अमर उजाला संगम: आज होंगे मन मोहने वाले कई आयोजन, सर्दी में मनोरंजन के साथ लें व्यंजनों का भी मजा; एंट्री फ्री
Amar Ujala Sangam: गोमती रिवर फ्रंट पर चल रहा संगम कार्यक्रम का गुरुवार को दूसरा दिन होगा। पहले दिन की ही तरह यहां विविध तरह के मनोरंजक कार्यक्रम होंगे।
विस्तार
ये कार्यक्रम होंगे मुख्य आकर्षण
- जैन समाज की ओर से श्रद्धा जैन की मंगलाचरण प्रस्तुति।
- जैन समाज की खुशी जैन की ओर से भक्ति नृत्य।
- सिंधी समाज की ओर से सिंधी भजन।
- मुस्लिम समाज की ओर से लखनऊ घराने का कथक।
- इस्कॉन के अपरिमेय दास की ओर से परीक्षा के तनाव से मुक्ति पर कार्यशाला।
- केजीएमयू से पूर्वोत्तर विद्यार्थियों की ओर से कार्यक्रम।
- लखनऊ विश्वविद्यालय के विदेशी विद्यार्थियों का कार्यक्रम।
- संजय त्रिपाठी की ओर से एक दिन की छुट्टी नाटक।
- डॉ. अपूर्वा अवस्थी की ओर से कन्नौजी कहानी।
- संस्कृति विभाग और समाज कल्याण की ओर से बुजुर्गों की रामलीला।
- अवधी समाज की ओर से अवध के लोकगीत।
- संस्कृति विभाग की ओर से कार्यक्रम
- उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक करेंगे गोमती आरती।
- उत्तर प्रदेश की विभिन्न बोलियों के लोकगीतों की प्रस्तुति, गीत एवं भाव नृत्य संगम।
- शाम में सूफी गायक कुमार सत्यम की प्रस्तुति।
- निलोत्पल मृणाल, कलीम कैसर, शबीना अदीब, हिमांशी बावरा, मनु वैशाली, रामायण धर द्विवेदी और मुकेश श्रीवास्तव का कवि सम्मेलन।
बुधवार को हुए विविध आयोजन
गोमती का किनारा और सर्दी की गुनगुनी धूप के बीच बुधवार को देशभर की संस्कृतियों का ऐसा अद्भुत संसार सजा कि देखने वाले भी मोहित हुए बिना नहीं रह सके। बंगाल से गुजरात और कश्मीर से उड़ीसा, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तराखंड और केरल तक की संस्कृतियां एक ही प्रांगण में आकर ऐसे मिलीं कि पूरा भारत मानो एक ही जगह इकट्ठा हो गया हो। मौका था अमर उजाला और संस्कृति विभाग की ओर से दो दिवसीय ‘संगम संस्कृतियों का’ के आयोजन का। गोमतीनगर में समतामूलक चौराहे के निकट रिवर फ्रंट पर सजे इस महोत्सव में दिनभर चलीं सांस्कृतिक गतिविधियों की अंतिम प्रस्तुति के रूप में देश के प्रख्यात कवि कुमार विश्वास ने देर रात तक श्रोताओं को अपनी कविताओं की धुन पर झुमाया। कुमार विश्वास ने लखनऊ से जुड़े अपने किस्से भी सुनाए। हिंमाशु बाजपेयी के साथ बात करते हुए उन्होंने पहले के लखनऊ और अभी के लखनऊ की चर्चा भी की।
पहले दिन विभिन्न समाजों के स्टॉलों पर उनकी संस्कृतियों और स्वादिष्ट व्यंजनों ने अतिथियों का स्वागत किया, तो वहीं सांस्कृतिक मंच पर भारतीय संस्कृति के अलग-अलग रंगों ने गीत-संगीत और नृत्य की छटा बिखेरी। प्रदेश के संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह ने सुबह दीप प्रज्ज्वलन कर आयोजन का शुभारंभ किया। उन्होंने अलग-अलग समाज के स्टाॅलों का निरीक्षण भी किया। सांस्कृतिक मंच की शुरुआत वाद्ययंत्रों के साथ वैदिक मंत्रोच्चार से हुई। इसके बाद शुरू हुआ देशभर के राज्यों से जुड़े लखनऊ में रहने वाले समाजों की ओर से सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का सिलसिला। यह सिलसिला शाम तक चला। दोपहर बाद पहुंचे उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी स्टॉलों का निरीक्षण किया और विभिन्न समाजों के लोगों से मुलाकात की। यहां लगी प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया और बिहार की मधुबनी पेंटिंग की तारीफ की। उन्होंने कहा कि संस्कृतियों का संगम कराकर अमर उजाला प्रतिवर्ष देश की अलग-अलग संस्कृतियों का मिलन कराता है।
सांस्कृतिक मंच पर कलाकारों की प्रस्तुतियों के साथ ही ओपन माइक के तहत अन्य कलाकारों और शहर के अलग-अलग विद्यालयों के छात्र-छात्राओं को भी अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला, जिन्होंने अपनी प्रस्तुतियों से दर्शकों का मन मोह लिया। गरबा और डांडिया के माध्यम से कलाकारों का जोश दिखा तो वहीं आल्हा, पुरबिहा गायन और बिरहा के साथ ही बीहू, जोहारी, भरतनाट्यम, कथक, बुंदेलखंडी व राई नृत्य ने सभी का दिल जीत लिया।
बच्चों के लिए अलग से किड्स जोन भी था, जिसमें नन्हे-मुन्नों ने रेलगाड़ी, ऊंट, घोड़ा और बग्घी की सवारी का आनंद उठाया। शाम को अपराजिता की प्रस्तुति खूब सराही गई। इसमें विभिन्न बोलियों के लोकगीतों की प्रस्तुतियों और भाव नृत्य ने लोगों को भावविभोर कर दिया। पहले दिन के आयोजनों में अंतिम और बेहद खास प्रस्तुति रही देश के ख्यातिलब्ध कवि और गीतकार कुमार विश्वास की। उन्होंने अपने मुक्तकों, कविताओं और गीतों से ऐसा समा बांधा कि श्रोता तालियों से उनका अभिवादन करते रहे। बृहस्पतिवार को आयोजन का दूसरा दिन है।
कुमार विश्वास ने सुनाए किस्से और कविताएं
देश के सुप्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास ने कहा कि अब हर चुनाव के बाद विपक्षी अब पक्षी बन जाता है। वहीं, राजनीति में स्वीकार्यता और सहनशीलता इतनी कम हो गई है कि विपक्षी को विरोधी मान लिया जाता है। यह बातें कुमार विश्वास ने बुधवार शाम अमर उजाला और संस्कृति विभाग की ओर से रिवरफ्रंट पर आयोजित दो दिवसीय समारोह संगम संस्कृतियों का'' में कहीं।
विश्वास ने कहा कि एक समय था जब राजनीति में स्वीकार्यता बहुत थी, लेकिन अब समस्या यह आ गई है कि राजनीति में अस्वीकार्यता बढ़ती जा रही है जो बहुत घातक है। राजनीति पर चुटीली टिप्पणियों के जरिये उन्होंने सरकारों को भी आईना दिखाया। उन्होंने कहा कि राजनीति से जो ठहाका या चुलबुलापन गायब हो रहा है, उसे कायम रखने की जिम्मेदारी हम सबकी है।
आजकल लोकतंत्र में निर्णय संख्या से होने लगे हैं और गुणवत्ता पीछे छूट गई है। हमारी औकात श्रोताओं से ही है। इसलिए हम तो श्रोताओं के लिए ही लिखते और सुनाते हैं। उन्होंने कहा कि राजनीतिक लोग तो हमें अपने फायदे के लिए ही बुलाते हैं। सत्ता या राजनीति के लिए कभी ट्रॉफी मत बनो क्योंकि अपना काम निकल जाने के बाद वे आपको भूल जाएंगे। उन्होंने कहा कि जनता जो सवाल सीधे सत्ता से नहीं कर पाती है, उसके लिए वे कवि को अपना प्रतिनिधि मानते हैं और यह सोचते हैं कि कवि हमारी बात जोरदार तरीके से कहेगा।
