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Pilibhit News: बांस की किल्लत ने रोक दिए बांसुरी नगरी के सुर

संवाद न्यूज एजेंसी, पीलीभीत Updated Thu, 18 Sep 2025 01:31 AM IST
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Bamboo shortage has stopped the tunes of the flute city
बांस का लगा भंडार। स्रोत फाइल फोटो
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फखरूल इस्लाम
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पीलीभीत। बांसुरी नगरी की पहचान रहे इस परंपरागत उद्योग की सबसे बड़ी चुनौती अब बांस की किल्लत बन चुकी है। बांसुरी बनाने लायक खास किस्म का बांस यहां पैदा ही नहीं होता। यह असम के सिल्चर से मंगवाना पड़ता है, जो महंगा पड़ने के साथ सप्लाई में भी अनिश्चित रहता है। यही वजह है कि शासन की एक जिला एक उत्पाद योजना में शामिल होने के बावजूद बांसुरी कारोबार फिर से रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है।
कारीगरों के मुताबिक मीटर गेज रेल लाइन के समय असम से बांस सस्ते और आसानी से पहुंच जाते थे, लेकिन अब बढ़े परिवहन खर्च और उपलब्धता की समस्या ने कारीगरों की कमर तोड़ दी है। कुछ साल पहले स्थानीय स्तर पर बांस उत्पादन की कवायद हुई थी, लेकिन वह कारगर साबित नहीं हो सकी। नतीजा यह कि पीलीभीत के कारीगर हर साल हजारों किलोमीटर दूर से बांस मंगाने को मजबूर हैं।
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करीब 130 साल पुराना यह उद्योग कभी देश-विदेश में अपनी मधुर धुन से पहचान रखता था। यहां से बनी बांसुरियां अमेरिका, फ्रांस, डेनमार्क और श्रीलंका तक जाती थीं। मशहूर बांसुरी वादक राजेंद्र प्रसन्ना भी पीलीभीत की बांसुरी के कायल रहे, लेकिन आज यह कारोबार करोड़ोंं के टर्नओवर से सिमटकर लाखों रुपये तक रह गया है। कारीगरों का मानना है कि जब तक स्थानीय स्तर पर बांस की खेती और आपूर्ति को लेकर ठोस पहल नहीं होगी, तब तक बांसुरी नगरी की मधुर धुनें सुनाई देना और भी बंद हो जाएंगी। संवाद
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बांसुरी चौराहा बना पहचान, बांसुरी महोत्सव का भी हुआ आयोजन
बांसुरी को लेकर जनपद की पहचान देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक फैली है। निजी कार्यक्रम से लेकर सरकारी कार्यक्रमों तक अतिथियों को उपहार स्वरूप बांसुरी देने पर ही जोर दिया जाता है। इसके इतर शहर में बांसुरी चौराहा बनाया गया। इसके साथ ही प्रशासन की ओर से बांसुरी महोत्सव का भी आयोजन कराया गया। इससे बांसुरी को लेकर जनपद को लगातार सुर्खियां मिलती रही।
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अयोध्या भेजी गई थी 21 फुट छह इंच लंबी बांसुरी
योध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद हुए भव्य कार्यक्रम में पीलीभीत की बांसुरी ने भी सुर्खियां बंटोरी थीं। यह बांसुरी पीलीभीत की महिला कारीगर हिना बी और अरमान ने बनाई थी। इस बांसुरी को बनाने में करीब 70-80 हजार रुपये का खर्च आया था। इस बांसुरी का व्यास यानी गोलाई 3.5 इंच थी। यह 21 फुट छह इंच लंबी थी।

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बांस की पौध के लिए मांगी गई है जमीन
सामाजिक वानिकी विभाग के डीएफओ भरत कुमार डीके के अनुसार जिले में अभी तक विभागीय स्तर से बांस की पौध तैयार नहीं कराई जा रही है। हालांकि बांसुरी में प्रयोग बांस को उगाने के लिए जमीन की तलाश की जा रही है। इसके लिए जिलाधिकारी से भी पत्राचार किए गए हैं। एक हेक्टेयर जमीन पर एक लाख बांस के पौध लगाने की विभाग की योजना है। जमीन मिलने के बाद इसपर काम किया जाएगा।
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