Rajasthan: रणथंभौर के बाघों पर मंडराता अदृश्य खतरा, क्या है इनब्रीडिंग और जेनेटिकबीमारी? विशेषज्ञों में चिंता
Sawai Madhopur News: रणथंभौर टाइगर रिजर्व के बाघों पर इनब्रीडिंग और समान जीनपुल के कारण जेनेटिक बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है। वन विभाग और सरकार की अनदेखी से यह समस्या गहरा सकती है। समय रहते इंटर-स्टेट ट्रांसलोकेशन जरूरी है।
विस्तार
रणथंभौर टाइगर रिजर्व अपने बाघों की अठखेलियों के लिए विश्व विख्यात है, जो आज एक गंभीर और अदृश्य खतरे का सामना कर रहा है। समान जीनपुल और इनब्रीडिंग की समस्या ने रणथंभौर के बाघों की नई पीढ़ी को जोखिम में डाल दिया है। यह समस्या जेनेटिक बीमारियों के खतरे को बढ़ा रही है, जिसका असर न केवल बाघों की सेहत पर पड़ सकता है, बल्कि रणथंभौर की वैश्विक पहचान पर भी सवाल उठ सकते हैं। वन विभाग और सरकार की ओर से इस मुद्दे पर ठोस कदमों की कमी चिंता का विषय है। यह विशेष रिपोर्ट रणथंभौर के बाघों पर मंडरा रहे इस खतरे की पड़ताल करती है।
रणथंभौर: बाघों का स्वर्ग और पर्यटकों का आकर्षण
रणथंभौर का नाम सुनते ही बाघों की स्वछंद अठखेलियों की तस्वीरें मन में उभरती हैं। यह टाइगर रिजर्व न केवल देश, बल्कि विश्व भर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। हर साल हजारों सैलानी यहां बाघों, बाघिनों और उनके शावकों को देखने आते हैं। वर्तमान में रणथंभौर में लगभग 78 बाघ, बाघिन और शावक मौजूद हैं। इन बाघों ने न केवल रणथंभौर, बल्कि सरिस्का, मुकुंदरा और रामगढ़ जैसे अन्य टाइगर रिजर्व को आबाद करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन अब यही बाघ एक ऐसी समस्या से जूझ रहे हैं, जो उनकी भविष्य की पीढ़ियों के लिए खतरा बन रही है।
इनब्रीडिंग और समान जीनपुल: एक गंभीर चुनौती
रणथंभौर में बाघों की आबादी में इनब्रीडिंग की समस्या गहराती जा रही है। यहां अधिकांश बाघ एक ही वंशावली, खासकर मछली नामक बाघिन के वंश से हैं। एक ही वंश के बाघों और बाघिनों के बीच प्रजनन से समान जीनपुल की स्थिति पैदा हो रही है, जिससे जेनेटिक बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। हाल के कुछ उदाहरण इस खतरे की गंभीरता को दर्शाते हैं। मसलन, बाघिन एरोहेड की लंबी बीमारी के बाद मृत्यु और बाघ गणेश (टी-120) का बोन ट्यूमर से ग्रसित होना इस ओर इशारा करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि समान जीनपुल के कारण बाघ शारीरिक रूप से कमजोर हो सकते हैं और उनकी आयु भी कम हो सकती है।
वन विभाग की अनदेखी: खतरा बढ़ने की आशंका
हालांकि वन विभाग फिलहाल इस समस्या को गंभीरता से नहीं ले रहा, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इसे नजरअंदाज करना भविष्य में भारी पड़ सकता है। रणथंभौर ने हमेशा अन्य टाइगर रिजर्व को बाघ दिए हैं, लेकिन यहां किसी अन्य रिजर्व से बाघ नहीं लाए गए। इससे इनब्रीडिंग की समस्या और गंभीर हो रही है। बेंगलुरु के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज के एक सर्वे में यह बात सामने आई कि रणथंभौर में अभी जेनेटिक बीमारियों का खतरा स्पष्ट रूप से नहीं दिख रहा, लेकिन भविष्य में इसे नकारा नहीं जा सकता। सर्वे में यह भी उल्लेख किया गया कि समान जीनपुल वाले बाघों की शारीरिक क्षमता और आयु असमान जीनपुल वाले बाघों की तुलना में कम होती है।
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समाधान की राह: इंटर-स्टेट ट्रांसलोकेशन की जरूरत
वन्यजीव विशेषज्ञों का सुझाव है कि इस समस्या से निपटने के लिए रणथंभौर में अन्य राज्यों से बाघ और बाघिन लाए जाने चाहिए। इससे जीनपुल में विविधता आएगी और इनब्रीडिंग का खतरा कम होगा। हाल ही में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने राजस्थान के रामगढ़ विषधारी और मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में मध्य प्रदेश के ताडोबा टाइगर रिजर्व से बाघ लाने की अनुमति दी है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से रणथंभौर को इस योजना में शामिल नहीं किया गया। रणथंभौर के मुख्य संरक्षक वन अधिकारी (सीसीएफ) अनूप के.आर. के अनुसार, वर्तमान में रणथंभौर के लिए इंटर-स्टेट ट्रांसलोकेशन का कोई प्लान नहीं है। यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि रणथंभौर को इसकी सबसे अधिक जरूरत है।
समय रहते कदम उठाना जरूरी
रणथंभौर के बाघों पर मंडरा रहा यह अदृश्य खतरा केवल उनकी संख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि उनकी गुणवत्ता और स्वास्थ्य से भी जुड़ा है। वन विभाग और सरकार को इस समस्या को गंभीरता से लेना होगा। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो रणथंभौर के बाघों की नई पीढ़ी को गंभीर जेनेटिक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अन्य टाइगर रिजर्व से बाघों का स्थानांतरण और जीनपुल में विविधता लाने की रणनीति अपनाकर इस खतरे को कम किया जा सकता है। रणथंभौर न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश के लिए गौरव का प्रतीक है और इसे बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई जरूरी है।
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