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UP: वंदे मातरम पर मौलाना मदनी बोले- मरना स्वीकार लेकिन शिर्क नहीं, मुसलमान सिर्फ अल्लाह की इबादत करता है

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सहारनपुर Published by: डिंपल सिरोही Updated Tue, 09 Dec 2025 09:39 PM IST
सार

वंदे मातरम् पर संसद में चली बहस के बीच मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमें किसी के गीत पढ़ने पर आपत्ति नहीं, लेकिन इसकी कुछ पंक्तियां इस्लामी आस्था के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि संविधान धार्मिक स्वतंत्रता देता है और किसी को भी उसकी आस्था के विरुद्ध गीत गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

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Maulana Arshad Madani Says: No Objection to Vande Mataram, But Worship Allowed Only to Allah
मौलाना अरशद मदनी - फोटो : एएनआई
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विस्तार
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संसद में वंदे मातरम् पर हुई बहस पर जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमें किसी के वंदे मातरम् पढ़ने या गाने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन हम यह बात फिर से स्पष्ट करना चाहते हैं कि मुसलमान केवल एक अल्लाह की इबादत करता है और अपनी इस इबादत में किसी दूसरे को शरीक नहीं कर सकता।

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मौलाना अरशद मदनी ने मंगलवार को जारी बयान में कहा की वंदे मातरम् की कुछ पंक्तियां ऐसे धार्मिक विचारों पर आधारित हैं जो इस्लामी आस्था के खिलाफ हैं। विशेष रूप से इसकी चार पंक्तियों में देश को दुर्गा माता जैसे देवी के रूप में प्रस्तुत किया गया है और उसकी पूजा के शब्द प्रयोग किए गए हैं, जो किसी मुसलमान की बुनियादी आस्था के विरुद्ध हैं।
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उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) देता है। इन अधिकारों के अनुसार किसी भी नागरिक को उसके धार्मिक विश्वास के विरुद्ध किसी नारे, गीत या विचार को अपनाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

यह भी पढ़ें: UP: 'वंदे मातरम' पर कैराना सांसद इकरा हसन का जोरदार संबोधन, समझाया अर्थ, संसद में बजी तालियां

मुसलमानों को देशभक्ति का प्रमाण देने की जरूरत नहीं :मदनी
मौलाना मदनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का भी यह स्पष्ट फैसला है कि किसी भी नागरिक को राष्ट्रगान या ऐसा कोई गीत गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जो उसके धार्मिक विश्वास के खिलाफ हो। कहा कि वतन से मोहब्बत करना अलग है और उसकी पूजा करना अलग बात है।

मुसलमानों को इस देश से कितनी मोहब्बत है इसके लिए उन्हें किसी प्रमाण-पत्र की जरूरत नहीं है। आजादी की लड़ाई में मुसलमानों और जमीयत उलमा-ए-हिंद के बुजुर्गों की कुर्बानियां और विशेष रूप से देश के बंटवारे के खिलाफ जमीयत की कोशिशें दिन की रोशनी की तरह स्पष्ट हैं।



देशभक्ति का संबंध दिल की सच्चाई और अमल से है न कि नारेबाजी से।मौलाना मदनी ने वंदे मातरम् के बारे में कहा कि ऐतिहासिक रिकॉर्ड साफ तौर पर बताता है कि 26 अक्तूबर 1937 को रवींद्रनाथ टैगोर ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को एक पत्र लिखकर सलाह दी थी कि वंदे मातरम् के केवल पहली दो पंक्तियों को ही राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया जाए, क्योंकि बाकी की पंक्तियां एकेश्वरवादी धर्मों के विश्वास के विरुद्ध हैं।

उन्होंने कहा कि इसी आधार पर 29 अक्तूबर 1937 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने यह फैसला किया था कि केवल दो पंक्तियों को ही राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया जाएगा। इसलिए आज टैगोर के नाम का गलत इस्तेमाल करके पूरे गीत को जबरन गंवाने की कोशिश करना न सिर्फ ऐतिहासिक तथ्यों को नकारने की कोशिश है, बल्कि देश की एकता की भावना का भी अपमान है।

उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग इस मुद्दे को देश के बंटवारे से जोड़ते हैं, जबकि टैगोर की सलाह राष्ट्रीय एकता के लिए थी। मौलाना मदनी ने जोर देते हुए कहा कि वंदे मातरम् से जुड़ी बहस धार्मिक आस्थाओं के सम्मान और सांविधानिक अधिकारों के दायरे में होनी चाहिए न कि राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के रूप में।

मरना स्वीकार शिर्क नहीं
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि वंदे मातरम् बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास 'आनंद मठ' से लिया गया एक अंश है। इसकी कई पंक्तियां इस्लाम के धार्मिक सिद्धांतों के खिलाफ हैं, इसलिए मुसलमान इस गीत को गाने से परहेज करते हैं। कहा कि वंदे मातरम् का पूरा अर्थ है मां मैं तेरी पूजा करता हूं। यह शब्द स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि यह गीत हिंदू देवी दुर्गा की प्रशंसा में लिखा गया था न कि भारत माता के लिए।

कहा कि इस्लाम एकेश्वरवाद पर आधारित धर्म है, जो एक ऐसे ईश्वर की पूजा करता है जिसका कोई साझीदार नहीं है। किसी देश या मां की पूजा करना इस सिद्धांत के खिलाफ है। वंदे मातरम् गीत मां के सामने झुकने और उसकी पूजा करने की बात करता है, जबकि इस्लाम अल्लाह के अलावा किसी के सामने झुकने और पूजा करने की अनुमति नहीं देता। इसलिए हम इसे किसी भी हाल में स्वीकार नहीं कर सकते। मर जाना स्वीकार है, लेकिन शिर्क (अल्लाह के साथ किसी साझी) स्वीकार नहीं है। 
 
वोट बटोरोने के लिए विवादित मुद्दों पर बहस
मौलाना अरशद मदनी ने सवाल उठाया कि क्या देश में इतने विवादित मुद्दों के अलावा कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिस पर संसद में बहस हो, जो देश और जनता के हित में हो। लेकिन दुर्भाग्य से इस पर कोई चर्चा नहीं होती, क्योंकि इस तरह की बहसों से वोट नहीं मिलते और न ही समाज को धार्मिक आधार पर बांटा जा सकता। आजकल चुनाव जीतने का यह एक आज़माया हुआ तरीका बन गया है।

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