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MP News: भोपाल गैस कांड पीड़ितों के लिए उचित मुआवजे की मांग लेकर 10 महिलाएं अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by: आनंद पवार Updated Fri, 30 Dec 2022 09:31 PM IST
सार

भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा कि आज बिन पानी अनशन शुरू करने वाली हमारी दस बहादुर बहनें निम्न जाति के हिंदू और मुस्लिम तथा गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों से हैं। ये सभी लंबे समय से गैस जनित लम्बी बीमारियों से पीड़ित हैं और हादसे के कारण अधिकांश ने अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया है। 

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MP News: 10 women sit on indefinite fast demanding proper compensation for the victims of Bhopal gas tragedy
गैस पीड़ित महिलाएं धरने पर बैठी (फाइल फोटो) - फोटो : सोशल मीडिया
भोपाल में 1984 की यूनियन कार्बाइड गैस हादसे से पीड़ित 10 महिलाओं ने हादसे से हुई मौतों और प्रभावितों के लिए उचित अतिरिक्त मुआवजे की मांग लेकर आज बिना पानी के अपना अनिश्चितकालीन अनशन शुरू किया। सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पीड़ितों के पांच संगठनों के नेताओं ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि यदि केंद्र व राज्य सरकारें जल्द ही सुनी जाने वाली सुधार याचिका में मौतों और प्रभावितों के आंकड़ों में संशोधन नहीं करती हैं तो भोपाल के पीडि़तों को एक बार फिर यूनियन कार्बाइड और उसके मालिक डाव केमिकल से उचित मुआवजे लेने से वंचित कर दिया जाएगा।

 
 
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गैस पीड़ित महिलाएं बैठी अनिश्चितकालीन धरने पर - फोटो : अमर उजाला
भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा, “आज बिन पानी अनशन शुरू करने वाली हमारी दस बहादुर बहनें निम्न जाति के हिंदू और मुस्लिम तथा गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों से हैं। ये सभी लंबे समय से गैस जनित लम्बी बीमारियों से पीड़ित हैं और हादसे के कारण अधिकांश ने अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया है। कुछ के बच्चे और पोते जन्मजात विकृतियों वाले हैं। फिर भी, 93% प्रभावित आबादी की तरह, उन्हें आपदा के कारण हुई चोटों के लिए केवल 25 हजार रुपये का मुआवज़ा दिया गया है।”
 
भोपाल गैस पीड़ित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव ने कहा कि“1997 में मनमाने ढंग से मृत्यु के दावों के पंजीकरण को रोकने के बाद, सरकार सर्वोच्च न्यायालय को बता रही है कि आपदा के कारण केवल 5295 लोग मारे गए। आधिकारिक रिकॉर्ड स्पष्ट रूप से बताते हैं कि 1997 के बाद से आपदा के कारण होने वाली बीमारियों से हजारों लोग मरते रहे हैं और मृत्यु का वास्तविक आंकड़ा 25 हजार के करीब है। राज्य और केंद्र सरकारों पर शासन करने वाली पार्टी, जो मौत के आंकड़ों को कम कर रही है, डाव केमिकल के करीब है, जिसे पार्टी के अभियान कोष में योगदान देने के लिए जाना जाता है।  
 
पीड़ित महिलाओं के निर्जल उपवास पर बोलते हुए भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने कहा, “हमारा सत्याग्रह यह सुनिश्चित करने के लिए है कि 10 जनवरी को सुधार याचिका की सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच को अमेरिकी कम्पनियों द्वारा ढाहे गए नुकसान का सही अन्दाज लग   सके। । हमने अपने शांतिपूर्ण विरोध के लिए पुलिस अधिकारियों से अनुमति लेने की पूरी कोशिश की लेकिन हमें बताया गया कि हमें आज शाम 4 बजे तक निकलना है। सरकार दुनिया की सबसे खराब औद्योगिक हादसे  के बारे में हमारे देश की शीर्ष अदालत को गुमराह करने की पूरी कोशिश कर रही है और इसके खिलाफ बोलने के लिए हमें पुलिस कार्रवाई की धमकी दी जा रही है।"
 
कॉरपोरेट-सरकार की मिलीभगत का आरोप लगाते हुए भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के नवाब खान ने कहा कि 'डॉव केमिकल को कानूनी जिम्मेदारी से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को सरकार द्वारा बताया जा रहा है कि 90 फीसदी से ज्यादा लोग यूनियन कार्बाइड के जानलेवा गैस से केवल अस्थायी रूप से घायल हो गए हैं। सरकार ने अस्पताल के रिकॉर्ड और शोध डेटा पेश नहीं करने का फैसला किया है जो दिखाते हैं कि गैस पीड़ितों को वास्तव में स्थायी चोटें और पुरानी बीमारियां हुईं। आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि गैस प्रभावित 95% लोग जिन्हें कैंसर हो गया था और 97% लोग जो घातक गुर्दे की बीमारियों से पीड़ित थे, उन्हें अस्थायी रूप से घायल के रूप में वर्गीकृत किया गया था। गैस प्रभावित आबादी का भारी बहुमत मुस्लिम और निम्न जाति के हिंदू है, यह दूसरा कारण प्रतीत होता है कि सरकार गैस पीड़ितों को होने वाली स्वास्थ्य क्षति की वास्तविक चित्र  को प्रस्तुत करने में दिलचस्पी नहीं रखती है।"
 
डॉव कार्बाइड के खिलाफ बच्चे के नौशीन खान ने कहा कि “इस साल की शुरुआत में, रसायन और उर्वरक मंत्री, जो भोपाल आपदा से संबंधित मामलों के प्रभारी हैं, ने हमसे इस बारे में सही सही कदम उठाने का वादा किया है। प्रदेश सरकार में भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के प्रधान सचिव ने भी यही कहा हैं। हालांकि, उनमें से कोई भी हमें यह नहीं बताते कि मौतों और बीमारियों के आंकड़े वास्तव में सुधार याचिका में सुधारे गए हैं या नहीं।
 
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