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लाक्षागृह प्रकरण : दोनों पक्षों के साक्ष्यों पर दोबारा शुरू होगी सुनवाई
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बड़ौत। बरनावा स्थित लाक्षागृह प्रकरण में मुस्लिम पक्ष की अपील के बाद अब बहस और साक्ष्यों पर दोबारा से सुनवाई शुरू होगी। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश का स्थानांतरण होने के बाद नए न्यायाधीश पूरी बहस और साक्ष्यों पर सुनवाई कर अपना निर्णय सुनाएंगे। दोनों पक्षों के अधिवक्ता अपने पक्ष के साक्ष्य भी न्यायालय में प्रस्तुत करेंगे।
बरनावा के रहने वाले मुकीम खान ने वर्ष 1970 में मेरठ की अदालत में वाद दायर किया था। इसमें लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया गया था। इसमें मुकीम खान की तरफ से दावा किया गया था कि बरनावा में प्राचीन टीले पर खसरा संख्या 3377 की 36 बीघा 6 बिस्से 8 बिस्वांसी जमीन है। इसमें उन्होंने लाक्षागृह को बदरुद्दीन की मजार और कब्रिस्तान होने का दावा किया था।
27 साल बाद यानी 1997 में यह मुकदमा मेरठ से बागपत के न्यायालय में ट्रांसफर हुआ था। यहां 27 साल तक हिंदू पक्ष ने अपने साक्ष्यों के साथ पक्ष रखा, वहीं मुस्लिम पक्ष ने भी अपने दावे को सही साबित करने के लिए न्यायालय में साक्ष्य प्रस्तुत किए। इस प्रकरण में सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम ने 5 फरवरी 2024 को प्राचीन टीले को लाक्षागृह माना और मुस्लिम पक्ष के दावे को खारिज कर दिया।
इसके बाद मुस्लिम पक्ष ने जिला एवं सत्र न्यायालय में निर्णय के खिलाफ अपील दायर कराई, जिसकी सुनवाई अपर जिला एवं सत्र न्यायालय प्रथम में चल रही है। मई माह में दोनों पक्षों की बहस और साक्ष्यों पर सुनवाई पूरी हुई और इसके बाद निर्णय पर सुनवाई होनी शेष रह गई थी। इस बीच अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम मीनू शर्मा का स्थानांतरण हाथरस हो गया। न्यायाधीश का स्थानांतरण होने के कारण साक्ष्यों और बहस पर दोबारा सुनवाई शुरू होगी।
-- -- -- -- -- वर्जन-
किसी भी प्रकरण में बहस पर सुनवाई के बाद फाइल निर्णय पर आ जाती है। सिविल के मामले में अगर इस दौरान न्यायाधीश का स्थानांतरण हो जाए तो बहस और साक्ष्यों पर दोबारा सुनवाई होगी। इसके बाद ही निर्णय सुनाया जाने की प्रक्रिया है। इसके चलते लाक्षागृह प्रकरण पर दोबारा सुनवाई शुरू होगी।
-भूपेंद्र शर्मा, जिला शासकीय अधिवक्ता सिविल
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बरनावा के रहने वाले मुकीम खान ने वर्ष 1970 में मेरठ की अदालत में वाद दायर किया था। इसमें लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया गया था। इसमें मुकीम खान की तरफ से दावा किया गया था कि बरनावा में प्राचीन टीले पर खसरा संख्या 3377 की 36 बीघा 6 बिस्से 8 बिस्वांसी जमीन है। इसमें उन्होंने लाक्षागृह को बदरुद्दीन की मजार और कब्रिस्तान होने का दावा किया था।
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27 साल बाद यानी 1997 में यह मुकदमा मेरठ से बागपत के न्यायालय में ट्रांसफर हुआ था। यहां 27 साल तक हिंदू पक्ष ने अपने साक्ष्यों के साथ पक्ष रखा, वहीं मुस्लिम पक्ष ने भी अपने दावे को सही साबित करने के लिए न्यायालय में साक्ष्य प्रस्तुत किए। इस प्रकरण में सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम ने 5 फरवरी 2024 को प्राचीन टीले को लाक्षागृह माना और मुस्लिम पक्ष के दावे को खारिज कर दिया।
इसके बाद मुस्लिम पक्ष ने जिला एवं सत्र न्यायालय में निर्णय के खिलाफ अपील दायर कराई, जिसकी सुनवाई अपर जिला एवं सत्र न्यायालय प्रथम में चल रही है। मई माह में दोनों पक्षों की बहस और साक्ष्यों पर सुनवाई पूरी हुई और इसके बाद निर्णय पर सुनवाई होनी शेष रह गई थी। इस बीच अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम मीनू शर्मा का स्थानांतरण हाथरस हो गया। न्यायाधीश का स्थानांतरण होने के कारण साक्ष्यों और बहस पर दोबारा सुनवाई शुरू होगी।
किसी भी प्रकरण में बहस पर सुनवाई के बाद फाइल निर्णय पर आ जाती है। सिविल के मामले में अगर इस दौरान न्यायाधीश का स्थानांतरण हो जाए तो बहस और साक्ष्यों पर दोबारा सुनवाई होगी। इसके बाद ही निर्णय सुनाया जाने की प्रक्रिया है। इसके चलते लाक्षागृह प्रकरण पर दोबारा सुनवाई शुरू होगी।
-भूपेंद्र शर्मा, जिला शासकीय अधिवक्ता सिविल