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#हिंदीहैंहम: डॉ. प्रणवीर ने आगरा के इतिहास को ग्रंथ में पिरोया, समय चक्र के रचनाकार थे चौहान, उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक
न्यूज डेस्क अमर उजाला, आगरा
Published by: Abhishek Saxena
Updated Wed, 08 Sep 2021 12:10 PM IST
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सार
उन्होंने ब्रज लोक संस्कृति, ब्रज लोक गीत, इतिहास, जीवनी, साक्षात्कार और विभिन्न विषयों पर करीब एक हजार से अधिक लेख कादंबिनी, युग धर्म, सैनिक सहित कई दैनिक समाचार पत्रों के लिए लिखा।

#हिंदीहैंहम: डॉ. प्रणवीर
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
आगरा के इतिहास को शब्दों में पिरोकर ग्रंथ का आकार देने वाले साहित्यकार डॉ. प्रणवीर चौहान ही थे। उनकी पुस्तक समय चक्र में ताजनगरी के बीते जमाने की पूरी जानकारी है। डॉ. चौहान की रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं।

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मूल रूप से एत्मादपुर के हसनपुरा के रहने वाले डॉ. प्रणवीर चौहान लंबे समय तक सूर्य नगर में रहे। 95 वर्ष की आयु में दो साल पहले ही उनका निधन हुआ था। वे देश के महान क्रांतिकारी, पूर्व विधायक और ब्रजभाषा के कवि ठाकुर उल्फत सिंह चौहान निर्भय के पुत्र थे। उनके लिखे साहित्य पर आज भी शोध जारी हैं। उनका कृतित्व गहन अध्ययन से परिपूर्ण होता था। पत्रकारिता के साथ साहित्य साधना में उन्होंने अपना जीवन समर्पित किया था। उनकी चार बेटियां हैं।
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हिंदी साहित्य में बड़ा योगदान
उन्होंने करीब 35 वर्षों तक मासिक पत्रिका युवक व चेतक का संपादन किया। साथ ही दैनिक मतवाला, दैनिक सैनिक समाचार पत्रों में भी कार्य किया। साहित्यकार के रूप में उनका हिंदी साहित्य में बड़ा योगदान है। उन्होंने ब्रज लोक संस्कृति, ब्रज लोक गीत, इतिहास, जीवनी, साक्षात्कार और विभिन्न विषयों पर करीब एक हजार से अधिक लेख कादंबिनी, युग धर्म, सैनिक सहित कई दैनिक समाचार पत्रों के लिए लिखा। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजी सरोज गौरिहार बताती हैं कि वे लेखक होने के साथ ही क्रांतिकारी विचारधारा वाले व्यक्ति थे।
50 से अधिक पुस्तकों का संपादन
डॉ. चौहान ने 50 से अधिक पुस्तकों का लेखन व संपादन भी किया। इनमें आगरा का मुगलकालीन इतिहास, राधा स्वामी सत्संग और हजूरी भवन, जितेंद्र रघुवंशी और इप्टा, हिंदी साहित्यकार और साहित्यिक संस्थाएं, आगरा के उदयन, आगरा के दिवंगत साहित्यकार सूरदास, शास्त्रीय संगीत का आगरा घराना, जनकवि नजीर अकबराबादी, शौरीपुर बटेश्वर और आगरा के लोकगीत आदि पुस्तकें शामिल हैं। डॉ. प्रणवीर के पास पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के हाथ से लिखे कई पत्र मौजूद थे। अकसर ही उनकी और अटल बिहारी वाजपेयी की मुलाकात दिल्ली और आगरा में होती रहती थी।
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