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Bhopal News: राजधानी भोपाल में विश्व रंग 2025 का भव्य उद्घाटन, साहित्य, कला और संस्कृति का वैश्विक संगम शुरू
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल
Published by: संदीप तिवारी
Updated Thu, 27 Nov 2025 08:54 PM IST
सार
भोपाल में शुरू हुए विश्व रंग महोत्सव का उद्घाटन अंतरराष्ट्रीय गरिमा के साथ हुआ, जहां मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति और एमपी के राज्यपाल की विशेष मौजूदगी ने कार्यक्रम की प्रतिष्ठा को और बढ़ा दिया। साहित्य, कला और संस्कृति के वैश्विक संगम के रूप में यह महोत्सव देश-दुनिया के रचनाकारों को एक मंच पर जोड़ रहा है।
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विश्व रंग का शुभारंभ
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
भोपाल में गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय साहित्य-कला महोत्सव ‘विश्व रंग 2025’ के सातवें संस्करण का शुभारंभ रविन्द्र भवन परिसर में अत्यंत भव्यता के साथ हुआ। उद्घाटन समारोह में राज्यपाल मंगुभाई पटेल, मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति पृथ्वीराज सिंह रूपन, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं विश्वरंग के महानिदेशक डॉ. संतोष चौबे, SGSU के कुलाधिपति डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी और कई देशों से आए साहित्यकार, कलाकार एवं विद्वान मौजूद रहे। कार्यक्रम में विश्वरंग हिंदी रिपोर्ट और विश्वरंजन क्लॉज का लोकार्पण किया गया। साथ ही रचनाकार ममता कालिया, हरीश मीनाश्रु, चन्द्रभान ख्याल, एचएन शिवप्रकाश, लक्ष्मण गायकवाड़ और परेश नरेन्द्र कामत को विश्वरंग मानद अलंकरण से सम्मानित किया गया। भारतीय डाक विभाग ने विश्वरंग-2025 पर आधारित विशेष अलंकरण जारी कर आयोजन में और गरिमा जोड़ी।
भारतीय संस्कृति और वैश्विक साहित्य का समन्वय
राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने कहा कि विश्व रंग भारतीय परंपरा और आधुनिक विचारधारा को जोड़ने वाला सशक्त सांस्कृतिक सेतु है। मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति पृथ्वीराज सिंह ने भारतीय साहित्य को वैश्विक समाज के लिए मानवीय संवेदना और सांस्कृतिक संतुलन का अद्भुत मार्गदर्शक बताया। डॉ. संतोष चौबे ने कहा कि विश्व रंग केवल एक महोत्सव नहीं, बल्कि सभ्यता, बहुभाषिकता और वैश्विक सौहार्द का मंच है, जो भारतीय रचनात्मक चेतना को नई ऊंचाइयों तक ले जाता है। सह निदेशक डॉ. अदिति वत्स चतुर्वेदी ने कहा कि मानद अलंकरण रचनाकारों के योगदान के साथ भारतीय भाषाओं की समृद्ध परंपरा का भी उत्सव है।
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शोभायात्रा और प्रदर्शनियों में दिखी सांस्कृतिक विविधता
उद्घाटन से पहले निकली शोभायात्रा ने पूरे परिसर को रंगों, संगीत और लोकधुनों से सराबोर कर दिया। असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, पंजाब, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के दलों ने अपनी पारंपरिक वेशभूषा और नृत्य शैलियों से भारतीय संस्कृति की व्यापकता को प्रदर्शित किया। बिहू, राजवाड़ी, मटकी और गरबा जैसे नृत्यों ने कार्यक्रम में उत्साह भर दिया। रवीन्द्र भवन परिसर में लगी प्रदर्शनियों में असम हैंडलूम, पारंपरिक ज्वेलरी, लोकपरिधान, हस्तशिल्प, विरासत और व्यंजनों ने पहले ही दिन दर्शकों का खास आकर्षण बटोरा। भारत की समाचार सुर्खियों के 100 वर्षों की ऐतिहासिक प्रदर्शनी और गिरमिटिया इतिहास पर केंद्रित प्रदर्शनी भी चर्चा का केंद्र रहीं।
यह भी पढ़ें-आईएएस वर्मा के बयान पर भोपाल में भड़का ब्राह्मण समाज, रोशनपुरा चौराहे पर सड़क जाम, किया पुतला दहन
कृष्णा नृत्य नाटिका ने बांधा समा
श्रीराम भारतीय कला केंद्र द्वारा प्रस्तुत नृत्य नाटिका ‘कृष्णा’ ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। लगभग ढाई घंटे की इस प्रस्तुति में भगवान कृष्ण के जन्म से लेकर महाभारत तक की लीलाओं को उत्कृष्ट कला, शैली और सजीव अभिनय के माध्यम से मंचित किया गया। पद्मश्री शोभा दीपक सिंह के निर्देशन में तैयार इस मंचन में मयूरभंज छऊ और कलारीपयट्टू जैसी भारतीय नृत्य परंपराओं का सटीक मिश्रण देखते ही बनता था। उत्कृष्ट कोरियोग्राफी, प्रकाश व्यवस्था, वेशभूषा और संगीत ने प्रस्तुति को आध्यात्मिक और कलात्मक दोनों स्तरों पर यादगार बना दिया।
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राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने कहा कि विश्व रंग भारतीय परंपरा और आधुनिक विचारधारा को जोड़ने वाला सशक्त सांस्कृतिक सेतु है। मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति पृथ्वीराज सिंह ने भारतीय साहित्य को वैश्विक समाज के लिए मानवीय संवेदना और सांस्कृतिक संतुलन का अद्भुत मार्गदर्शक बताया। डॉ. संतोष चौबे ने कहा कि विश्व रंग केवल एक महोत्सव नहीं, बल्कि सभ्यता, बहुभाषिकता और वैश्विक सौहार्द का मंच है, जो भारतीय रचनात्मक चेतना को नई ऊंचाइयों तक ले जाता है। सह निदेशक डॉ. अदिति वत्स चतुर्वेदी ने कहा कि मानद अलंकरण रचनाकारों के योगदान के साथ भारतीय भाषाओं की समृद्ध परंपरा का भी उत्सव है।
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श्रीराम भारतीय कला केंद्र द्वारा प्रस्तुत नृत्य नाटिका ‘कृष्णा’ ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। लगभग ढाई घंटे की इस प्रस्तुति में भगवान कृष्ण के जन्म से लेकर महाभारत तक की लीलाओं को उत्कृष्ट कला, शैली और सजीव अभिनय के माध्यम से मंचित किया गया। पद्मश्री शोभा दीपक सिंह के निर्देशन में तैयार इस मंचन में मयूरभंज छऊ और कलारीपयट्टू जैसी भारतीय नृत्य परंपराओं का सटीक मिश्रण देखते ही बनता था। उत्कृष्ट कोरियोग्राफी, प्रकाश व्यवस्था, वेशभूषा और संगीत ने प्रस्तुति को आध्यात्मिक और कलात्मक दोनों स्तरों पर यादगार बना दिया।

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