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Bihar Election: लालू के गांव में समोसा अब सिर्फ आलू के भरोसे नहीं, उनके गढ़ में लहरा रहे नीतीश के पोस्टर-बैनर

विजय त्रिपाठी, संपादक अमर उजाला, फुलवरिया (गोपालगंज) से लौटकर Published by: भूपेन्द्र सिंह Updated Fri, 19 Sep 2025 12:39 PM IST
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सार

Bihar Election 2025: लालू यादव के गांव में समोसा अब सिर्फ आलू के भरोसे नहीं हैं। आज उनके गांव में नीतीश के पोस्टर-बैनर लहरा रहे हैं। हालांकि उनके गांव में आज भी लोगों को लालू के बच्चों से उम्मीद हैं। हमीद मियां कहते हैं... अब लालू के बच्चे के हाथ में हमारे बच्चों का भविष्य है। उनकी नौकरी सबसे बड़ा मुद्दा है। आगे पढ़ें पूरी ग्राउंड रिपोर्ट...

Bihar Election: Nitish posters and banners are flying in former CM Lalu Yadav village read ground report
लालू यादव के गांव फुलवरिया में सीएम नीतीश कुमार की नीतियों का गुणगान करती होर्डिंग। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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'जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू....' इस नारे की गहराई नापने हम लालू के गांव फुलवरिया पहुंचे। बदले बदले बिहार में कुछ यहां भी बदला दिखा। गांव के बाहर चौराहे पर लालू के पुश्तैनी मकान से बमुश्किल फलांग भर दूर दुकान पर मिलने वाला समोसा सिर्फ आलू के भरोसे नहीं रहा, उसे अब मटर, चना, चटनी के साथ जायकेदार बनाकर परोसा जा रहा है। दुकानदार सोनू यादव कहते हैं... बाबू अब लोगों का स्वाद बदल रहा है। पहले जैसा सादा समोसा ग्राहक को पसंद नहीं आता।

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सामाजिक न्याय के सूत्रधार बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के इस दुलारे फुलवरिया गांव में सारी सुविधाएं भरपूर हैं। रेलवे स्टेशन, अस्पताल, विकास मुख्यालय, रजिस्ट्री आफिस, थाना, कचहरी, हर स्तर का स्कूल-कालेज वगैरह। जिला गोपालगंज का यह दूर तक फैला गांव लालू का दीवाना है। बूढ़ों से लेकर युवाओं तक हर कोई लालू से पारिवारिक रिश्ता बताता है।

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दो-दो मुख्यमंत्री देने वाला गांव है...

यूं तो बहुतायत यादव जाति के लोगों की है, लेकिन दीगर जातिवाले भी लालू के मुरीद हैं। दो-दो मुख्यमंत्री देने वाला गांव है, जिनमें से एक लालू प्रसाद यादव का यह पैतृक गांव है तो दूसरी हैं उनकी पत्नी राबड़ी देवी, जो इस गांव में बहू बनकर आईं थीं। इसके अलावा बिहार की सियासत को जानने वाले लोग गोपालगंज के एक वक्त डीएम रहे जी. कृष्णैया के हत्याकांड का जिक्र करते हैं तो भी जिले का नाम आ ही जाता है। 

दोपहर का वक्त है और चौराहे पर चकल्लस तारी है। राजनीति पर चर्चा छिड़ती है तो लोगों में गुस्सा दिखता है, कहते हैं कि 20 वर्षों से (जब से नीतीश सीएम हैं) गांव में एक नया काम नहीं हुआ। बढ़ती उम्र के कारण लालू का यहां आना कम हुआ है, लेकिन उनके बड़े बेटे तेजप्रताप का यहां खासा आना-जाना है। सुदेश कुमार यादव कहते हैं कि आज हम जो बराबर बैठे हैं, चप्पल-जूता पैर में है वो सिर्फ लालू जी के कारण है।

'लालू के बच्चे के हाथ में हमारे बच्चों का भविष्य...'

रवींद्र दुबे उलाहना देते हैं कि आज किसान को बीज की, पानी की, स्कूल में शिक्षकों को कमी है। सरकार हमसे सौतेला व्यवहार कर रही है। प्रभु दयाल पुराने दिन याद करते कहते हैं... फुलवरिया की हालत ये थी कि यहां सड़क तो दूर, सिर्फ कीचड़ और दलदल होता था। कार भूल जाइए, बाइक नहीं आ पाती थी। हमीद मियां बोलते हैं... अब लालू के बच्चे के हाथ में हमारे बच्चों का भविष्य है। उनकी नौकरी सबसे बड़ा मुद्दा है।

जीवन भर लड़े लालू आज भी लड़ रहे हैं...

अपनी बीमारी, बुजुर्गियत और आपराधिक मुकदमों से, वे राजनीतिक और सामाजिक जीवन, दोनों के नेपथ्य में हैं। उनकी अपनी पार्टी राजद के वे राष्ट्रीय अध्यक्ष तो हैं लेकिन चुनावी बैनर पोस्टर, होडिंग से वे गायब हैं। पार्टी में सिर्फ उनके बेटे तेजस्वी की ही चलती है, ड्राइविंग सीट पर वही हैं। वहीं इस चुनाव में पार्टी का चेहरा-मोहरा है। हालांकि एनडीए गठबंधन का पूरा फोकस है कि चुनाव में लालू और लालूराज उछलता रहे। भाजपा संगठन के एक बड़े नेता कहते हैं कि लालू भले सक्रिय भूमिका में न हों, ढाई दशक पहले सत्ता में रहे हों, हम वोटर को लालू का जंगलराज भूलने नहीं देंगे।

चारा कांड में सजायाफ्ता... 

77 साल के लालू के चुनाव लड़ने पर रोक है, सक्रियता भी महज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बयान जारी करने तक ही है। महज 29 साल की उम्र में 1977 में छपरा से लोकसभा चुनाव में 85 फीसदी वोट पाकर तहलका मचाने वाले एक जमाने के फायरब्रांड नेता लालू आज अशक्त हैं, अक्षम हैं, अस्वस्थ हैं और घर व अदालत, दोनों मोर्चों पर चुनौतियों से रूबरू हैं।

अदालत में उन पर भ्रष्टाचार के कई मुकदमे हैं तो परिवार वालों की सियासी महत्वाकांक्षाओं ने घर में अशांति पैदा कर रखी है। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने बड़े बागी बेटे तेजप्रताप को शांत कर पार्टी के काम में लगाने की है। और, इन सब परिस्थितियों से जूझता उनका संकल्प है-तेजस्वी की ताजपोशी का।
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