उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में एक ऐसा मंदिर है, जहां 53 सालों से लगातार हरि नाम संकीर्तन होता है। यह मंदिर शहर के असुरन-पिपराइच मार्ग पर स्थित गीता वाटिका राधा-कृष्ण भक्ति का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर की पहचान दुनिया भर में है। देश ही नहीं बल्कि विदेशों से पर्यटक यहां आकर राधा-कृष्ण की भक्ति में रम जाते हैं। यहां का विशेष आकर्षण का केंद्र हरि नाम संकीर्तन है। जो 53 वर्षों से अनवरत जारी है।
Exclusive: इस मंदिर में 53 सालों से लगातार गूंज रही हरि नाम की धुन, यहां विदेशों से आते हैं श्रद्धालु
हनुमान प्रसाद पोद्दार अपने आवास के भूतल में 1945 में कीर्तिदा मैया, राधारानी व ललिताजी की मूर्ति स्थापित की। इसके बाद वहां शुरू हुई भक्ति की धारा आज तक अनवरत रूप से प्रवाहित हो रही है।
53 सालों से अनवरत जारी है हरिनाम संकीर्तन
गीता वाटिका में 12 सितंबर, 1965 में गिरिराज परिक्रमा शुरू हुई और 1968 में भाईजी ने राधाष्टमी के दिन अखंड हरि नाम संकीर्तन की शुरुआत की, जिसका सिलसिला आज भी जारी है। 22 मई, 1971 को भाईजी का महाप्रयाण हुआ। भाईजी की स्मृति में उनकी पत्नी रामदेई पोद्दार ने 13 दिसंबर,1975 को श्रीराधाकृष्ण साधना मंदिर का शिलान्यास किया था।
मई-जून 1985 में यह बनकर तैयार हो गया। 21 जून, 1985 को मंदिर में देव विग्रहों की स्थापना की गई। गीता वाटिका में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और राधाष्टमी समेत आधा दर्जन से अधिक उत्सव वर्षभर मनाए जाते हैं, जिसमें हिस्सा लेने के लिए दुनियाभर से श्रद्धालु आते हैं। वाटिका में वर्षभर उत्सव आनंद का उल्लासपूर्ण प्रवाह बहता रहता है।
मंदिर में है 16 गर्भगृह
मंदिर में कुल छोटे-बड़े 16 गर्भगृह तथा 35 शिखर हैं। प्रधान शिखर की ऊंचाई 85 फीट है। यहां हिंदू समाज में प्रचलित सभी प्रमुख संप्रदायों के उपास्य विग्रहों की प्रतिष्ठा की गई है जिनमें श्रीराधा-कृष्ण, श्री पार्वती- शंकर, श्री रामचतुष्ट, श्री लक्ष्मी-नारायण, गणेशजी, दुर्गाजी, श्री महात्रिपुर सुंदरी, श्री सूर्य नारायण, सरस्वती जी, कार्तिकेय जी, हनुमानजी आदि का विग्रह है। मंदिर के परिक्रमा पथ में वेद भगवान, उपनिषद, श्रीमद्भागवत महापुराण, श्री रामचरित मानस, श्रीमद्भगवद्गीता, शोध संगीत सुंदर झांकियों के रूप में विराजित हैं।