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Auraiya News: हिंदी की व्यापकता सरलता के सिंद्धांत पर है निर्भर
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फोटो-13 एयूआरपी 12 डॉ. गोविंद द्विवेदी। संवाद
फोटो-13 एयूआरपी 13 कवि गोपाल पांडे। संवाद
फोटो-13 एयूआरपी 14 कवि योगेश दीक्षित । संवाद
फोटो-13 एयूआरपी 15 कवयित्री रश्मि मनोज। संवाद
फोटो-13 एयूआरपी 16 कवयित्री इति शिवहरे। संवाद
-हिंदी दिवस पर लेखक, कवियों व शिक्षकों ने रखे विचार, हिंदी को जन जन की भाषा बनाने का किया आह्वान
संवाद न्यूज एजेंसी
औरैया। हिंदी दिवस के मौके पर साहित्यकारों, कवियों व लेखकों ने जन-जन को हिंदी भाषा को गर्व के साथ अपनाने का आह्वान किया है। उनका मानना है कि भाषाई विकास की गति झरने की तरह होती है।
भाषा के विकास की पहली शर्त उसकी सरलता व सहजता है। जो भाषाएं इस मानक पर खरी नहीं उतरीं, वे स्वमेव मृत हो जाती हैं। भाषा न केवल भावनाओं व विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम है, बल्कि वह संस्कृति, धर्म व विज्ञान का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। हिंदी इन मानकों पर खरी उतरती है।
संस्कृत महाविद्यालय में प्राध्यापक डॉ. गोविंद द्विवेदी का कहना है कि हिंदी प्रगतिशील भाषा है। यदि भाषा में इतनी जटिलता आ जाए कि वर्ग विशेष ही उसे समझ सके तो उसकी उपयोगिता ही संदिग्ध हो जाती है। हिंदी की विकसन शीलता व व्यापकता निरंतर सरलता के सिद्धांत पर ही निर्भर है। हिंदी संस्कृत ,पाली , प्राकृत व अपभ्रंश से होती हुई भी 11वीं शताब्दी में अपने मूल रूप तक पहुंचती है।
हिंदी देश के 10 प्रदेशों में मुख्य भाषा के रूप से बोली जाती है। शेष प्रदेशों में भी समझी जाती है। देश के लगभग 70 फीसदी से अधिक लोग गर्व से इसका प्रयोग करते हैं । फिजी, सूरीनाम समेत कई देशों में हिंदी का बोलबाला है। विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में वह तीसरे स्थान पर है। वह बाजार की भाषा है, प्रमुख आंदोलनों की भाषा है व देश की सांस्कृतिक पहचान की भाषा है।
कवि गोपाल पांडेय का कहना है कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं बल्कि जीवन जीने के एक सलीका है। हिंदी की मिठास समूचे विश्व में बरकरार है। हम सबको हिंदी को अधिक से अधिक बोलना चाहिए। हिंदी बोलने में शर्म न करें। बल्कि हमें गर्व हो कि हम हिंदी भाषी हैं, तो हिंदी समूचे विश्व में व्याप्त होगी।
कवयित्री व लेखिका इति शिवहरे का कहना है कि विचारों के संप्रेषण का माध्यम अन्य भाषाएं हो सकती हैं, किंतु भावों के संप्रेषण का सबसे सशक्त माध्यम हिंदी है। हिंदी सहज, सरल, वैज्ञानिक, क्रमबद्ध व समृद्ध भाषा है। सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक क्षेत्रों के विकास में हिंदी का विशेष योगदान रहा है।
कवि योगेश दीक्षित का कहना है कि हिंदी भाषा ने अभिभाविका व संस्कृति की संवाहिका के रूप में राष्ट्र को प्रगति पथ की ओर सदैव अग्रसर किया है। कविता के माध्यम से उन्होंने कहाकि भारत के भाल का ये, मान है ये हिंदी। बाल मनुहार का भी गान है ये हिंदी ।
कवयित्री व लेखिका रश्मि मनोज का कहना है कि हिंदी भारत देश की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। संस्कृत की बड़ी बेटी हिंदी भाषा को कहा जाता है। जीवन जीने की एक सभ्य शैली हिंदी ही हुआ करती है। हिंदी को राष्ट्र भाषा के लिए कई संस्थाएं काम कर रही हैं। इसका परिणाम सफल होगा।

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-हिंदी दिवस पर लेखक, कवियों व शिक्षकों ने रखे विचार, हिंदी को जन जन की भाषा बनाने का किया आह्वान
संवाद न्यूज एजेंसी
औरैया। हिंदी दिवस के मौके पर साहित्यकारों, कवियों व लेखकों ने जन-जन को हिंदी भाषा को गर्व के साथ अपनाने का आह्वान किया है। उनका मानना है कि भाषाई विकास की गति झरने की तरह होती है।
भाषा के विकास की पहली शर्त उसकी सरलता व सहजता है। जो भाषाएं इस मानक पर खरी नहीं उतरीं, वे स्वमेव मृत हो जाती हैं। भाषा न केवल भावनाओं व विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम है, बल्कि वह संस्कृति, धर्म व विज्ञान का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। हिंदी इन मानकों पर खरी उतरती है।
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संस्कृत महाविद्यालय में प्राध्यापक डॉ. गोविंद द्विवेदी का कहना है कि हिंदी प्रगतिशील भाषा है। यदि भाषा में इतनी जटिलता आ जाए कि वर्ग विशेष ही उसे समझ सके तो उसकी उपयोगिता ही संदिग्ध हो जाती है। हिंदी की विकसन शीलता व व्यापकता निरंतर सरलता के सिद्धांत पर ही निर्भर है। हिंदी संस्कृत ,पाली , प्राकृत व अपभ्रंश से होती हुई भी 11वीं शताब्दी में अपने मूल रूप तक पहुंचती है।
हिंदी देश के 10 प्रदेशों में मुख्य भाषा के रूप से बोली जाती है। शेष प्रदेशों में भी समझी जाती है। देश के लगभग 70 फीसदी से अधिक लोग गर्व से इसका प्रयोग करते हैं । फिजी, सूरीनाम समेत कई देशों में हिंदी का बोलबाला है। विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में वह तीसरे स्थान पर है। वह बाजार की भाषा है, प्रमुख आंदोलनों की भाषा है व देश की सांस्कृतिक पहचान की भाषा है।
कवि गोपाल पांडेय का कहना है कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं बल्कि जीवन जीने के एक सलीका है। हिंदी की मिठास समूचे विश्व में बरकरार है। हम सबको हिंदी को अधिक से अधिक बोलना चाहिए। हिंदी बोलने में शर्म न करें। बल्कि हमें गर्व हो कि हम हिंदी भाषी हैं, तो हिंदी समूचे विश्व में व्याप्त होगी।
कवयित्री व लेखिका इति शिवहरे का कहना है कि विचारों के संप्रेषण का माध्यम अन्य भाषाएं हो सकती हैं, किंतु भावों के संप्रेषण का सबसे सशक्त माध्यम हिंदी है। हिंदी सहज, सरल, वैज्ञानिक, क्रमबद्ध व समृद्ध भाषा है। सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक क्षेत्रों के विकास में हिंदी का विशेष योगदान रहा है।
कवि योगेश दीक्षित का कहना है कि हिंदी भाषा ने अभिभाविका व संस्कृति की संवाहिका के रूप में राष्ट्र को प्रगति पथ की ओर सदैव अग्रसर किया है। कविता के माध्यम से उन्होंने कहाकि भारत के भाल का ये, मान है ये हिंदी। बाल मनुहार का भी गान है ये हिंदी ।
कवयित्री व लेखिका रश्मि मनोज का कहना है कि हिंदी भारत देश की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। संस्कृत की बड़ी बेटी हिंदी भाषा को कहा जाता है। जीवन जीने की एक सभ्य शैली हिंदी ही हुआ करती है। हिंदी को राष्ट्र भाषा के लिए कई संस्थाएं काम कर रही हैं। इसका परिणाम सफल होगा।