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सपेरों का सुप्रीम कोर्ट: लोहे की गर्म राॅड और सात कदम...न्याय का अनूठा तरीका, पूरे देश में होता है लागू

संवाद न्यूज एजेंसी, मैनपुरी Published by: अरुन पाराशर Updated Thu, 17 Jul 2025 06:15 PM IST
सार

सपेरों की सुप्रीम कोर्ट में आरोपी को पीपल के सात पत्तों पर रखी गर्म लोहे की मोटी रॉड हाथ में लेकर सात कदम चलना पड़ता है। अगर उसके हाथ जल जाते हैं, तो उसे दोषी मान लिया जाता है। 

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Supreme Court of snake charmers in Kishani of Mainpuri
सपेरों की सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायकर्ता जोरानाथ। - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले की किशनी तहसील में स्थित नगला बील गांव में सपेरा समुदाय का सुप्रीम कोर्ट हैं। यह गांव आम लोगों के लिए भले ही गुमनाम हो, लेकिन पूरे देश का सपेरा समुदाय इसे किसी पवित्र तीर्थ से कम नहीं मानता। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और वकील कोई कानूनी डिग्रीधारक नहीं हैं। मगर, सामान्य शिक्षित इन लोगों का फैसला पूरे देश के सपेरा समुदाय के लिए मान्य होता है।
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Supreme Court of snake charmers in Kishani of Mainpuri
सपेरों के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय। - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
करीब ढाई हजार की आबादी वाला यह पूरा गांव सपेरा समुदाय का ही है। यहीं पर उनका सपेरा सजातीय सर्वोच्च न्यायालय नगला बील स्थापित है, जिसे सपेरा समाज में भारत के सर्वोच्च न्यायालय का दर्जा प्राप्त है। इसके मुख्य न्यायकर्ता जोरानाथ हैं, जिनको हाल में चुना गया है। इनसे पहले मलूकनाथ इस पद पर थे, उनका देहांत हो गया। जोरानाथ बताते हैं कि जब पंचायतों के फैसलों से लोग असंतुष्ट होने लगे, तब इस "सुप्रीम कोर्ट" की नींव रखी गई ताकि उनकी पुरानी न्यायिक परंपरा बनी रहे।

 
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Supreme Court of snake charmers in Kishani of Mainpuri
सपेरों का सुप्रीम कोर्ट। - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
सुनवाई का अनोखा तरीका और कड़े फैसले
इस अदालत में मारपीट, लड़की भगाने, चोरी व अन्य गंभीर मामलों की सुनवाई होती है। यहां सबूतों पर नहीं, बल्कि 'सांच को आंच नहीं' के सिद्धांत पर न्याय होता है। दोषी का पता लगाने के लिए एक अनूठा अग्नि-परीक्षण भी होता है। आरोपी को पीपल के सात पत्तों पर रखी गर्म लोहे की मोटी रॉड हाथ में लेकर सात कदम चलना पड़ता है। अगर उसके हाथ जल जाते हैं, तो उसे दोषी मान लिया जाता है। 

 
Supreme Court of snake charmers in Kishani of Mainpuri
सपेरों का सुप्रीम कोर्ट। - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
दोषी पाए जाने पर आर्थिक जुर्माने से लेकर समाज और गांव से बहिष्कृत करने तक की कड़ी सजा सुनाई जाती है। सबसे खास बात, यहां फैसला होने के बाद कोई अपील या अर्जी नहीं सुनी जाती - एक बार जो फैसला हो गया, सो हो गया। जोरानाथ कहते हैं कि वह आज भी अपनी प्राचीन परंपराओं और मान्यताओं के आधार पर सामाजिक न्याय बनाए रखते हैं और उनका रुतबा सपेरा समुदाय में किसी भी औपचारिक न्यायालय से कम नहीं है।

 
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सपेरों का सुप्रीम कोर्ट। - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
सपेरा समाज का हाईकोर्ट भी  
सपेरा समुदाय के अपने हाईकोर्ट भी हैं। बदायूं जिले के हरपालपुर गांव में उनका मुख्य हाईकोर्ट है। इसके अलावा, कानपुर के नगला बरी, आगरा के मनियां, औरैया के पिपरी और मथुरा के छाता तहसील के बसई खुर्द गांवों में इसकी खंडपीठें हैं। जब इन निचली अदालतों के फैसलों से कोई संतुष्ट नहीं होता, तभी वह नगला बील के 'सुप्रीम कोर्ट' की शरण लेता है।


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