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हुलासनगरा ओवरब्रिज: दूसरी लेन पर फर्राटा भरने लगा हाईवे का यातायात
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मीरानपुर कटरा के हुलासनगरा रेलवे क्रासिंग पर शुक्रवार को ओवरब्रिज की दूसरी लेन से भी ट्रैफिक शु?
- फोटो : SHAHJAHANPUR
शाहजहांपुर/मीरानपुर कटरा। लखनऊ-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग की हुलासनगरा रेलवे क्रॉसिंग पर निर्माणाधीन ओवरब्रिज की दूसरी लेन पर भी यातायात शुरू कर दिया गया है। हालांकि अभी रेलिंग का काम पूरा नहीं हो सका है, लेकिन भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के परियोजना अधिकारी के निर्देश पर कार्यदायी संस्था के अभियंताओं ने शुक्रवार दोपहर से दूसरी लेन पर वाहनों का आवागमन शुरू करा दिया। इससे बरेली की ओर से आने वाले वाहनों का संचालन सुगम होने के साथ क्रॉसिंग पर घंटों जाम से जूझने की समस्या से छुटकारा मिल गया।
तकरीबन 11 साल से हुलासनगरा क्रॉसिंग पर ओवरब्रिज बनने की राह देखी जा रही थी। पांच अप्रैल को ओवरब्रिज की पहली लेन से यातायात शुरू होने के बाद अधिकारियों ने 15 मई तक दूसरी लेन से यातायात शुरू होने का दावा किया था। एक लेन से दोनों तरफ का यातायात चलने के कारण वाहन चालकों को हादसे की आशंका भी रहती थी और निकलने में भी दिक्कत महसूस होती थी। दो दिन पहले ही काम पूरा हो जाने पर शुक्रवार को अधिकारियों ने दूसरी लेन भी वाहनों के लिए खोल दी। अब दोनों लेन पर वाहन फर्राटा भरते हुए निकल रहे हैं।
अब हुलासनगरा ओवरब्रिज का काम पूरा हो गया है। दोनों लेन से यातायात शुक्रवार से शुुरू कर दिया गया है। जाम की दिक्कत अब नहीं होगी। -टीके शर्मा, जीएम, पीआरएल (कार्यदायी संस्था)
वर्ष 2010 में फोरलेन बनाने की मिली मंजूरी
लखनऊ-दिल्ली हाईवे के 178 किमी लंबे बरेली-सीतापुर खंड को फोरलेन बनाने की सड़क परिवहन मंत्रालय ने वर्ष 2010 में मंजूरी दी थी। एनएचएआई ने इसके लिए नोएडा की कंपनी को कार्यदायी संस्था नामित किया। इस कंपनी ने वर्ष 2011 की अंतिम तिमाही में निर्माण कार्य शुरू किया। करीब डेढ़ वर्ष तक फोरलेन के साथ पुलों और अंडरपास बनाने का काम जारी रहा, लेकिन हाईवे के किनारे चौड़ीकरण के लिए वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) नहीं मिलने के कारण वर्ष 2013 में निर्माण कार्य रुक गया जो करीब 11 माह बाद मई 2014 में फिर से शुरू हो सका।
कंपनी के काम छोड़ने से निर्माण में पड़ी बाधा
हाईवे चौड़ीकरण और पुलों के निर्माण का काम कुछ माह तक जारी रहने के बाद भुगतान नहीं मिलने पर कंपनी के इंजीनियर्स का वेतन रुका तो उन्होंने तत्कालीन डीएम से मिलकर मदद की गुहार लगाई। एनएचएआई इस मुद्दे को निस्तारित करता कि उससे पहले कंपनी ने खुद को दिवालिया करार देकर काम रोक दिया और डिपो से अपना सारा सामान उठाने के साथ कर्मचारी वापस बुला लिए। बाद में एनएचएआई ने यह काम शीघ्रता से कराने के लिए कई कार्यदायी संस्थाएं नामित कर उन्हें हाईवे के अलग-अलग हिस्से आवंटित कर दिए।
नए गर्डर मंगाने में लगा काफी समय
फोरलेन का काम शुरू होने के कुछ माह बाद ही कार्यदायी संस्था ने हुलासनगरा ओवरब्रिज के लिए गर्डर मंगाकर उन्हें कार्य स्थल पर रखवा लिया। बाद मेें कई वर्ष तक पुल के पिलर बनने का काम रुका तो गर्डर पुराने हो गए और उनमें इतनी जंक लग गई कि वह पुल के पिलर पर रखने लायक नहीं बने। रेलवे अभियंताओं की तकनीकी टीम ने गुणवत्ता जांच में पुराने गर्डर फेल कर दिए। इस पर जिले के जनप्रतिनिधियों, विशेषकर सांसद अरुण सागर और क्षेत्रीय विधायक वीर विक्रम सिंह ने केंद्र व प्रदेश सरकार स्तर पर प्रयास तेज किए तो गत वर्ष दिसंबर में रायपुर (छत्तीसगढ़) इस्पात कारखाना में नए गर्डर ढलवाकर मंगाए और इसके बाद ही क्रॉसिंग पर ओवरब्रिज के निर्माण में तेजी आ सकी।
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तकरीबन 11 साल से हुलासनगरा क्रॉसिंग पर ओवरब्रिज बनने की राह देखी जा रही थी। पांच अप्रैल को ओवरब्रिज की पहली लेन से यातायात शुरू होने के बाद अधिकारियों ने 15 मई तक दूसरी लेन से यातायात शुरू होने का दावा किया था। एक लेन से दोनों तरफ का यातायात चलने के कारण वाहन चालकों को हादसे की आशंका भी रहती थी और निकलने में भी दिक्कत महसूस होती थी। दो दिन पहले ही काम पूरा हो जाने पर शुक्रवार को अधिकारियों ने दूसरी लेन भी वाहनों के लिए खोल दी। अब दोनों लेन पर वाहन फर्राटा भरते हुए निकल रहे हैं।
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अब हुलासनगरा ओवरब्रिज का काम पूरा हो गया है। दोनों लेन से यातायात शुक्रवार से शुुरू कर दिया गया है। जाम की दिक्कत अब नहीं होगी। -टीके शर्मा, जीएम, पीआरएल (कार्यदायी संस्था)
वर्ष 2010 में फोरलेन बनाने की मिली मंजूरी
लखनऊ-दिल्ली हाईवे के 178 किमी लंबे बरेली-सीतापुर खंड को फोरलेन बनाने की सड़क परिवहन मंत्रालय ने वर्ष 2010 में मंजूरी दी थी। एनएचएआई ने इसके लिए नोएडा की कंपनी को कार्यदायी संस्था नामित किया। इस कंपनी ने वर्ष 2011 की अंतिम तिमाही में निर्माण कार्य शुरू किया। करीब डेढ़ वर्ष तक फोरलेन के साथ पुलों और अंडरपास बनाने का काम जारी रहा, लेकिन हाईवे के किनारे चौड़ीकरण के लिए वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) नहीं मिलने के कारण वर्ष 2013 में निर्माण कार्य रुक गया जो करीब 11 माह बाद मई 2014 में फिर से शुरू हो सका।
कंपनी के काम छोड़ने से निर्माण में पड़ी बाधा
हाईवे चौड़ीकरण और पुलों के निर्माण का काम कुछ माह तक जारी रहने के बाद भुगतान नहीं मिलने पर कंपनी के इंजीनियर्स का वेतन रुका तो उन्होंने तत्कालीन डीएम से मिलकर मदद की गुहार लगाई। एनएचएआई इस मुद्दे को निस्तारित करता कि उससे पहले कंपनी ने खुद को दिवालिया करार देकर काम रोक दिया और डिपो से अपना सारा सामान उठाने के साथ कर्मचारी वापस बुला लिए। बाद में एनएचएआई ने यह काम शीघ्रता से कराने के लिए कई कार्यदायी संस्थाएं नामित कर उन्हें हाईवे के अलग-अलग हिस्से आवंटित कर दिए।
नए गर्डर मंगाने में लगा काफी समय
फोरलेन का काम शुरू होने के कुछ माह बाद ही कार्यदायी संस्था ने हुलासनगरा ओवरब्रिज के लिए गर्डर मंगाकर उन्हें कार्य स्थल पर रखवा लिया। बाद मेें कई वर्ष तक पुल के पिलर बनने का काम रुका तो गर्डर पुराने हो गए और उनमें इतनी जंक लग गई कि वह पुल के पिलर पर रखने लायक नहीं बने। रेलवे अभियंताओं की तकनीकी टीम ने गुणवत्ता जांच में पुराने गर्डर फेल कर दिए। इस पर जिले के जनप्रतिनिधियों, विशेषकर सांसद अरुण सागर और क्षेत्रीय विधायक वीर विक्रम सिंह ने केंद्र व प्रदेश सरकार स्तर पर प्रयास तेज किए तो गत वर्ष दिसंबर में रायपुर (छत्तीसगढ़) इस्पात कारखाना में नए गर्डर ढलवाकर मंगाए और इसके बाद ही क्रॉसिंग पर ओवरब्रिज के निर्माण में तेजी आ सकी।