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Amroha News: जिले में 160 आशा वर्करों की सेवा समाप्ति की तैयारी
संवाद न्यूज एजेंसी, अमरोहा
Updated Fri, 21 Nov 2025 02:34 AM IST
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अमरोहा। सरकारी अस्पतालों में संस्थागत प्रसव नहीं करने के मामले में सीएमओ की ओर से जिले की 250 आशाओं को नोटिस जारी किए गए। इनमें से 160 आशाओं ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया। इसके चलते इन सभी आशाओं की सेवा समाप्ति की कवायद शुरू कर दी है। यह आशाएं कमीशन के चक्कर में निजी अस्पतालों में प्रसव कराती हैं।
जिले में 1611 आशाएं तैनात हैं जिनका मुख्य कार्य गर्भवतियों की विभिन्न जांच कराना और उन्हें सरकारी अस्पताल में प्रसव कराना है। शहरी आशाओं को एक प्रसव कराने पर 400 रुपये और ग्रामीण आशाओं को 600 रुपये की प्रोत्साहन राशि मिलती है। गर्भवती को लाने और ले जाने के लिए मुफ्त एंबुलेंस की व्यवस्था भी की गई है।
प्रसव के बाद प्रशिक्षित आशाएं जच्चा-बच्चा की देखभाल के लिए सात दिन तक लगातार घर पर जाती हैं लेकिन कुछ आशाएं मोटे कमीशन के लालच में गर्भवतियों का प्रसव सरकारी अस्पताल में नहीं कराकर निजी अस्पतालों में करा रही हैं।
250 आशाओं ने सात माह से नहीं कराया एक भी संस्थागत प्रसव
पिछले वर्ष सीएमओ डाॅ. सत्यपाल सिंह ने एक आशा को निजी अस्पताल में गर्भवती का प्रसव कराते हुए रंगे हाथ पकड़ा था। अब जिले की 250 आशाएं ऐसी मिली हैं जिन्होंने सात माह से एक भी गर्भवती का सरकारी अस्पताल में संस्थागत प्रसव नहीं कराया है। यह स्थिति तब है जब विभाग ने आबादी के अनुसार आशाओं की तैनाती की है। ग्रामीण क्षेत्रों में एक हजार की आबादी पर एक और दो हजार तक की आबादी पर दो आशाएं तैनात की गई हैं। शहरी क्षेत्रों में 200 से 500 घरों तक एक आशा तैनात की गई है लेकिन 250 आशाओं द्वारा सात माह में कोई भी संस्थागत प्रसव नहीं कराने की बात स्वास्थ्य विभाग के लिए चिंताजनक है। इन आशाओं के अंतर्गत कम से कम 200 गांव और मोहल्ले आते हैं।
संस्थागत प्रसव नहीं करने के मामले में 250 आशाओं को नोटिस जारी किए गए थे। इनमें से कुछ ही आशाओं ने जवाब दिए हैं जबकि 160 आशाएं ऐसी हैं जिन्होंने संतोषजनक जवाब नहीं दिया है। उनकी सेवा समाप्ति की तैयारी की जा रही है। - डॉ. एसपी सिंह, सीएमओ
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जिले में 1611 आशाएं तैनात हैं जिनका मुख्य कार्य गर्भवतियों की विभिन्न जांच कराना और उन्हें सरकारी अस्पताल में प्रसव कराना है। शहरी आशाओं को एक प्रसव कराने पर 400 रुपये और ग्रामीण आशाओं को 600 रुपये की प्रोत्साहन राशि मिलती है। गर्भवती को लाने और ले जाने के लिए मुफ्त एंबुलेंस की व्यवस्था भी की गई है।
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प्रसव के बाद प्रशिक्षित आशाएं जच्चा-बच्चा की देखभाल के लिए सात दिन तक लगातार घर पर जाती हैं लेकिन कुछ आशाएं मोटे कमीशन के लालच में गर्भवतियों का प्रसव सरकारी अस्पताल में नहीं कराकर निजी अस्पतालों में करा रही हैं।
250 आशाओं ने सात माह से नहीं कराया एक भी संस्थागत प्रसव
पिछले वर्ष सीएमओ डाॅ. सत्यपाल सिंह ने एक आशा को निजी अस्पताल में गर्भवती का प्रसव कराते हुए रंगे हाथ पकड़ा था। अब जिले की 250 आशाएं ऐसी मिली हैं जिन्होंने सात माह से एक भी गर्भवती का सरकारी अस्पताल में संस्थागत प्रसव नहीं कराया है। यह स्थिति तब है जब विभाग ने आबादी के अनुसार आशाओं की तैनाती की है। ग्रामीण क्षेत्रों में एक हजार की आबादी पर एक और दो हजार तक की आबादी पर दो आशाएं तैनात की गई हैं। शहरी क्षेत्रों में 200 से 500 घरों तक एक आशा तैनात की गई है लेकिन 250 आशाओं द्वारा सात माह में कोई भी संस्थागत प्रसव नहीं कराने की बात स्वास्थ्य विभाग के लिए चिंताजनक है। इन आशाओं के अंतर्गत कम से कम 200 गांव और मोहल्ले आते हैं।
संस्थागत प्रसव नहीं करने के मामले में 250 आशाओं को नोटिस जारी किए गए थे। इनमें से कुछ ही आशाओं ने जवाब दिए हैं जबकि 160 आशाएं ऐसी हैं जिन्होंने संतोषजनक जवाब नहीं दिया है। उनकी सेवा समाप्ति की तैयारी की जा रही है। - डॉ. एसपी सिंह, सीएमओ