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RPN Singh Joins BJP: स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ योगी का बड़ा प्लान, जानिए अब पडरौना में कौन पड़ेगा भारी?
सार
UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश चुनाव में इस बार कुशीनगर जिले की पडरौना सीट काफी हॉट मानी जा रही है। कारण यहां से 2017 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य का बागी होकर समाजवादी पार्टी में शामिल होना और अब पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह का कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होना।
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भाजपा में शामिल हुए आरपीएन सिंह
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
आरपीएन सिंह यानी रतनजीत प्रताप नारायण सिंह, कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं। आरपीएन एक लंबा सियासी सफर तय कर चुके हैं। यूपीए सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री रहे और एक समय था जब कुशीनगर का पडरौना विधानसभा आरपीएन का गढ़ कहा जाता था। 2009 में लोकसभा सांसद चुने जाने तक वह यहां से तीन बार विधायक रहे। 2007 में भी उन्होंने यह सीट कांग्रेस के लिए जीती थी। 2009 में आरपीएन के सांसद बनने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य की इस सीट पर एंट्री हुई और उपचुनाव वह जीत गए।
आरपीएन सिंह का राजनीतिक सफर
2017 में भाजपा में शामिल हुए थे मौर्य
2009 में हुए पडरौना विधानसभा के उपचुनाव में बसपा के स्वामी प्रसाद मौर्य यहां से जीते। 2012 में भी मौर्य ने जीत हासिल की। 2017 चुनाव से ठीक पहले मौर्य भाजपा में शामिल हो गए और यहां से तीसरी बार जीतने में कामयाब रहे। इस बार फिर मौर्य ने पाला बदल लिया है। अब वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं। उधर, भाजपा ने भी यहां आरपीएन सिंह के तौर पर नया चेहरा ढूंढ लिया है। भाजपा अगर आरपीएन सिंह को यहां से उतारती है तो पडरौना का मुकाबला काफी रोचक होगा।
जातीय गणित क्या कहता है?
पडरौना विधानसभा में 3.48 लाख मतदाता हैं। सबसे ज्यादा करीब 84 हजार मुस्लिम वोटर्स हैं। इसके बाद करीब 76 हजार एससी, 52 हजार ब्राह्मण, 48 हजार यादव वोटर्स हैं। अब आरपीएन सिंह की बिरादरी यानी सैंथवार वोटर्स की बात करें तो उनकी संख्या 46 हजार, जबकि स्वामी प्रसाद मौर्य की कुशवाहा जाति के वोटर लगभग 44 हजार हैं। मतलब मुकाबला दोनों के बीच काफी टक्कर का है।
राजनीतिक विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव कहते हैं यहां मुस्लिम और यादव वोटर्स खुलकर सपा को ही वोट करेंगे। बाकी जातियों के वोटर्स में बंटवारा होगा। सैंथवार अगर आरपीएन का साथ देंगे तो कुशवाहा-मौर्य बिरादरी के ज्यादातर लोग स्वामी प्रसाद के साथ होंगे। ऐसे में एससी और ब्राह्मण वोटर्स ही निर्णायक भूमिका में होंगे। जो इन दोनों वर्ग के वोटर्स को अपनी ओर कर लेगा वही पडरौना जीत सकेगा।
पडरौना का क्या रहा है इतिहास?
2017 में मोदी लहर से पहले भाजपा को 1991 की राम लहर में पडरौना से जीत मिली थी। 1993 में इस सीट पर समाजवादी पार्टी के बालेश्वर यादव ने जीत हासिल की। 1996 से यहां कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह का वर्चस्व कायम हो गया। 2009 तक वह इस सीट से विधायक रहे। आरपीएन के लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद से कांग्रेस ने यह सीट नहीं जीती। 2017 के चुनाव में भाजपा के स्वामी प्रसाद मौर्य को 93649 वोट मिले थे। उन्होंने बसपा के जावेद इकबाल को 40552 वोट से हराया था। 41162 वोट लेकर कांग्रेस की शिवकुमारी देवी तीसरे नंबर पर थीं।
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आरपीएन सिंह का राजनीतिक सफर
- 1996 से 2009 तक पडरौना से कांग्रेस के विधायक रहे।
- 2009 से 2014 तक सांसद रहे।
- साल 2009-2011 तक केंद्रीय सड़क, परिवहन और राजमार्ग राज्य मंत्री रहे।
- साल 2011-2013 तक केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस और कॉर्पोरेट मामले के राज्य मंत्री रहे।
- सिंह के पिता कुंवर सीपीएन सिंह इंदिरा गांधी के समय रक्षा राज्यमंत्री थे।
- 1997 से 1999 तक सिंह युवा कांग्रेस उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष थे।
- 2003 से 2006 तक ऑल इंडिया कांग्रेस के सचिव रहे।
2017 में भाजपा में शामिल हुए थे मौर्य
2009 में हुए पडरौना विधानसभा के उपचुनाव में बसपा के स्वामी प्रसाद मौर्य यहां से जीते। 2012 में भी मौर्य ने जीत हासिल की। 2017 चुनाव से ठीक पहले मौर्य भाजपा में शामिल हो गए और यहां से तीसरी बार जीतने में कामयाब रहे। इस बार फिर मौर्य ने पाला बदल लिया है। अब वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं। उधर, भाजपा ने भी यहां आरपीएन सिंह के तौर पर नया चेहरा ढूंढ लिया है। भाजपा अगर आरपीएन सिंह को यहां से उतारती है तो पडरौना का मुकाबला काफी रोचक होगा।
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जातीय गणित क्या कहता है?
पडरौना विधानसभा में 3.48 लाख मतदाता हैं। सबसे ज्यादा करीब 84 हजार मुस्लिम वोटर्स हैं। इसके बाद करीब 76 हजार एससी, 52 हजार ब्राह्मण, 48 हजार यादव वोटर्स हैं। अब आरपीएन सिंह की बिरादरी यानी सैंथवार वोटर्स की बात करें तो उनकी संख्या 46 हजार, जबकि स्वामी प्रसाद मौर्य की कुशवाहा जाति के वोटर लगभग 44 हजार हैं। मतलब मुकाबला दोनों के बीच काफी टक्कर का है।
राजनीतिक विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव कहते हैं यहां मुस्लिम और यादव वोटर्स खुलकर सपा को ही वोट करेंगे। बाकी जातियों के वोटर्स में बंटवारा होगा। सैंथवार अगर आरपीएन का साथ देंगे तो कुशवाहा-मौर्य बिरादरी के ज्यादातर लोग स्वामी प्रसाद के साथ होंगे। ऐसे में एससी और ब्राह्मण वोटर्स ही निर्णायक भूमिका में होंगे। जो इन दोनों वर्ग के वोटर्स को अपनी ओर कर लेगा वही पडरौना जीत सकेगा।
पडरौना का क्या रहा है इतिहास?
2017 में मोदी लहर से पहले भाजपा को 1991 की राम लहर में पडरौना से जीत मिली थी। 1993 में इस सीट पर समाजवादी पार्टी के बालेश्वर यादव ने जीत हासिल की। 1996 से यहां कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह का वर्चस्व कायम हो गया। 2009 तक वह इस सीट से विधायक रहे। आरपीएन के लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद से कांग्रेस ने यह सीट नहीं जीती। 2017 के चुनाव में भाजपा के स्वामी प्रसाद मौर्य को 93649 वोट मिले थे। उन्होंने बसपा के जावेद इकबाल को 40552 वोट से हराया था। 41162 वोट लेकर कांग्रेस की शिवकुमारी देवी तीसरे नंबर पर थीं।
