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यूपी: मुस्लिम शादियों में नया ट्रेंड, अपने जीजा से एक खास तरह का एग्रीमेंट साइन करवा रही हैं सालियां
समीउद्दीन नीलू, अमर उजाला नेटवर्क लखनऊ
Published by: रोहित मिश्र
Updated Mon, 01 Dec 2025 11:07 AM IST
सार
Muslim weddings in UP: मुस्लिम शादियों में इन दिनों नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है। निकाह से पहले दूल्हे से सालियां और दुल्हन की सहेलियां लिखित एग्रीमेंट साइन करवाती हैं।
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एग्रीमेंट और इस पर साइन करातीं सालियां।
- फोटो : amar ujala
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विस्तार
मुस्लिम शादियों में इन दिनों एक नया और दिलचस्प चलन तेजी से पांव पसार रहा है। निकाह से पहले दूल्हे से सालियां और दुल्हन की सहेलियां लिखित एग्रीमेंट साइन करवाती हैं, जिसमें दुल्हन को विदेश घुमाने से लेकर चूल्हा–चौका और घरेलू कामों में हाथ बंटाने तक की शर्तें शामिल रहती हैं।
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मुस्लिम समाज की शादियों में भी बदलते दौर की झलक देखने को मिल रही है। कभी समय था, जब दुल्हन की बहनें और उसकी सहेलियां निकाह के बाद शादी हाॅल के स्टेज पर या अलग कमरे में दूल्हे की सलाम कराई रस्म के समय ही सामने आती थीं। दूल्हे से हंसी-मजाक की सीमा सिर्फ जूता चुराई तक ही सीमित रहती थी, लेकिन बदलते दौर में नई और रोचक परंपरा जन्म ले रही है। शादी की रस्मों के दौरान सालियां और दुल्हन की सहेलियां दूल्हे से बाकायदा एक एग्रीमेंट पर दस्तखत करवा रही हैं।
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इस एग्रीमेंट में साफ लिखा जाता है कि शादी के बाद दूल्हा, दुल्हन को विदेश घुमाने ले जाएगा, घरेलू कामकाज में मदद करेगा और वैवाहिक जीवन में बराबरी निभाएगा। मजाक और मस्ती में शुरू हुई यह रस्म अब एक ट्रेंड बनती जा रही है। जानकारों का मानना है कि बदलते वक्त के साथ शादी की रस्में भी बदल रही हैं। आज की पीढ़ी रिश्तों में साझेदारी, सम्मान और समझ को पहली शर्त मानती है। ऐसे में सालियों का एग्रीमेंट केवल मस्ती ही नहीं, नए सामाजिक संकेत भी देता है।
मौलाना बोले मजाक का हिस्सा
एग्रीमेंट और इस पर साइन करातीं सालियां।
निकाह पवित्र बंधन है, इसे हल्के-फुल्के मनोरंजन तक सीमित रखते हुए शरीअत की हद में रहना चाहिए। लिखित एग्रीमेंट सालियों की मजाक का हिस्सा है, लेकिन उसमें कोई गैरवाजिब शर्त नहीं होनी चाहिए।- मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, अध्यक्ष- इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया
नई पीढ़ी बराबरी और साझेदारी को अहमियत देती है। एग्रीमेंट वाली रस्म एक हल्की-फुल्की पहल है, जो दूल्हे को यह याद दिलाती है कि शादी सिर्फ दुल्हन की जिम्मेदारी नहीं बल्कि दोनों की है।- हसीब अहमद सिद्दीकी, बेंच सेक्रेटरी स्टेट पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल
हम सहेलियों ने भी कई शादियों में ऐसा एग्रीमेंट करवाया है। असल मकसद मजा और यादगार पल बनाना होता है। दूल्हा भी मुस्कुराते हुए मान जाता है।
- डॉ. असमा फारूक, प्रोफेसर- इंटीग्रल यूनिवर्सिटी
इस तरह की नई रस्में जहां रिश्तों में मधुरता लाती हैं, वहीं यह भी दर्शाती हैं कि लड़कियां अब अपनी अपेक्षाओं को खुलकर सामने रखने लगी हैं। यह बदलाव समाज में बढ़ती जागरूकता का संकेत भी है।
- फरहीन रियात उर्फ जूबी, नौकरीपेशा
नई पीढ़ी बराबरी और साझेदारी को अहमियत देती है। एग्रीमेंट वाली रस्म एक हल्की-फुल्की पहल है, जो दूल्हे को यह याद दिलाती है कि शादी सिर्फ दुल्हन की जिम्मेदारी नहीं बल्कि दोनों की है।- हसीब अहमद सिद्दीकी, बेंच सेक्रेटरी स्टेट पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल
हम सहेलियों ने भी कई शादियों में ऐसा एग्रीमेंट करवाया है। असल मकसद मजा और यादगार पल बनाना होता है। दूल्हा भी मुस्कुराते हुए मान जाता है।
- डॉ. असमा फारूक, प्रोफेसर- इंटीग्रल यूनिवर्सिटी
इस तरह की नई रस्में जहां रिश्तों में मधुरता लाती हैं, वहीं यह भी दर्शाती हैं कि लड़कियां अब अपनी अपेक्षाओं को खुलकर सामने रखने लगी हैं। यह बदलाव समाज में बढ़ती जागरूकता का संकेत भी है।
- फरहीन रियात उर्फ जूबी, नौकरीपेशा