काशी का बढ़ा गौरव: 84 साल बाद डेविस कप में खेलेगा यूपी का खिलाड़ी, कोच की डांट के बाद खेल पर किया फोकस
उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के सिद्धार्थ विश्वकर्मा डेविस कप खेलने जा रहे हैं। उन्होंने अमर उजाला से विशेष बातचीत में बताया कि खर्च उठाने के लिए वे दिल्ली में खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देते थे। इस दौरान कोच ने देखा तो बहुत डांट पड़ी थी।

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वाराणसी के घौसाबाद निवासी सिद्धार्थ विश्वकर्मा टेनिस के विश्व कप यानी डेविस कप में खेलेंगे। यह टेनिस के विश्व कप के इतिहास में यूपी से दूसरे खिलाड़ी हैं। 84 वर्ष पहले यूपी के गौस मोहम्मद डेविस कप में हिस्सा ले चुके हैं। अब सिद्धार्थ यूपी के दूसरे जबकि वाराणसी के पहले खिलाड़ी हैं जो डेविस कप में भाग लेने स्वीडन जा रहे हैं।

अमर उजाला से विशेष बातचीत में सिद्धार्थ ने बताया कि 7 वर्ष की उम्र में दिमागी बुखार हुआ था। तब चेतगंज के कर्नल डॉ. विश्वकर्मा ने खेलने की सलाह दी थी। तबसे टेनिस खेल रहा हूं। वाराणसी से लखनऊ, मध्यप्रदेश और अब नोएडा में खेल की तैयारी कर रहा हूं। दिल्ली में रहने और खुद खेलने के लिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के लिए दूसरे खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देता था। एक बार कोच ने दूसरे को ट्रेनिंग देते हुए देख लिया तब बहुत डांट पड़ी थी।
उन्होंने बताया, कोच की सलाह और धैर्य से अभ्यास करता रहा। अब कोर्ट पर वापसी की है। खेलने के लिए पिताजी को इलेक्ट्रॉनिक सामान रिपेयरिंग की दुकान तक बंद करनी पड़ी। प्रारंभिक कोच अनिल चौहान और राजेश मिश्र के सहयोग से लखनऊ खेलने गया। आर्थिक समस्या की जानकारी होने पर कई लोगों ने मदद की। लखनऊ में एक छत और खेलने के लिए आर्थिक मदद मिलने लगी।
इसके बाद वर्ष 2012 में खेलने के लिए दिल्ली आ गया। यहां कंधे में चोट लगी और लिंगामेंट इंजरी हो गई। आर्थिक समस्या आने पर वर्ष 2014 में फिर से राजेश मिश्र के पास छत्तीसगढ़ लौट गया। करीब एक वर्ष चोट से उबरने में लग गए। इसके बाद खेल में वापसी की और 2018 में टॉप टेन खिलाड़ियों की सूची में आठवां रैंक हासिल किया। इसी वर्ष राष्ट्रीय चैंपियन बना। गोवा में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में यूपी को स्वर्ण पदक दिलाया।
टूर्नामेंट के पैसे से अगला मैच खेलता हूं...
उन्होंने बताया कि टूर्नामेंट जीतने पर जो पुरस्कार मिलता है उसी पैसे से अगले मैच की तैयारी करता हूं और खेलने जाता हूं। सबसे ज्यादा राष्ट्रीय खेलों में सात लाख रुपये मिले थे। इथियोपिया में फेडरेशन की ओर से आयोजित मैच में उपविजेता बना और दो हजार डॉलर की पुरस्कार राशि मिली।
एक साल में सिर्फ 16 सप्ताह खेलकर हासिल किया मुकाम
सिद्धार्थ ने बताया कि विदेशी खिलाड़ी वर्ष में 35 से 38 सप्ताह मैच खेलते हैं। भारत में प्रतिभा की कमी नहीं है। अगर अधिक से अधिक मैच आयोजित किए जाएं तो यहां के खिलाड़ियों की रैंक और उनके प्रतिभा का निखार संभव हैं। उन्होंने यह मुकाम वर्ष में 16 सप्ताह खेलकर हासिल किया है। बैक टू बैक मैच मिले तो और भी खिलाड़ी निकलेंगे और उनका प्रदर्शन भी शानदार होगा।
बीएचयू में खेलने के लिए करते थे घंटों इंतजार
सिद्धार्थ ने बीएचयू के पूर्व कुलपति प्रो. पंजाब सिंह के साथ एंफीथियेटर मैदान में सिंथेटिक कोर्ट पर उद्घाटन मैच खेला था। उन्होंने बताया कि टेनिस खेलने का ही जुनून था कि हर सुबह छह बजे बीएचयू पहुंच जाता था। उस समय बीएचयू के पूर्व कुलपति अभ्यास करते थे। उनके चले जाने के बाद कोर्ट पर खेलता था। एक बार पूर्व कुलपति ने सिद्धार्थ से पूछा की रोज तुम किस लिए इंतजार करते हो। बताया कि खेलने के लिए तो उन्होंने कर्मचारियों से कहा कि खिलाड़ी को खेलने दें। इसके बाद वह प्रतिदिन सिंथेटिक कोर्ट पर खेलता था।