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Amethi News: अवधी की माटी से महका हिंदी का गौरव
संवाद न्यूज एजेंसी, अमेठी
Updated Sun, 14 Sep 2025 12:21 AM IST
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अमेठी सिटी। हिंदी केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि भारतीय आत्मा की स्वरलिपि है। विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर अमेठी की साहित्यिक विरासत की चर्चा अनिवार्य हो जाती है, जहां अवधी भाषा के माध्यम से हिंदी को नया विस्तार मिला। ऐतिहासिक पहचान रखने वाला यह जनपद लहुरी काशी के रूप में प्रसिद्ध है, जिसकी मिट्टी में मलिक मोहम्मद जायसी जैसे महाकवि ने पद्मावत जैसी अमर रचना रचकर अवधी साहित्य को वैश्विक पटल पर पहुंचाया।
इंदिरा गांधी पीजी कॉलेज से सेवानिवृत्त हिंदी विभाग की प्रोफेसर डॉ. रेखा श्रीवास्तव ने बताया कि अमेठी की अवधी परंपरा में राज परिवार से लेकर लोक कवियों तक का योगदान अविस्मरणीय है। जायसी के बाद गुरुदत्त, रणवीर सिंह, राजर्षि रणंजय, गयाप्रसाद द्विवेदी, अरविंद द्विवेदी, पिंगल शास्त्री, रामगुलाम, राजेंद्र शुक्ल अमरेश जैसे साहित्यकारों ने अवधी को जन-जन तक पहुंचाया। श्रीरामचरितमानस और पद्मावत अवधी की दो दृष्टि मानी जाती हैं। तुलसीदास की मानस जहां अध्यात्म का स्रोत है, वहीं जायसी का पद्मावत प्रेम व दर्शन का प्रतीक है। जायसी की रचनाएं अखरावट और आखिरी कलाम भी अवधी साहित्य को समृद्ध करती हैं।
उन्होंने बताया कि अमेठी को अवधी के केंद्रीय गढ़ का दर्जा इसी ठेठ अवधी परंपरा के कारण प्राप्त है। 12 सितंबर 2020 को स्थापित अवधी साहित्य संस्थान अमेठी ने अवधी के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब तक देश के अनेक राज्यों में संस्थान के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रमों ने हिंदी के विकास में अवधी की भूमिका को मजबूती दी है।
संस्थान के अध्यक्ष डॉ. अर्जुन पांडेय की कहानियां जब जागै तबै सबेरा और सोने मा सोहागा लोकप्रिय हो चुकी हैं। संस्था के विस्तार में रामेश्वर सिंह निरास, सुरेश शुक्ल नवीन, डॉ. शिवम तिवारी, सुधीर द्विवेदी, सब्बीर सूरी सहित कई रचनाकारों की भूमिका उल्लेखनीय रही है।

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इंदिरा गांधी पीजी कॉलेज से सेवानिवृत्त हिंदी विभाग की प्रोफेसर डॉ. रेखा श्रीवास्तव ने बताया कि अमेठी की अवधी परंपरा में राज परिवार से लेकर लोक कवियों तक का योगदान अविस्मरणीय है। जायसी के बाद गुरुदत्त, रणवीर सिंह, राजर्षि रणंजय, गयाप्रसाद द्विवेदी, अरविंद द्विवेदी, पिंगल शास्त्री, रामगुलाम, राजेंद्र शुक्ल अमरेश जैसे साहित्यकारों ने अवधी को जन-जन तक पहुंचाया। श्रीरामचरितमानस और पद्मावत अवधी की दो दृष्टि मानी जाती हैं। तुलसीदास की मानस जहां अध्यात्म का स्रोत है, वहीं जायसी का पद्मावत प्रेम व दर्शन का प्रतीक है। जायसी की रचनाएं अखरावट और आखिरी कलाम भी अवधी साहित्य को समृद्ध करती हैं।
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उन्होंने बताया कि अमेठी को अवधी के केंद्रीय गढ़ का दर्जा इसी ठेठ अवधी परंपरा के कारण प्राप्त है। 12 सितंबर 2020 को स्थापित अवधी साहित्य संस्थान अमेठी ने अवधी के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब तक देश के अनेक राज्यों में संस्थान के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रमों ने हिंदी के विकास में अवधी की भूमिका को मजबूती दी है।
संस्थान के अध्यक्ष डॉ. अर्जुन पांडेय की कहानियां जब जागै तबै सबेरा और सोने मा सोहागा लोकप्रिय हो चुकी हैं। संस्था के विस्तार में रामेश्वर सिंह निरास, सुरेश शुक्ल नवीन, डॉ. शिवम तिवारी, सुधीर द्विवेदी, सब्बीर सूरी सहित कई रचनाकारों की भूमिका उल्लेखनीय रही है।