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Budaun News: एसएनसीयू यूनिट में सीपेप मशीन ही नहीं, सांसत में नवजातों की सांस
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एसएनसीयू में भर्ती नवजात। संवाद
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बदायूं। जिला महिला अस्पताल में समय से पहले जन्मे और कम वजन वाले नवजातों की जान सांसत में है। यहां बनी स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में शिशुओं को जीवनदान देने वाली इस यूनिट में सीपेप (कंटीन्युअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर) मशीन ही नहीं है। इस कारण नवजातों को अलीगढ़ और सेफई रेफर करना पड़ता है, जिससे उनकी जान जोखिम में रहती है। हर महीने 30 से अधिक को रेफर किया जा रहा है, जबकि 20 से अधिक नवजात हर महीने इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं।
स्थिति यह है कि कई नवजातों को जरूरी समय पर इलाज नहीं मिल पाता। उन्हें रेफर कर दिया जाता है। ऐसे में उनकी जान सांसत में पड़ जाती है। सौ बेड की क्षमता वाले जिला महिला अस्पताल में प्रतिदिन करीब 25-30 प्रसव होते हैं। हर माह की बात करें तो इनमें से तकरीबन 40 से 50 नवजातों को सांस लेने में मदद के लिए एसएनसीयू वार्ड में भर्ती कराया जाता है। जहां उनको सीपेप मशीन की जरूरत पड़ती है। हाल की बात करें तो चार नवजात पिछले चार दिन में दम तोड़ चुके हैं।
महिला अस्पताल के एसएनसीयू (स्पेशल न्यू बॉर्न केयर यूनिट) में अक्तूबर और नवंबर में 41 नवजात की जान चली गई। बड़ी संख्या में मौतों के पीछे सीपेप मशीन का न होना बताया गया है। सीपेप की कमी दूर करने के लिए पिछले छह साल में एक बार भी पत्राचार शासन से नहीं किया गया। यही वजह है कि जिले को स्वास्थ्य विभाग की ओर से हर साल करोड़ों का बजट मिलने के बाद भी कोई सुधार नहीं सका।
अक्तूबर में 21 नवजातों की मौत होने के बाद भी विभाग ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। वही नवंबर में भी 20 नवजातों की जान चली गई, जबकि दिसंबर में चार की मौत सामने आई है। अधिकांश बच्चों की मौत का कारण इंफेक्शन होना बताया गया है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. संदीप वार्ष्णेय ने बताया कि मरने वाले वे नवजात हैं, जिनको सीपेप मशीन की आवश्यकता थी। हायर सेंटर के लिए रेफर किया, लेकिन परिवार के लोग उनको लेकर ही नहीं गए। सुविधा के अभाव में उनको जो इलाज मिलना चाहिए था वह नहीं मिल सका और मौत हो गई।
रात के समय स्टाफ के हवाले रहते हैं नवजात
रात के समय एसएनसीयू में बाल रोग विशेषज्ञ नहीं रहते हैं। अगर किसी नवजात की हालत बिगड़ती है तो फोन कॉल पर ही डॉक्टर इलाज करते हैं, जबकि व्यवस्था है कि रात में भी डॉक्टर मौजूद रहना चाहिए। तीन डॉक्टर बाल रोग विशेषज्ञ महिला अस्पताल में हैं। इसके बाद भी रात में बाल रोग विशेषज्ञ नहीं मिल रहे हैं।
शासन से हर साल मिल रहा बढ़ा बजट
नवजात बच्चाें के इलाज में कोई कमी न रहे इसके लिए शासन से हर साल बढ़ा बजट विभाग को मिल रहा है। इसके बाद भी विभाग सीपेप मशीन तक एसएनसीयू में नहीं लगा पा रहा है।
12 की क्षमता का है एसएनसीयू
12 बेड के एसएनसीयू में पहले से ही क्षमता से अधिक भार है। वहीं, सीपेप मशीन नहीं होने से डॉक्टरों को बच्चों को रेफर करना पड़ता है। विशेषज्ञों का मानना है कि सीपेप की कमी से नवजात को अस्पताल से बाहर निकालने में भी खतरा बना रहता है। पहले से ही कमजोर बच्चों को रेफर करने पर भी संक्रमण व मौसम सहित दूरी जैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इससे न केवल इलाज जटिल हो जाता है, बल्कि शिशु की मृत्यु दर भी बढ़ने की आशंका बनी रहती है।
इस माह इन बच्चों की हुई मौत
सुरजीत की पत्नी बंटी को बच्चा पैदा हुआ। वजन कम होने की वजह से उसको एसएनसीयू में भर्ती कराया गया था। बच्चे को सीपेप मशीन की जरूरत थी। यहां न होने की वजह से रेफर किया गया, लेकिन ले जाने से पहले ही बच्चे की मौत हो गई। खुशी की बच्ची, सुषमा व सरोज के बच्चे की भी पिछले दिनों इलाज के अभाव में एसएनसीयू में मौत हो गई थी।
बाल रोग विशेषज्ञों की रात में ड्यूटी रहती है। रात में डॉक्टर न रहने की शिकायत नहीं मिली है। सीपेप मशीन शासन स्तर से लगेगी। जिलेवार मशीनें लगाईं जा रहीं हैं। अपने जिले में जल्द ही मशीनें लगने की उम्मीद है। इसके बाद नवजातों का और भी बेहतर इलाज हो सकेगा। इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। - डॉ. शोभा अग्रवाल, सीएमएस, महिला अस्पताल
अब स्टाफ की कोई कमी नहीं है। तीन बाल रोग विशेषज्ञों के साथ एमओ भी एसएनसीयू में तैनात हैं। मशीन के अभाव में रेफर करना बच्चे की जान बचाने के लिए जरुरी होता है। जो लोग बाहर ले जाने में लापरवाही करते हैं, ऐसे बच्चों की जान को अधिक खतरा होता है। कोशिश रहती है कि इलाज के माध्यम से ही नवजात की जान बचाई जा सके। - डॉ. संदीप वार्ष्णेय, बाल रोग विशेषज्ञ नोडल, एसएनसीयू
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स्थिति यह है कि कई नवजातों को जरूरी समय पर इलाज नहीं मिल पाता। उन्हें रेफर कर दिया जाता है। ऐसे में उनकी जान सांसत में पड़ जाती है। सौ बेड की क्षमता वाले जिला महिला अस्पताल में प्रतिदिन करीब 25-30 प्रसव होते हैं। हर माह की बात करें तो इनमें से तकरीबन 40 से 50 नवजातों को सांस लेने में मदद के लिए एसएनसीयू वार्ड में भर्ती कराया जाता है। जहां उनको सीपेप मशीन की जरूरत पड़ती है। हाल की बात करें तो चार नवजात पिछले चार दिन में दम तोड़ चुके हैं।
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महिला अस्पताल के एसएनसीयू (स्पेशल न्यू बॉर्न केयर यूनिट) में अक्तूबर और नवंबर में 41 नवजात की जान चली गई। बड़ी संख्या में मौतों के पीछे सीपेप मशीन का न होना बताया गया है। सीपेप की कमी दूर करने के लिए पिछले छह साल में एक बार भी पत्राचार शासन से नहीं किया गया। यही वजह है कि जिले को स्वास्थ्य विभाग की ओर से हर साल करोड़ों का बजट मिलने के बाद भी कोई सुधार नहीं सका।
अक्तूबर में 21 नवजातों की मौत होने के बाद भी विभाग ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। वही नवंबर में भी 20 नवजातों की जान चली गई, जबकि दिसंबर में चार की मौत सामने आई है। अधिकांश बच्चों की मौत का कारण इंफेक्शन होना बताया गया है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. संदीप वार्ष्णेय ने बताया कि मरने वाले वे नवजात हैं, जिनको सीपेप मशीन की आवश्यकता थी। हायर सेंटर के लिए रेफर किया, लेकिन परिवार के लोग उनको लेकर ही नहीं गए। सुविधा के अभाव में उनको जो इलाज मिलना चाहिए था वह नहीं मिल सका और मौत हो गई।
रात के समय स्टाफ के हवाले रहते हैं नवजात
रात के समय एसएनसीयू में बाल रोग विशेषज्ञ नहीं रहते हैं। अगर किसी नवजात की हालत बिगड़ती है तो फोन कॉल पर ही डॉक्टर इलाज करते हैं, जबकि व्यवस्था है कि रात में भी डॉक्टर मौजूद रहना चाहिए। तीन डॉक्टर बाल रोग विशेषज्ञ महिला अस्पताल में हैं। इसके बाद भी रात में बाल रोग विशेषज्ञ नहीं मिल रहे हैं।
शासन से हर साल मिल रहा बढ़ा बजट
नवजात बच्चाें के इलाज में कोई कमी न रहे इसके लिए शासन से हर साल बढ़ा बजट विभाग को मिल रहा है। इसके बाद भी विभाग सीपेप मशीन तक एसएनसीयू में नहीं लगा पा रहा है।
12 की क्षमता का है एसएनसीयू
12 बेड के एसएनसीयू में पहले से ही क्षमता से अधिक भार है। वहीं, सीपेप मशीन नहीं होने से डॉक्टरों को बच्चों को रेफर करना पड़ता है। विशेषज्ञों का मानना है कि सीपेप की कमी से नवजात को अस्पताल से बाहर निकालने में भी खतरा बना रहता है। पहले से ही कमजोर बच्चों को रेफर करने पर भी संक्रमण व मौसम सहित दूरी जैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इससे न केवल इलाज जटिल हो जाता है, बल्कि शिशु की मृत्यु दर भी बढ़ने की आशंका बनी रहती है।
इस माह इन बच्चों की हुई मौत
सुरजीत की पत्नी बंटी को बच्चा पैदा हुआ। वजन कम होने की वजह से उसको एसएनसीयू में भर्ती कराया गया था। बच्चे को सीपेप मशीन की जरूरत थी। यहां न होने की वजह से रेफर किया गया, लेकिन ले जाने से पहले ही बच्चे की मौत हो गई। खुशी की बच्ची, सुषमा व सरोज के बच्चे की भी पिछले दिनों इलाज के अभाव में एसएनसीयू में मौत हो गई थी।
बाल रोग विशेषज्ञों की रात में ड्यूटी रहती है। रात में डॉक्टर न रहने की शिकायत नहीं मिली है। सीपेप मशीन शासन स्तर से लगेगी। जिलेवार मशीनें लगाईं जा रहीं हैं। अपने जिले में जल्द ही मशीनें लगने की उम्मीद है। इसके बाद नवजातों का और भी बेहतर इलाज हो सकेगा। इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। - डॉ. शोभा अग्रवाल, सीएमएस, महिला अस्पताल
अब स्टाफ की कोई कमी नहीं है। तीन बाल रोग विशेषज्ञों के साथ एमओ भी एसएनसीयू में तैनात हैं। मशीन के अभाव में रेफर करना बच्चे की जान बचाने के लिए जरुरी होता है। जो लोग बाहर ले जाने में लापरवाही करते हैं, ऐसे बच्चों की जान को अधिक खतरा होता है। कोशिश रहती है कि इलाज के माध्यम से ही नवजात की जान बचाई जा सके। - डॉ. संदीप वार्ष्णेय, बाल रोग विशेषज्ञ नोडल, एसएनसीयू

एसएनसीयू में भर्ती नवजात। संवाद

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