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Chhindwara News: जहां पहाड़ भी झुकते हैं आस्था के आगे, शुरू हुई नागद्वारी यात्रा, जयकारों से गूंजे पहाड़
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, छिंदवाड़ा
Published by: छिंदवाड़ा ब्यूरो
Updated Mon, 21 Jul 2025 01:33 PM IST
सार
मध्यप्रदेश के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व की रहस्यमयी वादियों में हर साल होने वाली नागद्वारी यात्रा शुरू हो गई है। 17 किमी की कठिन पैदल यात्रा श्रद्धालुओं के साहस, आस्था और संयम की अद्भुत मिसाल है।
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सतपुड़ा की रहस्यमयी वादियों में शुरू हुई नागद्वारी यात्रा
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
सतपुड़ा की घनी, रहस्यमयी और सर्पाकार वादियों में इन दिनों "हर हर महादेव" के जयकारे गूंज रहे हैं। ये आवाज़ें किसी सामान्य धार्मिक आयोजन की नहीं, बल्कि एक ऐसी साधना की प्रतीक हैं जिसमें आस्था, साहस और आत्मबल का अद्भुत मेल दिखाई देता है। नागद्वारी यात्रा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन की कठिनाइयों को पार करने की जीवंत मिसाल बन चुकी है। मध्यप्रदेश के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के अंदर स्थित नागद्वारी मंदिर तक की यह यात्रा 17 किलोमीटर की दुर्गम, पथरीली और घने जंगलों से घिरी पैदल यात्रा है। रास्ता बादलों से ढंका होता है, कई बार आंखों से ओझल हो जाता है, लेकिन भक्त नहीं रुकते। क्योंकि उनका संबल होता है नागदेव पर अडिग विश्वास।
करीब सौ वर्षों से भी अधिक पुरानी इस परंपरा में महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की कई पीढ़ियां शामिल होती रही हैं। हर साल 5 लाख से अधिक श्रद्धालु इस कठिन यात्रा में भाग लेते हैं। यात्रा की शुरुआत पचमढ़ी से होती है और गणेशगिरी, कालाझाड़, काजली, पद्मशेष, स्वर्ग द्वार और चित्रशाला माता होते हुए श्रद्धालु नागद्वारी मंदिर पहुंचते हैं। पद्मशेष और नंदीगढ़ जैसे पड़ावों को भक्त चमत्कारी मानते हैं। कहा जाता है कि नंदीगढ़ की चोटी पर सूर्योदय के साथ नागलोक में अदृश्य ऊर्जा का अनुभव होता है।
ये भी पढ़ें: रामपुर नैकिन बस स्टैंड पर शराबी का हंगामा, लोगों ने की धुनाई, वीडियो वायरल
यात्रा में कभी राह में सांप मिलना आम बात थी, जिन्हें श्रद्धालु बिना भय के हटाकर आगे बढ़ जाते थे। आज यह दृश्य दुर्लभ है, लेकिन मान्यता है कि नाग देवता स्वयं रास्ता छोड़ देते हैं। इस यात्रा में छिंदवाड़ा और पिपरिया के कोरकू आदिवासी अहम भूमिका निभाते हैं। वे यात्रियों के लिए मंडलों का सामान ढोते हैं, रसोई चलाते हैं और रात्रि विश्राम की व्यवस्था करते हैं। साथ ही महाराष्ट्र से आए अनेक धार्मिक मंडल भक्तों को भोजन, चाय और सेवा प्रदान करते हैं।
साल में सिर्फ एक बार और केवल दस दिनों के लिए खुलने वाला यह रास्ता इस बार 19 जुलाई से 29 जुलाई तक खुला रहेगा। नागद्वारी यात्रा अब श्रद्धालुओं के साथ-साथ पर्यटकों, व्लॉगर्स और फोटोग्राफर्स को भी आकर्षित कर रही है। प्रकृति, आध्यात्म और साहस का यह संगम अब एक नया रोमांचक पर्यटन केंद्र भी बनता जा रहा है। यह यात्रा बताती है कि जब श्रद्धा, साहस और संयम एक साथ चलते हैं तो पर्वत भी नतमस्तक हो जाते हैं। नागद्वारी यात्रा केवल एक पदयात्रा नहीं, बल्कि भक्त और भगवान के बीच अटूट जुड़ाव की प्रत्यक्ष अनुभूति है।
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करीब सौ वर्षों से भी अधिक पुरानी इस परंपरा में महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की कई पीढ़ियां शामिल होती रही हैं। हर साल 5 लाख से अधिक श्रद्धालु इस कठिन यात्रा में भाग लेते हैं। यात्रा की शुरुआत पचमढ़ी से होती है और गणेशगिरी, कालाझाड़, काजली, पद्मशेष, स्वर्ग द्वार और चित्रशाला माता होते हुए श्रद्धालु नागद्वारी मंदिर पहुंचते हैं। पद्मशेष और नंदीगढ़ जैसे पड़ावों को भक्त चमत्कारी मानते हैं। कहा जाता है कि नंदीगढ़ की चोटी पर सूर्योदय के साथ नागलोक में अदृश्य ऊर्जा का अनुभव होता है।
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यात्रा में कभी राह में सांप मिलना आम बात थी, जिन्हें श्रद्धालु बिना भय के हटाकर आगे बढ़ जाते थे। आज यह दृश्य दुर्लभ है, लेकिन मान्यता है कि नाग देवता स्वयं रास्ता छोड़ देते हैं। इस यात्रा में छिंदवाड़ा और पिपरिया के कोरकू आदिवासी अहम भूमिका निभाते हैं। वे यात्रियों के लिए मंडलों का सामान ढोते हैं, रसोई चलाते हैं और रात्रि विश्राम की व्यवस्था करते हैं। साथ ही महाराष्ट्र से आए अनेक धार्मिक मंडल भक्तों को भोजन, चाय और सेवा प्रदान करते हैं।
साल में सिर्फ एक बार और केवल दस दिनों के लिए खुलने वाला यह रास्ता इस बार 19 जुलाई से 29 जुलाई तक खुला रहेगा। नागद्वारी यात्रा अब श्रद्धालुओं के साथ-साथ पर्यटकों, व्लॉगर्स और फोटोग्राफर्स को भी आकर्षित कर रही है। प्रकृति, आध्यात्म और साहस का यह संगम अब एक नया रोमांचक पर्यटन केंद्र भी बनता जा रहा है। यह यात्रा बताती है कि जब श्रद्धा, साहस और संयम एक साथ चलते हैं तो पर्वत भी नतमस्तक हो जाते हैं। नागद्वारी यात्रा केवल एक पदयात्रा नहीं, बल्कि भक्त और भगवान के बीच अटूट जुड़ाव की प्रत्यक्ष अनुभूति है।

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