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Maulana Madani:'लव जिहाद' जैसे शब्दों पर मौलाना महमूद मदनी ने जताई आपत्ति, सुप्रीम कोर्ट पर की विवादित टिप्पणी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by: आनंद पवार Updated Sat, 29 Nov 2025 05:24 PM IST
सार

भोपाल में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की बैठक में मौलाना महमूद मदनी ने ‘जिहाद’ शब्द के दुरुपयोग और मुसलमानों के खिलाफ बढ़ती नकारात्मक धारणाओं पर कड़ा एतराज जताया। उन्होंने कहा कि संवेदनशील माहौल में किसी भी समुदाय को निराशा की ओर धकेलना देश के लिए हानिकारक है।

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Jamiat meeting in Bhopal: Maulana Madani expressed concern over misuse of the word 'jihad' and targeting of th
महमूद मदनी और संबित पात्रा। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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भोपाल में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की नेशनल गवर्निंग बॉडी मीटिंग में इस्लामी विद्वान मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मनों ने जिहाद जैसी इस्लाम की पवित्र अवधारणा को दुर्व्यवहार, अव्यवस्था और हिंसा से जुड़े शब्दों में बदल दिया है। 'लव जिहाद', 'भूमि जिहाद', 'शिक्षा जिहाद' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके मुसलमानों को गहरी ठेस पहुंचाई गई है। इससे धर्म का अपमान होता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार और मीडिया में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने में कोई शर्म महसूस नहीं करते है।
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'एक विशेष समुदाय को जबरन निशाना बनाया जा रहा'
इस्लामी विद्वान मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि देश की वर्तमान स्थिति अत्यंत संवेदनशील और चिंताजनक है। दुःख की बात है कि एक विशेष समुदाय को जबरन निशाना बनाया जा रहा है, जबकि अन्य समुदायों को कानूनी रूप से शक्तिहीन, सामाजिक रूप से अलग-थलग और आर्थिक रूप से अपमानित किया जा रहा है। भीड़ द्वारा हत्या, बुलडोजर कार्रवाई, वक्फ संपत्तियों पर कब्जा और धार्मिक मदरसों व सुधारों के विरुद्ध नकारात्मक अभियान जैसे व्यवस्थित और संगठित प्रयास उनके धर्म, पहचान और अस्तित्व को कमजोर करने के लिए किए जा रहे हैं।
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एसआईआर पर क्या बोले मदनी?
उन्होंने आगे कहा कि एसआईआर भी किया जा रहा है, और यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है। अगर हम इस पर कड़ी नजर रखें, तो हम निराशा से बच सकते हैं, क्योंकि निराशा किसी भी समुदाय के लिए जहर है और अगर कोई समुदाय जीवित है, तो इससे बचने की और भी ज्यादा जरूरत है।

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मदनी ने कहा कि इस देश में मुसलमानों के अनुकूल लगभग 10 फीसदी लोग हैं, जो अलग-अलग वजहों से हमारे पक्ष में हैं। इसी तरह लगभग 30 फीसदी लोग समुदाय के विरोध में हैं, जबकि एक अनुमान के अनुसार 60 फीसदी लोग ऐसे हैं जो न हमारे अनुकूल हैं और न ही विरोध में। यह जो खामोश बहुमत है, उसे फिरका-परस्त लोग अपनी ओर झुकाने की कोशिश कर रहे हैं। मदनी ने कहा कि यदि यह वर्ग उनके प्रभाव में आ गया, तो यह देश और मुसलमानों दोनों के लिए एक गंभीर खतरे की घंटी होगी।

उन्होंने कहा कि यदि हम चाहते हैं कि फिरकापरस्त तत्व कामयाब न हों, तो समुदाय को मानवता की चिंता करने वाला रवैया अपनाना होगा और अपनी प्रतिनिधिक सोच पर नियंत्रण रखना होगा। मुसलमान अपने ओहदे को पहचानें, दूसरों के साथ बेहतर रिश्ते स्थापित करें, एक-दूसरे के धर्म का सम्मान करें और साथ ही दूसरों को दीन-इस्लाम की सच्चाई से अवगत कराएँ।

अदालतें सरकार के दबाव में काम कर रहीं 
मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि बहुत अफसोस के साथ ये कहना पड़ रहा है कि बीते कुछ अरसे से खासकर बाबरी मस्जिद, तीन तलाक और कई अन्य मामलों में फैसलों के बाद ऐसा लगता है कि पिछले कुछ वर्षों से अदालतें सरकार के दबाव में काम कर रही हैं। 

जिंदा कौम पर क्या बोले
मौलाना महमूद मदनी कहते हैं कि मुर्दे कौम मुश्किलों में नहीं पड़ते। वे सरेंडर कर देते हैं। उनसे वंदे मातरम पढ़ने को कहा जाएगा और वे तुरंत ऐसा करना शुरू कर देंगे। यही 'मुर्दे कौम' की निशानी है। अगर यह 'ज़िंदा कौम' है, तो हौसला बढ़ाना होगा और हालात का डटकर सामना करना होगा। 
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