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Pitru Paksha: पितृपक्ष में क्यों किया जाता है श्राद्ध, नहीं करने पर क्या प्रभाव होता है?
शैली प्रकाश
Published by: ज्योति मेहरा
Updated Wed, 10 Sep 2025 02:15 PM IST
सार
पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म के पीछे के विज्ञान को समझेंगे तो संभवत: समझ में आएगा कि यह कर्म करना क्यों जरूरी है। इसका एक पक्ष भावना से जुड़ा है और दूसरा पक्ष आध्यात्मिक विज्ञान से। आइए इसके बारे में जानते हैं विस्तार से।
Pitru Paksha:2025: कई लोग श्राद्ध पक्ष को अंधविश्वास मानते हैं, लेकिन यदि हम श्राद्ध कर्म के पीछे के विज्ञान को समझेंगे तो संभवत: समझ में आएगा कि यह कर्म करना क्यों जरूरी है। इसका एक पक्ष भावना से जुड़ा है और दूसरा पक्ष आध्यात्मिक विज्ञान से। आइए इसके बारे में जानते हैं विस्तार से।
।।ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः।...ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।। भावार्थ : पितरों में अर्यमा श्रेष्ठ है। अर्यमा पितरों के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे! पिता, पितामह, और प्रपितामह। हे! माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारम्बार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें।
।।श्रद्धया दीयते यस्मात् तच्छादम्।। भावार्थ : श्राद्ध से श्रेष्ठ संतान, आयु, आरोग्य, अतुल ऐश्वर्य और इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति होती है।
भावना से जुड़ा होने का अर्थ है कि आप अपने पिता, दादा और परदादा के प्रति अभी भी श्रद्धा का भाव रखते हैं, जिन्होंने आपके जीवन के लिए खुद का जीवन खफा दिया, तो क्या आप वर्ष में एक बार उन्हें याद नहीं करेंगे? इसलिए श्राद्ध का संबंध आपकी अपने पितरों के प्रति सम्मान और श्रद्धा से जुड़ा विषय है। शास्त्रों में कहा भी गया है कि आपके सबसे पहले ईश्वर और गुरु आपके माता पिता ही होते हैं।
आध्यात्मिक विज्ञान से जुड़ा होने का अर्थ है कि मरने के बाद अतृप्त आत्माएं भटकती रहती हैं। उनके इस भटकाव और परिवार के प्रति आसक्ति के भाव को रोककर उन्हें अगले जन्म के लिए तैयार करना या यदि कई कोई लोक-परलोक है तो वहां तक जाने की यात्रा को सुगम करने की क्रिया है श्राद्ध कर्म। व्यक्ति किसी भी उम्र या अवस्था में मरा हो उसकी इच्छाएं यदि बलवती है तो वह अपनी इच्छाओं को लेकर मृत्यु के बाद भी दुखी ही रहेगा और मुक्त नहीं हो पाएगा। यही अतृप्तता है। जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है अवश्य ही वह अतृप्त होकर भटकता रहेगा। मनोवैज्ञानिक तरीके से उसके इस भटकाव को श्राद्ध कर्म रोककर सद्गति देता है।
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क्यों करते हैं श्राद्ध कर्म?
- फोटो : adobe stock
दूसरा यह है कि अकाल मृत्यु अर्थात असमय मर जाना। अर्थात जिन्होंने आत्महत्या की है या जो किसी बीमारी या दुर्घटना में मारा गया है। ऐसे मनुष्य मृत्यु के बाद अज्ञान और अंधकार से परिपूर्ण, सूर्य के प्रकाश से हीन, असूर्य नामक लोक को गमन कहते हैं और तब तक अतृत होकर भटकते हैं जब तक कि उनके जीवन का चक्र पूर्ण नहीं हो जाता या कि उनके लिए कोई उचित श्राद्ध कर्म नहीं कर देता है। तीसरा यह कि हर कोई अपनी जिंदगी में अनजाने में अपराध या बुरे कर्म करता रहता है। ऐसे पितरों के लिए भी श्राद्ध कर्म करके उन्हें सद्गति की ओर ले जाना होता है।
श्राद्ध कर्म करना क्यों जरूरी है?
जैसे यदि आप भूखे या प्यासे ही सो जाते हैं तो सपने में आप पानी कितना ही पी लें लेकिन तृप्ति नहीं होती, यदि आपको नींद में पेशाब आ रही है तो आपको बाथरूप का सपना आएगा और आप करने के बाद भी संतुष्ट नहीं होंगे। इसी प्रकार मनुष्य जब मर जाता है तो उसकी अवस्था भी प्रारंभ में सपने देखने जैसी हो जाती है। सूक्ष्म शरीर ही सपने देखता है।
जब कोई आत्मा अपना शरीर छोड़कर चला जाता है तब उसके सारे क्रियाकर्म करना जरूरी होता है, क्योंकि प्रत्येक आत्मा को भोजन, पानी और मन की शांति की जरूरत होती है और उसकी यह पूर्ति सिर्फ उसके परिजन ही कर सकते हैं। अन्न से शरीर तृप्त होता है। अग्नि को दान किए गए अन्न से सूक्ष्म शरीर (आत्मा का शरीर) और मन तृप्त होता है। इसी अग्निहोत्र से आकाश मंडल के समस्त पक्षी भी तृप्त होते हैं। तर्पण, पिंडदान और धूप देने से आत्मा की तृप्ति होती है। तृप्त आत्माएं ही प्रेत नहीं बनतीं।
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पितृ पक्ष
- फोटो : adobe stock
जैसे पशुओं का भोजन तृण और मनुष्यों का भोजन अन्न कहलाता है, वैसे ही देवता और पितरों का भोजन अन्न का 'सार तत्व' है। सार तत्व अर्थात गंध, रस और उष्मा। देवता और पितर गंध तथा रस तत्व से तृप्त होते हैं। दोनों के लिए अलग अलग तरह के गंध और रस तत्वों का निर्माण किया जाता है। विशेष वैदिक मंत्रों द्वारा विशेष प्रकार की गंध और रस तत्व ही पितरों तक पहुंच जाती है जिससे वे तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं।
श्राद्ध कर्म नहीं करने से क्या होगा?
मार्कण्डेयपुराण में बताया गया है कि जिस कुल में श्राद्ध नहीं होता है, उसमें दीर्घायु, निरोग व वीर संतान जन्म नहीं लेती है और परिवार में कभी मंगल नहीं होता है। पुराणों के अनुसार श्राद्ध नहीं करने से पितृ दोष भी निर्मित होता है जिसके कारण कई तरह की परेशानियां आ सकती हैं। इससे आर्थिक समस्या, पारिवारिक कलह, संतान संबंधी समस्याएं, स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें, प्रत्येक कार्य में रुकावट और घटना दुर्घटना जैसे हालात बने रहते हैं।
- शैली प्रकाश
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