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Lalitpur News: ललितपुर के सिंघाड़े भोपाल में घोल रहे मिठास
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हर्षपुर, तालबेहट, शाहपुर, जखौरा के करीब दो सौ से अधिक परिवार कर रहे सिंघाड़े की खेती, लाखों की होती है कमाई
संवाद न्यूज एजेंसी
ललितपुर। जनपद के सिंघाड़े प्रदेश सहित गुजरात, महाराष्ट्र में भी अपनी मिठास घोल रहे हैं। तालबेहट और हर्षपुर के तालाबों में सैकड़ों एकड़ क्षेत्रफल में सिंघाड़े की खेती हो रही है। इन क्षेत्रों में पैदा हो रहा सिंघाड़ा मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी पहुंच रहा है। सिंघाड़े की खेती से लगभग दो सौ से अधिक परिवारों का भरण पोषण हो रहा है। सर्दियों में पड़ने वाले त्योहारों पर सिंघाड़े की मांग अधिक बढ़ जाती है।
जनपद में सिंघाड़े की खेती बरसात की शुरुआत में और जून के अंत में शुरू की जाती है। इसकी फसल लगभग चार महीने में पककर तैयार होती है। इसके बाद दो महीने तक सिंघाडे तोड़कर बेचे जाते हैं। ग्राम हर्षपुर में ही 50 से अधिक परिवार लगभग 30 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में सिंघाड़े की खेती करते हैं। एक एकड़ में लगभग दो से तीन क्विंंटल तक सिंघाड़े की पैदावार होती है।
यहां का सिंघाड़ा भोपाल के साथ-साथ जिले के महरौनी, मड़ावरा, जाखलौन, धौर्रा, तालबेहट, बार और जखौरा क्षेत्र के बाजारों में बिकता है। खासतौर पर सिंघाड़े का उपयोग पूजा व व्रत में सबसे अधिक किया जाता है। गीले सिंघाड़े और सिंघाड़े के आटे की मांग दीपावली के बाद पड़ने वाली एकादशी के त्योहार पर सबसे अधिक होती है।
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ललितपुर। जनपद के सिंघाड़े प्रदेश सहित गुजरात, महाराष्ट्र में भी अपनी मिठास घोल रहे हैं। तालबेहट और हर्षपुर के तालाबों में सैकड़ों एकड़ क्षेत्रफल में सिंघाड़े की खेती हो रही है। इन क्षेत्रों में पैदा हो रहा सिंघाड़ा मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी पहुंच रहा है। सिंघाड़े की खेती से लगभग दो सौ से अधिक परिवारों का भरण पोषण हो रहा है। सर्दियों में पड़ने वाले त्योहारों पर सिंघाड़े की मांग अधिक बढ़ जाती है।
जनपद में सिंघाड़े की खेती बरसात की शुरुआत में और जून के अंत में शुरू की जाती है। इसकी फसल लगभग चार महीने में पककर तैयार होती है। इसके बाद दो महीने तक सिंघाडे तोड़कर बेचे जाते हैं। ग्राम हर्षपुर में ही 50 से अधिक परिवार लगभग 30 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में सिंघाड़े की खेती करते हैं। एक एकड़ में लगभग दो से तीन क्विंंटल तक सिंघाड़े की पैदावार होती है।
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यहां का सिंघाड़ा भोपाल के साथ-साथ जिले के महरौनी, मड़ावरा, जाखलौन, धौर्रा, तालबेहट, बार और जखौरा क्षेत्र के बाजारों में बिकता है। खासतौर पर सिंघाड़े का उपयोग पूजा व व्रत में सबसे अधिक किया जाता है। गीले सिंघाड़े और सिंघाड़े के आटे की मांग दीपावली के बाद पड़ने वाली एकादशी के त्योहार पर सबसे अधिक होती है।
