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Lalitpur News: हिंदी बोलकर व सुनकर अपनत्व का होता है एहसास
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ललितपुर। भारत देश में विभिन्न भाषाएं एवं क्षेत्रीय बोली आम बोल चाल में बोली जाती है। ऐसे में आजादी के बाद एक ऐसी भाषा चुनाव करना था, जो पूरे भारत को एक सूत्र में बांध सके। इसके लिए हिंदी भाषा का चयन किया गया।
हिंदी के विद्वानों व वरिष्ठ कवियों का कहना है कि भारत की पहचान उसकी विविधता और संस्कृति में बसती है। अलग-अलग भाषाओं, बोलियों और परंपराओं के बीच हिंदी वह धागा है जो पूरे देश को एक सूत्र में बांधती है। हिंदी के महत्व और उसकी उपयोगिता को दर्शाने के लिए हर साल हिंदी दिवस मनाया जाता है। भारत की स्वतंत्रता के बाद देश के सामने एक बड़ा सवाल था राष्ट्रभाषा का। एक ऐसी भाषा की जरूरत थी जो पूरे देश को एक सूत्र में बांध सके। हिंदी, जिसे एक विशाल जनसंख्या द्वारा बोला और समझा जाता था।
इसी के मद्देनजर 14 सितंबर 1949 को भारत की संविधान सभा में अनुच्छेद 343 के तहत यह तय किया गया कि देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा होगी। इस फैसले ने हिंदी को देश की पहचान और प्रशासनिक कार्यों का केंद्र बिंदु बना दिया। इसी फैसले के कारण देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने 1953 में पहली बार 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की और तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है। यह दिन देश के नागरिकों, खासतौर से सरकारी कार्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में संविधान में दिए गए हिंदी के स्थान और महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है।

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इसी के मद्देनजर 14 सितंबर 1949 को भारत की संविधान सभा में अनुच्छेद 343 के तहत यह तय किया गया कि देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा होगी। इस फैसले ने हिंदी को देश की पहचान और प्रशासनिक कार्यों का केंद्र बिंदु बना दिया। इसी फैसले के कारण देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने 1953 में पहली बार 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की और तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है। यह दिन देश के नागरिकों, खासतौर से सरकारी कार्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में संविधान में दिए गए हिंदी के स्थान और महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है।