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Jhansi: सोशल मीडिया की दोस्ती...फरेबियों के झांसे में आ रहीं किशोरियां, पुलिस की सतर्कता से बचा 350 का भविष्य
संवाद न्यूज एजेंसी, झांसी
Published by: दीपक महाजन
Updated Wed, 17 Dec 2025 08:44 AM IST
सार
सोशल मीडिया पर दोस्ती के बाद किशोरियां बातों व दिखावा से आकर्षित होकर सुनहरे भविष्य की खोज में निकल पड़ती हैं लेकिन अंतत: उन्हें धोखा मिल रहा है। एक ही साल में 350 से ज्यादा किशोरियां समिति के सामने पेश हुईं।
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सोशल मीडिया पर दोस्ती के बाद धाेखा।
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विस्तार
सोशल मीडिया के माध्यम से किशोरियां युवकों के झांसे में आकर अपना भविष्य बर्बाद कर रही हैं। वे असामाजिक तत्वों के चंगुल में फंस रही हैं। जिन पर पुलिस की नजर पड़ जाती है वे संकट से बच जाती हैं। बाल कल्याण समिति के आंकड़े बताते हैं कि एक साल में झांसी स्टेशन या इसके आसपास 350 से ज्यादा किशोरियां भटकती मिलीं। पुलिस ने उन्हें बाल कल्याण समिति में पेश किया फिर उन्हें परिजनों के पास भेजा गया।
पांच साल में भटकने वाली किशोरियाें की संख्या बढ़ी
बाल कल्याण समिति से प्राप्त आंकड़ों पर गौर करें तो 10 से 17 साल तक की लड़कियां ज्यादा भटकाव की ओर हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से वे भ्रामक संदेश व चैटिंग के जरिये महानगरों के युवकों में संपर्क में आकर अपना भविष्य बर्बाद करने से गुरेज नहीं कर रहीं। वे बातों व दिखावा से आकर्षित होकर सुनहरे भविष्य की खोज में निकल पड़ती हैं लेकिन अंतत: उन्हें धोखा मिल रहा है। पिछले पांच वर्षों में इस तरह भटकने वाली किशोरियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। एक ही साल में 350 से ज्यादा किशोरियां समिति के सामने पेश हुईं। उन्हें भले ही वक्त रहते असामाजिक तत्वों के चंगुल से बचा लिया गया लेकिन जो पुलिस की नजर में नहीं आ सकीं वे धोखा खा चुकी हैं। 2021 में 160 लड़के व 300 किशोरियां, 2022 में 165 लड़के व 310 किशोरियां, 2023 में 170 लड़के व 320 नाबालिग लड़कियां, 2024 में 180 लड़के और 320 लड़कियां तथा 2025 में 196 लड़के व 350 नाबालिग लड़कियां समिति के सामने पेश की गईं।
यह बोले समाजशास्त्री
पूर्व में बच्चे संयुक्त परिवार में रहते थे। अब अधिकांश एकल परिवार हैं। सोशल मीडिया भी किशोरियों को भटका रहा है। उन्हें परिवार में अपनापन व वक्त मिलेगा तो वे ऐसा कदम नहीं उठाएंंगीं। -डॉ. सुरेन्द्र नारायण, सहायक प्राध्यापक, बुंदेलखंड कॉलेज।
केस 1
गोंडा की 16 वर्षीय किशोरी की मुंबई के 25 वर्षीय युवक से फेसबुक पर दोस्ती हुई। युवक ने मोबाइल पर कॉल कर लड़की को मुंबई बुलाया। उसे फिल्मों में काम दिलाने का लालच दिया लेकिन झांसी स्टेशन पर उस पर पुलिस की नजर पड़ गई। उसे ट्रेन से उतार लिया गया। यह घटना अगस्त की है। उसे बाल कल्याण समिति में पेश किया गया। जैसे-तैसे वह चंगुल से बच सकी।
केस 2
महाराष्ट्र के वर्धा की रहने वाली 15 वर्षीय किशोरी को मोबाइल गेम के माध्यम से 50 हजार रुपये जीत लेने का झांसा दिया गया। उसे दिल्ली बुलाया लेकिन शक होने पर झांसी स्टेशन पर पुलिस ने उतार लिया। उसे बाल कल्याण समिति के सामने पेश किया। यहां से उसे परिजनों के सुपुर्द किया गया।
लावारिस हाल में मिलने पर समिति करती है काउंसिलिंग
सोशल मीडिया के नकारात्मक असर से एक ही साल में करीब 350 नाबालिग लड़कियां घर अपना घर छोड़कर भागीं। पुलिस ने उन्हें समिति में पेश किया। उन्हें समझाइश देकर परिजनों के पास भेजा। परिजनों तक पहुंचाने में समिति के सदस्य परबीन खान, दीपा सक्सेना, कोमल सिंह और हरिकृष्ण सक्सेना व कार्यालय प्रभारी साजिद खान की अहम भूमिका रहती है।
सोशल मीडिया के प्रभाव से लड़कों की तुलना में किशोरियां ज्यादा घर छोड़ रही हैं। उन्हें समझाइस देकर परिजनों के सुपुर्द किया जाता है लेकिन यह चिंता का विषय है। राजीव शर्मा, अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति
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पांच साल में भटकने वाली किशोरियाें की संख्या बढ़ी
बाल कल्याण समिति से प्राप्त आंकड़ों पर गौर करें तो 10 से 17 साल तक की लड़कियां ज्यादा भटकाव की ओर हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से वे भ्रामक संदेश व चैटिंग के जरिये महानगरों के युवकों में संपर्क में आकर अपना भविष्य बर्बाद करने से गुरेज नहीं कर रहीं। वे बातों व दिखावा से आकर्षित होकर सुनहरे भविष्य की खोज में निकल पड़ती हैं लेकिन अंतत: उन्हें धोखा मिल रहा है। पिछले पांच वर्षों में इस तरह भटकने वाली किशोरियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। एक ही साल में 350 से ज्यादा किशोरियां समिति के सामने पेश हुईं। उन्हें भले ही वक्त रहते असामाजिक तत्वों के चंगुल से बचा लिया गया लेकिन जो पुलिस की नजर में नहीं आ सकीं वे धोखा खा चुकी हैं। 2021 में 160 लड़के व 300 किशोरियां, 2022 में 165 लड़के व 310 किशोरियां, 2023 में 170 लड़के व 320 नाबालिग लड़कियां, 2024 में 180 लड़के और 320 लड़कियां तथा 2025 में 196 लड़के व 350 नाबालिग लड़कियां समिति के सामने पेश की गईं।
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यह बोले समाजशास्त्री
पूर्व में बच्चे संयुक्त परिवार में रहते थे। अब अधिकांश एकल परिवार हैं। सोशल मीडिया भी किशोरियों को भटका रहा है। उन्हें परिवार में अपनापन व वक्त मिलेगा तो वे ऐसा कदम नहीं उठाएंंगीं। -डॉ. सुरेन्द्र नारायण, सहायक प्राध्यापक, बुंदेलखंड कॉलेज।
केस 1
गोंडा की 16 वर्षीय किशोरी की मुंबई के 25 वर्षीय युवक से फेसबुक पर दोस्ती हुई। युवक ने मोबाइल पर कॉल कर लड़की को मुंबई बुलाया। उसे फिल्मों में काम दिलाने का लालच दिया लेकिन झांसी स्टेशन पर उस पर पुलिस की नजर पड़ गई। उसे ट्रेन से उतार लिया गया। यह घटना अगस्त की है। उसे बाल कल्याण समिति में पेश किया गया। जैसे-तैसे वह चंगुल से बच सकी।
केस 2
महाराष्ट्र के वर्धा की रहने वाली 15 वर्षीय किशोरी को मोबाइल गेम के माध्यम से 50 हजार रुपये जीत लेने का झांसा दिया गया। उसे दिल्ली बुलाया लेकिन शक होने पर झांसी स्टेशन पर पुलिस ने उतार लिया। उसे बाल कल्याण समिति के सामने पेश किया। यहां से उसे परिजनों के सुपुर्द किया गया।
लावारिस हाल में मिलने पर समिति करती है काउंसिलिंग
सोशल मीडिया के नकारात्मक असर से एक ही साल में करीब 350 नाबालिग लड़कियां घर अपना घर छोड़कर भागीं। पुलिस ने उन्हें समिति में पेश किया। उन्हें समझाइश देकर परिजनों के पास भेजा। परिजनों तक पहुंचाने में समिति के सदस्य परबीन खान, दीपा सक्सेना, कोमल सिंह और हरिकृष्ण सक्सेना व कार्यालय प्रभारी साजिद खान की अहम भूमिका रहती है।
सोशल मीडिया के प्रभाव से लड़कों की तुलना में किशोरियां ज्यादा घर छोड़ रही हैं। उन्हें समझाइस देकर परिजनों के सुपुर्द किया जाता है लेकिन यह चिंता का विषय है। राजीव शर्मा, अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति
