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Pitru Paksha 2025: गया जी में पिंडदान से होता है 25 पीढ़ियों का उद्धार, जानें इस स्थान की महिमा
ज्योतिष डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: ज्योति मेहरा
Updated Fri, 12 Sep 2025 03:09 PM IST
सार
माना जाता है कि गया में किए गए तर्पण और पिंडदान से पितर सीधा वैकुंठ पहुंचते हैं। वैकुंठ को भगवान विष्णु का धाम माना जाता है। माना जाता है कि जो आत्मा वहां जाती है, वह जन्म और मृत्यु के अंतहीन चक्र से मुक्त हो जाती है।
Shradh In Gaya Ji: पितृपक्ष चल रहे हैं जो पूर्वजों को याद करने और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर होता है। इस दौरान पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं। इन सभी विधियों को करने के लिए भारत में सबसे प्रसिद्ध स्थान है गयाजी को माना गया है, जो बिहार में स्थित है। मान्यता है कि यहां किए गए तर्पण और पिंडदान से पितर सीधा वैकुंठ पहुंचते हैं। वैकुंठ को भगवान विष्णु का धाम माना जाता है। माना जाता है कि जो आत्मा वहां जाती है, वह जन्म और मृत्यु के अंतहीन चक्र से मुक्त हो जाती है।
गयाजी और पितृपक्ष की मान्यता
प्रयागराज और ऋषिकेश की तरह गयाजी को भी पवित्र तीर्थों की श्रेणी में गिना जाता है। पितृपक्ष के अवसर पर यहां देशभर से श्रद्धालु पहुंचते हैं और अपने पितरों का तर्पण करते हैं। मान्यता है कि सर्वपितृ अमावस्या के दिन गयाजी में जल अर्पण करने से पूर्वज संतुष्ट होकर वैकुंठ की ओर प्रस्थान करते हैं।
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पूर्वजों से संबंध
- फोटो : adobe stock
पूर्वजों से संबंध
सनातन धर्म में जीवन के सोलह संस्कारों का वर्णन है, जिनमें अंत्येष्टि (अंतिम संस्कार) को आखिरी माना गया है। लेकिन मृत्यु के बाद भी पूर्वजों का संबंध खत्म नहीं होता। मान्यता है कि पितृ देवता रूप में अपनी संतानों के साथ बने रहते हैं और उनकी जीवन यात्रा को सहज करते हैं। पूर्वज सिर्फ आत्माएं नहीं, बल्कि संरक्षक भी होते हैं, जो अपने वंशजों से जुड़े रहते हैं।
25 पीढ़ियों का उद्धार
गया जी की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि यहां तर्पण करने से व्यक्ति अपनी 25 पीढ़ियों तक के पूर्वजों को मोक्ष दिलाता है। इसलिए यहां श्राद्ध करने का महत्व सबसे ऊंचा माना जाता है। यहां तर्पण के जरिए अपने पितरों को जल अर्पित कर उन्हें तृप्त किया जाता है। इसीलिए इसे सभी तीर्थस्थलों में श्रेष्ठ माना गया है।
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विष्णुपद मंदिर की आस्था
- फोटो : adobe stock
विष्णुपद मंदिर की आस्था
गया की पवित्रता का केंद्र विष्णुपद मंदिर है, जो फल्गु नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। इस मंदिर में भगवान विष्णु के चरणों की छाप है। विशाल शिला पर मौजूद इन पदचिह्नों को धर्मशिला कहा जाता है। लाल चंदन से इन चरणों का अभिषेक किया जाता है और श्रद्धालू उसे श्रद्धा भाव से अपने मस्तक पर लगाते हैं। यहां गदा, चक्र और शंख के चिन्ह भी अंकित हैं, जो भगवान विष्णु की महिमा को दर्शाते हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
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