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Basti News: ना बाबा ना... समूह लोन के चक्कर में फंसे तो चली जाएगी जान, एजेंट देते हैं धमकी
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बस्ती। माइक्राफाइनेंस कंपनियों के समूह लोन स्कीम की चर्चा सामने आते ही अकलमंद अब यह कहने लगे हैं कि न बाबा न...। इसके चक्कर में फंसे तो धन भी गंवाएंगे और जान से भी हाथ धोना पड़ेगा। सिलसिलेवार वाकया भी कुछ ऐसे ही हुआ। किसी का परिवार बिखरा तो किसी को घर बार छोड़कर पलायित होना पड़ा। जिसे अधिक प्रताड़ना मिली उसे अपनी जान तक गंवानी पड़ी। साल भर में जिले में इस तरह की एक दर्जन से अधिक घटनाएं सामने आई। इस पर अंकुश लगाने में प्रशासन के भी हाथ बंधे हैं।
इधर एक दशक में माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने तेजी से पांव पसारा है। इनका नेटवर्क अब गांव-गांव फैल चुका है। कमीशन बेस पर क्षेत्रवार इनके एजेंट तैनात है। यह पहले गांवों में जाकर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को स्वावलंबी बनाने का झांसा देते हैं। मजदूर तबका ज्यादातर इनके बहकावे में आ रहा है। इनके घरों की महिलाएं समूह बनाने के झांसे आ जाती है। समूह में शामिल प्रत्येक सदस्य को 20 हजार से 80 हजार तक ऋण दिया जाता है। इसमें 13 से 15 प्रतिशत की दर से ब्याज जोड़कर दो साल से तीन साल का किश्त बनाया जा रहा है। बीच में यदि कोई ऋण की धनराशि जमा भी करना चाहे तो उसे शुरू में हुए दो या तीन साल के करार के हिसाब से ब्याज की धनराशि देनी पड़ती है। इस चक्कर में लोग रुपये की व्यवस्था होने के बाद ऋण की धनराशि एक मुश्त नहीं जमा करते हैं। जिससे आगे चलकर किश्त टूटने लगती है। मंझरिया गांव के सुनील कुमार बताते हैं कि उनकी पत्नी 40 हजार रुपये समूह लोन लिया। एजेंटों ने तीन हजार फाइल खर्चा लिया गया। लगभग दो हजार महीने की तीन साल की किश्त बनी। बीच में दो किश्त नहीं जमा हो पाई। एजेंट दबंगई पर उतर आए। उनके घर पर सुबह ही दस्तक देने लगे। घर से निकलना दुश्वार हो गया। किसी तरह रुपयों का बंदोबश्त करके समूह लोन की पूरी राशि जमा करके फुर्सत लिए।
सूदखोरों का धंधा हुआ मंदा
माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के आगे सूदखोरों का धंधा भी मंदा हो गया है। नगर थाना क्षेत्र के रमवापुर के मोनू बताते हैं कि अब 25-50 हजार कर्ज लेने के लिए सूदखोरों के पास लोग कम जा रहे हैं। क्योंकि इनका ब्याज माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से ज्यादा है। यह मासिक 10 प्रतिशत तक ब्याज वसूलते हैं। वहीं माइक्रोफाइनेंस कंपनियां वार्षिक ब्याज ले रही है। इसलिए लोग माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के झांसे में जल्दी आ रहे हैं। लेकिन, इनके वसूली की प्रक्रिया सूदखोरों से भी सख्त है। एक भी किश्त टूटने पर कंपनियों के एजेंट मानसिक प्रताड़ना देना शुरू कर देते हैं। 24 घंटे में 50 से अधिक फोन आ रहे हैं। इसके अलावा दरवाजे भी एजेंट पहुंचकर दबाव बनाने लगते हैं। जिससे कर्ज लेने वाले सामाजिक छवि खराब होती है। मानसिक प्रताड़ना से तंग आकर लोग आत्महत्या तक कर रहे हैं।
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इधर एक दशक में माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने तेजी से पांव पसारा है। इनका नेटवर्क अब गांव-गांव फैल चुका है। कमीशन बेस पर क्षेत्रवार इनके एजेंट तैनात है। यह पहले गांवों में जाकर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को स्वावलंबी बनाने का झांसा देते हैं। मजदूर तबका ज्यादातर इनके बहकावे में आ रहा है। इनके घरों की महिलाएं समूह बनाने के झांसे आ जाती है। समूह में शामिल प्रत्येक सदस्य को 20 हजार से 80 हजार तक ऋण दिया जाता है। इसमें 13 से 15 प्रतिशत की दर से ब्याज जोड़कर दो साल से तीन साल का किश्त बनाया जा रहा है। बीच में यदि कोई ऋण की धनराशि जमा भी करना चाहे तो उसे शुरू में हुए दो या तीन साल के करार के हिसाब से ब्याज की धनराशि देनी पड़ती है। इस चक्कर में लोग रुपये की व्यवस्था होने के बाद ऋण की धनराशि एक मुश्त नहीं जमा करते हैं। जिससे आगे चलकर किश्त टूटने लगती है। मंझरिया गांव के सुनील कुमार बताते हैं कि उनकी पत्नी 40 हजार रुपये समूह लोन लिया। एजेंटों ने तीन हजार फाइल खर्चा लिया गया। लगभग दो हजार महीने की तीन साल की किश्त बनी। बीच में दो किश्त नहीं जमा हो पाई। एजेंट दबंगई पर उतर आए। उनके घर पर सुबह ही दस्तक देने लगे। घर से निकलना दुश्वार हो गया। किसी तरह रुपयों का बंदोबश्त करके समूह लोन की पूरी राशि जमा करके फुर्सत लिए।
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सूदखोरों का धंधा हुआ मंदा
माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के आगे सूदखोरों का धंधा भी मंदा हो गया है। नगर थाना क्षेत्र के रमवापुर के मोनू बताते हैं कि अब 25-50 हजार कर्ज लेने के लिए सूदखोरों के पास लोग कम जा रहे हैं। क्योंकि इनका ब्याज माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से ज्यादा है। यह मासिक 10 प्रतिशत तक ब्याज वसूलते हैं। वहीं माइक्रोफाइनेंस कंपनियां वार्षिक ब्याज ले रही है। इसलिए लोग माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के झांसे में जल्दी आ रहे हैं। लेकिन, इनके वसूली की प्रक्रिया सूदखोरों से भी सख्त है। एक भी किश्त टूटने पर कंपनियों के एजेंट मानसिक प्रताड़ना देना शुरू कर देते हैं। 24 घंटे में 50 से अधिक फोन आ रहे हैं। इसके अलावा दरवाजे भी एजेंट पहुंचकर दबाव बनाने लगते हैं। जिससे कर्ज लेने वाले सामाजिक छवि खराब होती है। मानसिक प्रताड़ना से तंग आकर लोग आत्महत्या तक कर रहे हैं।