बागपत जिले के खेकड़ा गांव के 25 वर्षीय भाला फेंक खिलाड़ी सचिन यादव ने अपनी पहली ही विश्व चैंपियनशिप में ऐसा कारनामा कर दिखाया, जिसकी उम्मीद शायद किसी ने नहीं की थी। करीब 100 किलो वजन और छह फुट पांच इंच लंबे सचिन ने न सिर्फ अपने आदर्श नीरज चोपड़ा को पछाड़ा बल्कि पेरिस ओलंपिक चैंपियन अरशद नदीम और डाइमंड लीग विजेता जूलियन वेबर को भी पीछे छोड़ दिया।
खेकड़ा कस्बे के मोहल्ला अहिरान निवासी सचिन यादव आज जेवलिन थ्रो की दुनिया में नई पहचान बना रहे हैं। उनकी इस सफलता के पीछे वर्षों का संघर्ष और धैर्य छिपा हुआ है।
उन्होंने भाला फेंकने की शुरुआत बड़े सपनों के साथ की थी, लेकिन राह बिल्कुल आसान नहीं थी। शुरुआत में उनके थ्रो तकनीकी रूप से कमजोर थे, कभी सीधा नहीं जाता और अक्सर एक ओर गिर जाता। इस कमी को दूर करने के लिए उन्होंने लगातार घंटों तक अभ्यास किया।
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सचिन के सामने दूसरी बड़ी चुनौती उनके लंबे कद और भारी शरीर के साथ तालमेल बैठाना था। भाले को सही दिशा में नियंत्रित करना उनके लिए आसान नहीं था। इसके लिए उन्हें फिटनेस पर अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ी।
शुरुआती दौर में कई बार निराशा हाथ लगी, लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाय खुद को और मजबूत बनाया। उनके करियर में एक मोड़ तब आया जब नौकरी मिलने के बाद उन्होंने दो महीने तक प्रशिक्षण ही छोड़ दिया।
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उस समय पड़ोसी संदीप यादव ने उन्हें फिर से प्रेरित किया और मैदान में लौटाया। सचिन मानते हैं कि अगर उस समय उन्होंने दोबारा अभ्यास शुरू न किया होता तो शायद आज यह मुकाम हासिल नहीं कर पाते।
चोटें भी उनकी राह में बार-बार रोड़ा बनकर आईं। देहरादून में हुए नेशनल गेम्स के दौरान भी वे चोटिल हो गए थे। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पूरे जज्बे के साथ खेलते हुए 84.39 मीटर का रिकॉर्ड थ्रो किया। इस प्रदर्शन ने उन्हें न केवल स्वर्ण पदक दिलाया बल्कि बागपत का नाम भी रोशन कर दिया। सचिन आज हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुके हैं।