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अनंत चतुर्दशी पर जल कलश शोभायात्रा निकाली
अमर उजाला ब्यूरो/ मुजफ्फरनगर
Updated Fri, 16 Sep 2016 01:25 AM IST
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जल कलश यात्रा निकालते जैन समाज के लोग।
- फोटो : अमर उजाला
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खतौली में दशलक्षण पर्व के अंतर्गत अनंत चतुर्दशी को जैन श्रद्धालुओं ने भक्ति भाव, श्रद्धा व समर्पण के साथ मनाया। दशलक्षण पर्व त्याग के लिए जाने जाते हैं। बृहस्पतिवार को प्रात:काल से ही नगर के सभी नौ जैन मंदिरों में श्रीजी के दर्शन व पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही। सभी मंदिरों में पीत वस्त्रों में स्त्री और पुरुषों ने पूजा पाठ किया। इस अवसर पर नगर में जैन समाज के द्वारा जलकलश शोभायात्रा आयोजित की गई।
शोभायात्रा जैन मंडी मंदिर से प्रारंभ होकर बिद्दीबाड़ा, बड़ा बाजार से गुजरती हुई गंगनहर के निकट स्थित नसिया जी जैन मंदिर पहुंची। शोभायात्रा में इंद्र कलश लेकर चल रहे थे। नसिया जी से पवित्र जल लेकर शोभायात्रा सभी मंदिरों से गुजरकर वापस जैन मंडी स्थित मंदिर जी पहुंची। सभी मंदिरों में इंद्रों द्वारा लाए गए पवित्र जल से श्रीजी का अभिषेक मंत्रोच्चार के साथ किया गया। शोभायात्रा बैंड बाजों के साथ धूमधाम के साथ निकाली गई।
पीसनोपाड़ा जैन मंदिर में आयोजित धर्मसभा में एलाचार्य क्षमाभूषण जी महाराज ने कहा कि संसार में दो धाराएं चल रही हैं। एक योग की और दूसरी भोग की। भोग का अर्थ विषय सेवन है, जो इंद्रियों के द्वारा पदार्थों के प्रति आशक्ति रूप होता है। योग में आत्मा के निर्विकार स्वरूप की प्राप्ति के लिए चिंतन किया जाता है। आज दसवां उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म सकल मनुष्य समाज के लिए अत्यंत उपयोगी है। इसमें शिक्षा दी जाती है कि ब्रह्मचर्य धारण कर प्रभु भक्ति में लीन रहो।
ब्रह्मचर्य का वास्तविक अर्थ है अंतर्यात्रा अर्थात अपनी ज्ञान रूप आत्मा में लीन होना। हमारे पुराणों में सीता, द्रोपदी, मनोरमा, अंजना आदि महासतियों तथा भगवान नेमि पार्श्वनाथ महावीर, भीष्म पितामह आदि सत्पुरुषों के प्रेरक जीवन प्रसंग मिलते हैं। सादगी, सत्संगति और स्वाध्याय से भी ब्रह्मचर्य पालन में दृढ़ता आती है। मुनिश्री ने कहा कि पर्यूषण त्याग पर्व है। यह पर्व अंधकार से प्रकाश में और अज्ञानावस्था से ज्ञानावस्था में लाता है।
इसलिए पर्यूषण पर्व को पर्वराज और महापर्व कहा जाता है। इस दौरान सभी मंदिरों में सकल जैन समाज से नगरपालिका चेयरमैन पारस जैन, सिद्धार्थ, कल्पेंद्र, रवि, सुनील टीकरी, सुशील, वीरेश, राजेंद्र दादरी, पवन प्रवक्ता, नीरज जैन प्रवक्ता, रामकुमार, योगेश सर्राफ, अरुण, मुकेश एडवोकेट, सुरेंद्र, श्रीपाल, राजीव मुखिया, उपेंद्र, शीलचंद, नरेंद्र सर्राफ, अमरचंद, रतनलाल, निर्दोष, अतुल, विनीत, विवेक प्रवक्ता, अनुपम आढ़ती, विपिन तिंगाई, क्षितिज, डा. आरके जैन, अजय, दीपक, मृदुला, डा. ज्योति, अलका, कविता, करूणा, डीके जैन, पिंकी, सुनील ठेकेदार आदि सक्रिय रहे।

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पीसनोपाड़ा जैन मंदिर में आयोजित धर्मसभा में एलाचार्य क्षमाभूषण जी महाराज ने कहा कि संसार में दो धाराएं चल रही हैं। एक योग की और दूसरी भोग की। भोग का अर्थ विषय सेवन है, जो इंद्रियों के द्वारा पदार्थों के प्रति आशक्ति रूप होता है। योग में आत्मा के निर्विकार स्वरूप की प्राप्ति के लिए चिंतन किया जाता है। आज दसवां उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म सकल मनुष्य समाज के लिए अत्यंत उपयोगी है। इसमें शिक्षा दी जाती है कि ब्रह्मचर्य धारण कर प्रभु भक्ति में लीन रहो।
ब्रह्मचर्य का वास्तविक अर्थ है अंतर्यात्रा अर्थात अपनी ज्ञान रूप आत्मा में लीन होना। हमारे पुराणों में सीता, द्रोपदी, मनोरमा, अंजना आदि महासतियों तथा भगवान नेमि पार्श्वनाथ महावीर, भीष्म पितामह आदि सत्पुरुषों के प्रेरक जीवन प्रसंग मिलते हैं। सादगी, सत्संगति और स्वाध्याय से भी ब्रह्मचर्य पालन में दृढ़ता आती है। मुनिश्री ने कहा कि पर्यूषण त्याग पर्व है। यह पर्व अंधकार से प्रकाश में और अज्ञानावस्था से ज्ञानावस्था में लाता है।
इसलिए पर्यूषण पर्व को पर्वराज और महापर्व कहा जाता है। इस दौरान सभी मंदिरों में सकल जैन समाज से नगरपालिका चेयरमैन पारस जैन, सिद्धार्थ, कल्पेंद्र, रवि, सुनील टीकरी, सुशील, वीरेश, राजेंद्र दादरी, पवन प्रवक्ता, नीरज जैन प्रवक्ता, रामकुमार, योगेश सर्राफ, अरुण, मुकेश एडवोकेट, सुरेंद्र, श्रीपाल, राजीव मुखिया, उपेंद्र, शीलचंद, नरेंद्र सर्राफ, अमरचंद, रतनलाल, निर्दोष, अतुल, विनीत, विवेक प्रवक्ता, अनुपम आढ़ती, विपिन तिंगाई, क्षितिज, डा. आरके जैन, अजय, दीपक, मृदुला, डा. ज्योति, अलका, कविता, करूणा, डीके जैन, पिंकी, सुनील ठेकेदार आदि सक्रिय रहे।