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Shradh Paksha 2025: श्राद्ध में सिर्फ पिंडदान ही नहीं इन बातों का भी है महत्व, जानें यहां
धर्म डेस्क, अमर उजाला
Published by: श्वेता सिंह
Updated Wed, 10 Sep 2025 02:30 PM IST
सार
Shradh में इन चीज़ों का महत्व: श्राद्ध में केवल पिंडदान ही नहीं, तर्पण, भोजन, दान, व्रत और मंत्र उच्चारण आदि क्रियाओं का भी महत्व है, जो पितरों की शांति एवं संतुष्टि के लिए आवश्यक हैं।
हिंदू धर्म में पितरों की स्मृति और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध पक्ष अत्यंत पुण्यकाल माना गया है। यह पखवाड़ा भाद्रपद मास की पूर्णिमा से अश्विन अमावस्या तक चलता है, जिसे 'पितृ पक्ष' कहा जाता है। इस दौरान पूर्वजों को श्रद्धा भाव से तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन कराकर श्रद्धांजलि दी जाती है। यह न केवल आत्मिक कृतज्ञता प्रकट करने का माध्यम है, बल्कि एक सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा भी है जो पीढ़ियों से चली आ रही है। श्राद्ध कर्म से पितरों की आत्मा को संतोष मिलता है और उनका आशीर्वाद वंशजों को सुख, समृद्धि और दीर्घायु प्रदान करता है।
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श्राद्ध कर्म करते समय कई सूक्ष्म नियमों और बातों का पालन अत्यंत आवश्यक होता है, क्योंकि यही नियम श्राद्ध को पूर्ण और फलदायी बनाते हैं। जैसे कि तर्पण के समय जल में काले तिल डालना, पवित्रता बनाए रखना, भोजन शुद्ध और सात्विक होना, दक्षिणा और ब्राह्मण सेवा का समुचित विधान आदि। इसके अलावा, श्रद्धा और नियमपूर्वक मंत्रों का उच्चारण, सही तिथि पर श्राद्ध करना तथा पूर्वजों की स्मृति में दान-पुण्य करना। यह सब मिलकर श्राद्ध को सफल बनाते हैं। इसलिए केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि शुद्ध हृदय और श्रद्धा से किया गया श्राद्ध ही पितरों को प्रसन्न करता है।
Panchbali Karma: श्राद्ध पक्ष में करें पंचबलि कर्म, पितृ दोष से मिलेगा छुटकारा, जीवन की सभी बाधाएं होंगी दूर
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तिल
- फोटो : Freepik.com
तिल और कुश : मान्यता अनुसार भगवान विष्णु के पसीने से तिल और रोम से कुश की उत्पत्ति हुई है, अतः इनका उपयोग श्राद्ध कर्म में अतिआवश्यक है।
श्राद्ध में क्या करें : सूर्योदय के समय स्नान करके एक लोटा जल पीपल पर चढ़ाएं, एक दीपक श्रद्धांजलि करके प्रार्थनापूर्वक नमस्कार कर पितर से अपनी भूलों के लिए क्षमा मांगें।
इनसे करें परहेज : राजमा, मसूर, अरहर, गाजर, कुम्हड़ा, गोल लौकी, बैंगन, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, पिप्पली, कैंथ, चना आदि वर्जित है।
गया श्राद्ध का फल : हिंदू समाज का यह दृढ़ विश्वास है कि गया में श्राद्ध पिंडदान करने से सात पीढ़ियों के पितरों को मुक्ति मिलती है।
पितरों की पसंद : हमारे पितृ श्राद्ध कर्म से ही संतृप्त होते हैं, लेकिन इसमें पवित्रता और श्रद्धा का ख्याल जरूर रखें।
तर्पण में लोहा-मिट्टी नहीं : तर्पण में लोहा, मिट्टी के बर्तन तथा केले के पत्तों का उपयोग न करें। सोना, चांदी, तांबे एवं कांसे का पात्र सही है।
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तर्पण कर्म करते वक्त अंगूठे से ही पिंड पर जलांजलि दी जाती है।
- फोटो : Adobe
क्या है पिंड: मृतक की आत्मा को अर्पित करने के लिए जौ अथवा चावल के आटे को गूंथ कर बनाई गई गोलाकृति को पिंड कहा जाता है।
ब्राह्मण भोज जरूरी: पितृ पक्ष में ब्राह्मण भोज जरूरी है। यदि ब्राहमण भोजन न करा सकें तो भोजन का सामान ब्राहमण को भेंट करें।
जलांजलि में अंगूठे का महत्व : तर्पण कर्म करते वक्त अंगूठे से ही पिंड पर जलांजलि दी जाती है। कहा गया है कि अंगूठे के जरिए दी गई जलांजलि सीधे पितरों तक पहुंचती है।
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थ्वी पर जल डालने से वृक्ष योनि को प्राप्त हुए पितरों की तृप्ति होती है।
- फोटो : अमर उजाला डिजिटल
श्राद्ध कर्म कहता है
श्राद्ध में जो अन्न पृथ्वी पर बिखेरा जाता है, उससे पिशाच योनि तृप्त होती है। पृथ्वी पर जल डालने से वृक्ष योनि को प्राप्त हुए पितरों की तृप्ति होती है।
गंध और दीपक से देवत्व योनि को प्राप्त हुए पितरों की तृप्ति होती है।
अन्न, जल, तिल और वस्त्रों का दान करने से मनुष्य योनि को प्राप्त पितर संतृप्त होते हैं। तुलसीदल से भी पिंडदान करने का विधान है। कहते हैं, इससे पितर पूर्ण तृप्त हो जाते हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
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