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पहले स्वतंत्रता संग्राम की कहानी: किले में कैद थे 370 फिरंगी, बाहर क्रांतिकारियों का डेरा, सात माह बाद ऐसे बचे

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सागर Published by: उदित दीक्षित Updated Thu, 14 Aug 2025 02:39 PM IST
सार

Independence Day 2025: 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में बुंदेलखंड के सागर में 370 अंग्रेज मारे जाने के डर से किले में कैद हो गए। क्रांतिकारियों ने किले को घेर लिया था। सात महीने सात दिन बाद जनरल ह्यूरोज ने इन्हें आजाद कराया था।

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Independence Day 2025 1857 Freedom Struggle Story of 370 British Locked Inside Sagar Fort
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम बुंदेलखंड में वीरता की कहानी। - फोटो : अमर उजाला

Freedom Struggle Story: आजादी हमें यूं ही नहीं मिली। इस आजादी के लिए लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानियां दी हैं। आजादी के लिए लड़ने वाले वीरों की लड़ाइयों से इतिहास भरा पड़ा है। अनेक किस्से-कहानियां हम जानते हैं, लेकिन कई कहानियां ऐसी भी हैं जो गुमनामी में खो गई। आज हम बुंदेलखंड के वीरों की एक ऐसी ही कहानी बता रहे हैं। 

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दरअसल, साल 1857 में बुंदेलखंड (मध्य प्रदेश) के सागर में एक ऐसा मौका आया जब अंग्रेजों के प्राण संकट में पड़ गए। क्रांतिकारियों से बचने के लिए करीब 370 अंग्रेजों ने खुद को सागर किले में कैद कर लिया। जिनमें 173 पुरुष, 63 महिलाएं और 134 बच्चे थे। जब क्रांतिकारियों ने किले को बाहर से घेर लिया, ऐसे में डर के कारण सात महीने तक अंग्रेज किले में कैद रहे। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के इस किस्से का जिक्र इतिहास की किताबों में दर्ज है।

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क्रांति का सूत्रपात बुंदेलखंड अंचल में झांसी से हुआ। - फोटो : अमर उजाला

100 से अधिक अंग्रेजों को मार डाला
अंग्रेजों की गुलामी से आजादी पाने की ललक हर भारतवासी के दिल में थी। भारतीय जनमानस भीतर ही भीतर सुलग रहा था। कभी छोटी-छोटी बातों पर आपस में लड़ने वाले जमींदार और रजवाड़े भी अंग्रेजी सरकार के खिलाफ खड़े होने लगे थे। अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का सूत्रपात बुंदेलखंड अंचल में झांसी से हुआ। 27 जून 1857 को झोकनबाग इलाके में क्रांतिकारियों ने अंग्रेज बस्तियों पर हमला कर 100 से अधिक अंग्रेजों को मार डाला। इसके बाद ललितपुर में भी गदर की शुरुआत हो गई। 

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सैनिकों ने सूबेदार शेख रमजान के नेतृत्व में की थी बगावत। - फोटो : अमर उजाला

ब्रिटिश इंडियन फोर्स की पल्टन ने की बगावत
सागर किले का निर्माण 1630 में दांगी राजा उदंशाह ने करवाया था। बाद में मराठों ने इसे अभेद्य रूप दिया। 1818 में जब सत्ता मराठों से अंग्रेजों के हाथ आई, तो उन्होंने सागर को सेंट्रल इंडिया की आयुधशाला बना लिया। ब्रिटिश शासन की नजर में सागर का महत्व जबलपुर से अधिक था, क्योंकि भारत के मध्य में स्थित होने के कारण अंग्रेज यहां से आसपास के क्षेत्रों को बेहतर ढंग से नियंत्रित कर सकते थे। 1857 के गदर के दौरान यहां की कमान जनरल सेज के हाथ में थी। साथ ही ब्रिटिश इंडियन फोर्स की पल्टन नंबर 42 और 33 यहां तैनात थीं। जिसके सैनिकों ने सूबेदार शेख रमजान के नेतृत्व में बगावत कर दी। इन घटनाओं से सागर में रहने वाले अंग्रेज घबरा गए और उन्होंने अपने बीवी-बच्चों समेत खुद को सागर किले में बंद कर लिया था।  

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घटना से अंग्रेजी हुकूमत की हुई थी किरकिरी। - फोटो : अमर उजाला

किले में था हथियारों का जखीरा
इस किले में ब्रिटिश सरकार का हथियारों का बड़ा जखीरा रखा हुआ था। जब क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के किले में छिपे होने की सूचना मिली, तो उन्होंने शाहगढ़ के राजा बख्तबली, बानपुर के राजा मर्दनसिंह, अंबापानी के नवाब बंधु फाजिल और आकिल खान के सैनिकों के साथ मिलकर किले की घेराबंदी कर ली। उनका उद्देश्य आयुधशाला को नष्ट करना और अस्त्र-शस्त्र लूटकर अंग्रेजों की कमर तोड़ने का था। इस घटना की खबर अंग्रेज सरकार को हुई तो हड़कंप मच गया।  
 
जनरल ह्यूरोज ने अंग्रेजों को कराया आजाद
सागर सेंट्रल यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉ. बृजेश श्रीवास्तव बताते हैं कि इस घटना की सूचना ब्रिटेन तक पहुंची, जिससे अंग्रेज सरकार की काफी किरकिरी हुई। सात महीने बाद अंग्रेज सरकार ने सागर किले में बंधकों को छुड़ाने की जिम्मेदारी जनरल ह्यूरोज को सौंपी। उसने महू (इंदौर) में सेंट्रल इंडिया फोर्स का गठन किया और विदिशा के रास्ते भारी फौज लेकर विद्रोहों को कुचलते हुए सागर पहुंचा। यहां उसने क्रांतिकारियों पर हमला कर सात महीने सात दिन से बंधक बने अंग्रेजों को 3 फरवरी 1858 को आजाद कराया।

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किले में दिया जाता है प्रशिक्षण। - फोटो : अमर उजाला

वर्तमान में किले में है पुलिस अकादमी
आजादी के संग्राम का साक्षी यह सागर किला आज भी मजबूती से खड़ा है। 1909 से यहां पुलिस अकादमी संचालित है, जिसमें एमपी पुलिस के सब इंस्पेक्टर और डीएसपी रैंक के अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। वर्तमान में यह किला दो ओर से अतिक्रमण से घिरा है, एक ओर सागर झील है। लेकिन यह आज भी उस गौरवशाली कहानी की याद दिलाता है। मानो कह रहा हो, अगर क्रांतिकारियों के मंसूबे उस दौर में सफल हो गए होते, तो आज इतिहास कुछ और ही होता।

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सागर से कृष्णकांत नगाइच की रिपोर्ट
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