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Jabalpur News: विभागीय जांच के बिना नहीं दे सकते कठोर सजा, हाईकोर्ट ने निरस्त किया आरक्षक का बर्खास्तगी आदेश

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, जबलपुर Published by: जबलपुर ब्यूरो Updated Thu, 20 Nov 2025 10:17 PM IST
सार

हाईकोर्ट ने भोपाल के आरक्षक सुभाष गुर्जर की बर्खास्तगी रद्द की। जस्टिस दीपक खोत ने कहा- बिना विभागीय जांच व सुनवाई के कठोर सजा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है। अनुच्छेद 311(2) का अपवाद केवल दोषसिद्धि पर लागू होता है। विभागीय जांच के आदेश दिए। 

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Cannot be punished with severe punishment without departmental inquiry
मप्र हाईकोर्ट
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विस्तार
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हाईकोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा है कि विभागीय जांच के बिना कठोर सजा से दंडित किया जाना प्राकृतिक न्याय के प्रमुख सिद्धांत का उल्लंघन है। हाईकोर्ट जस्टिस दीपक खोत ने इस टिप्पणी के साथ पुलिस विभाग में पदस्थ आरक्षक के बर्खास्तगी के आदेश को निरस्त कर दिया।
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भोपाल निवासी सुभाष गुर्जर की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया था कि वह पुलिस विभाग में आरक्षक के पद पर पदस्थ था। उसके खिलाफ अपराधिक प्रकरण दर्ज होने के कारण बिना सुनवाई का अवसर दिए उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। उसके खिलाफ साजिश के तहत आपराधिक प्रकरण दर्ज किए गए थे। इसमें से कुछ में वह दोषमुक्त हो गया और कुछ लंबित हैं। किसी भी प्रकरण में उसे दोषी करार नहीं दिया गया है। बर्खास्तगी की कार्यवाही करने के पूर्व उसे कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया गया था। सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1966 और पुलिस नियमों के अंतर्गत किसी विभागीय जांच के बिना बर्खास्तगी का आदेश पारित करना अवैधानिक है।
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सरकार की तरफ से तर्क दिया गया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 311 (2) के संवैधानिक अधिदेश को लागू करते हुए याचिकाकर्ता को सेवा से बर्खास्त किया गया।

एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि अनुच्छेद 309 और 311 सरकारी कर्मचारी को किसी भी अन्यायपूर्ण भेदभाव या विभागीय कार्यवाही से सुरक्षा प्रदान करते हैं। भारत के संविधान का अनुच्छेद 311(2) सामान्य नियम के अपवादों में प्रावधान है कि जांच का सामान्य नियम ऐसे कर्मचारियों पर लागू नहीं होगा, जिन्हें किसी आपराधिक मामले में दोषसिद्धि के लिए दंडित किया गया हो। बड़ी सजा देने के लिए विभागीय जांच अनिवार्य है। कर्मचारी को अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों का बचाव करने का अवसर नहीं देना कानून और प्राकृतिक न्याय के प्रमुख सिद्धांत का भी उल्लंघन करता है। एकलपीठ ने याचिकाकर्ता के पक्ष में राहतकारी आदेश जारी करते हुए उसकी बर्खास्तगी के आदेश को निरस्त करते हुए विभागीय जांच प्रारंभ करने की स्वतंत्रता प्रदान की है।
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