरेट थैचर से बार-बार पूछा गया कि क्या अपने कपड़ों के प्रति सचेत रहने से उन्हें ‘बोरियत’ हुई थी।

शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी
अमर उजाला डिजिटल ने इस सिलसिले में कई महिला नेताओं और सांसदों से बात कर इस पर प्रतिक्रिया ली। सभी एक साथ अर्चना गौतम के समर्थन में उतर गई हैं। महिला नेताओं ने एक सुर में इसे राजनीति में आने वाली महिलाओं को कमजोर बनाने का एक मनोवैज्ञानिक हथकंडा बताया है।
महिला नेताओं को योग्यता के आधार पर परखें, न कि वे क्या पहनती हैं-शिवसेना सांसद
शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी का कहना है ‘यह समस्या भारत में ज्यादा है क्योंकि यह पितृसत्तात्मक देश है। लेकिन दुनिया भर की महिला नेताओं को इस समस्या से गुजरना पड़ा है, चाहे वह हिलेरी क्लिंटन हों या न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न, इन सभी ताकतवर महिलाओं को महिला होने के कारण कपड़ों से लेकर कई वजहों से तरह-तरह की बातें सुननी पड़ीं। यह तरीका है कि महिलाओं के आत्मविश्वास को कम करने का। लोग महिला नेताओं के कपड़ों और लाइफस्टाइल को लेकर अश्लील और आपत्तिजनक टिप्पणी करते हैं और चाहते हैं कि महिलाओं को ऐसे रहना चाहिए जैसे मर्द देखना चाहते हैं।’
महिलाओं को दबाने का तरीका बन गया
प्रियंका चतुर्वेदी मानती हैं कि यह राजनीति में आने वाली महिलाओं पर दबाव डालने का तरीका है, ताकि वो आगे नहीं बढ़ें। अर्चना गौतम की उम्मीदवार को उनकी योग्यता, उनके चुनावी वादों और उसे पूरा करने की उनकी क्षमता और जनसेवा के प्रति उनके समर्पण के आधार पर आंका जाना चाहिए ना कि इस आधार पर कि वह क्या पहनती हैं?
वे कहती हैं ‘हम जैसी महिला नेता साड़ी पसंदीदा पहनावे के तौर पर पहनती हैं, लेकिन यदि कोई जींस भी पहनती हैं तो क्या दिक्कत है? ऐसा लगता है कि यह चुनाव में महिलाओं को दबाने और उन्हें आगे बढ़ने से रोकने का एक तरीका बन गया है।’
महिला नेताओं को योग्यता के आधार पर परखें, न कि वे क्या पहनती हैं-शिवसेना सांसद
शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी का कहना है ‘यह समस्या भारत में ज्यादा है क्योंकि यह पितृसत्तात्मक देश है। लेकिन दुनिया भर की महिला नेताओं को इस समस्या से गुजरना पड़ा है, चाहे वह हिलेरी क्लिंटन हों या न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न, इन सभी ताकतवर महिलाओं को महिला होने के कारण कपड़ों से लेकर कई वजहों से तरह-तरह की बातें सुननी पड़ीं। यह तरीका है कि महिलाओं के आत्मविश्वास को कम करने का। लोग महिला नेताओं के कपड़ों और लाइफस्टाइल को लेकर अश्लील और आपत्तिजनक टिप्पणी करते हैं और चाहते हैं कि महिलाओं को ऐसे रहना चाहिए जैसे मर्द देखना चाहते हैं।’
महिलाओं को दबाने का तरीका बन गया
प्रियंका चतुर्वेदी मानती हैं कि यह राजनीति में आने वाली महिलाओं पर दबाव डालने का तरीका है, ताकि वो आगे नहीं बढ़ें। अर्चना गौतम की उम्मीदवार को उनकी योग्यता, उनके चुनावी वादों और उसे पूरा करने की उनकी क्षमता और जनसेवा के प्रति उनके समर्पण के आधार पर आंका जाना चाहिए ना कि इस आधार पर कि वह क्या पहनती हैं?
वे कहती हैं ‘हम जैसी महिला नेता साड़ी पसंदीदा पहनावे के तौर पर पहनती हैं, लेकिन यदि कोई जींस भी पहनती हैं तो क्या दिक्कत है? ऐसा लगता है कि यह चुनाव में महिलाओं को दबाने और उन्हें आगे बढ़ने से रोकने का एक तरीका बन गया है।’

केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण और स्मृति ईरानी के साथ भाजपा की महिला सांसद।
- फोटो :
अमर उजाला
महिलाओं को कम आंकने की मर्दवादी सोच-कांग्रेस सांसद
केरल से कांग्रेस की सांसद राम्या हरिदास का कहना है निश्चित तौर पर यह महिलाओं को कम आंकने की एक मर्दवादी सोच है। यह लैंगिग भेदभाव है का एक और उदाहरण है, जिससे सिर्फ राजनीति ही नहीं बल्कि कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है।
हमें गुड़िया बनाकर रखना चाहते हैं-जदयू सांसद
वहीं जदयू की एक महिला सांसद का कहना है कि राजनीति में आने वाली महिलाओं को लेकर अभी भी कुछ लोगों की सोच घिसी-पिटी है। वे चाहते हैं कि महिलाएं मिट्टी की गुड़िया बनकर रहें। कुछ न कहें, बस सिर हिलाती रहें। जबकि महिलाओं को उनके नेतृत्व क्षमता के आधार पर आंका जाना चाहिए।
केरल से कांग्रेस की सांसद राम्या हरिदास का कहना है निश्चित तौर पर यह महिलाओं को कम आंकने की एक मर्दवादी सोच है। यह लैंगिग भेदभाव है का एक और उदाहरण है, जिससे सिर्फ राजनीति ही नहीं बल्कि कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है।
हमें गुड़िया बनाकर रखना चाहते हैं-जदयू सांसद
वहीं जदयू की एक महिला सांसद का कहना है कि राजनीति में आने वाली महिलाओं को लेकर अभी भी कुछ लोगों की सोच घिसी-पिटी है। वे चाहते हैं कि महिलाएं मिट्टी की गुड़िया बनकर रहें। कुछ न कहें, बस सिर हिलाती रहें। जबकि महिलाओं को उनके नेतृत्व क्षमता के आधार पर आंका जाना चाहिए।

लोकसभा सांसद नवनीत कौर राणा
- फोटो :
ANI
मैदान छोड़कर भाग जाएं, इसलिए महिला नेताओं को निशाना बनाया जाता है-निर्दलीय सांसद
वहीं निर्दलीय सांसद नवनीत कौर राणा का कहना है सिर्फ अर्चना गौतम ही नहीं उन जैसी कई महिला उम्मीदवार और नेता जो अपना हक मांगने निकलती हैं, उन्हें इस तरह की कई टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है। राजनीति में महिला उम्मीदवारों को नैतिक रूप से कमजोर बनाने और उन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के मकसद से उनके कपड़ों और उनके निजी जीवन पर टिप्पणी की जाती है।
उनका कहना है 'वे मैदान छोड़कर भाग जाएं इसलिए उनके विरोधी इस तरह के हथकंडे अपनाते हैं। महिलाएं चाहे जिस भी क्षेत्र में यदि वे आगे बढ़ने की कोशिश करती हैं तो उन्हें दबाने की भी चौतरफा कोशिश होती है, मैंने खुद इस तरह की कई बातों को सहा है, लेकिन मैंने उसका मुकाबला किया है। हर महिलाओं को इस तरह की सोच का मुकाबला करना ही होगा, तभी वे अपने आगे बढ़ने के रास्ते निकाल सकती हैं।'
वहीं निर्दलीय सांसद नवनीत कौर राणा का कहना है सिर्फ अर्चना गौतम ही नहीं उन जैसी कई महिला उम्मीदवार और नेता जो अपना हक मांगने निकलती हैं, उन्हें इस तरह की कई टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है। राजनीति में महिला उम्मीदवारों को नैतिक रूप से कमजोर बनाने और उन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के मकसद से उनके कपड़ों और उनके निजी जीवन पर टिप्पणी की जाती है।
उनका कहना है 'वे मैदान छोड़कर भाग जाएं इसलिए उनके विरोधी इस तरह के हथकंडे अपनाते हैं। महिलाएं चाहे जिस भी क्षेत्र में यदि वे आगे बढ़ने की कोशिश करती हैं तो उन्हें दबाने की भी चौतरफा कोशिश होती है, मैंने खुद इस तरह की कई बातों को सहा है, लेकिन मैंने उसका मुकाबला किया है। हर महिलाओं को इस तरह की सोच का मुकाबला करना ही होगा, तभी वे अपने आगे बढ़ने के रास्ते निकाल सकती हैं।'